इधर जाने-अनजाने अच्छी बात यह हुई मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी ने अपने मंत्रियों-विधायकों से कहा है कि वे अपने-अपने इलाकों में सीएचसी (सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र) को ‘गोद’ लें। उन्होंने स्वयं भी गोरखपुर के चार सीएचसी को गोद ले लिया है। आशा है कि इससे इन स्वास्थ्य केंद्रों की हालत कुछ सुधरेगी। स्वास्थ्य विभाग पर दबाव पड़ा है कि वह सीएचसी में डॉक्टरों की तैनाती सुनिश्चित करे। जिलों के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक सक्रिय हुए हैं।
प्रदेश में सामुदायिक स्वास्थ्य
केंद्रों की हालत किसी से छुपी नहीं है। कहीं इन केंद्रों पर ताला लटका रहता है और कहीं डॉक्टर या
अन्य चिकित्सा कर्मी नहीं मिलते। बहुत दूर से चारपाई पर लादकर लाई गई महिला ताला बंद
सीएचसी के बाहर प्रसव को विवश होती है या कोई बीमार बुजुर्ग इलाज के इंतज़ार में दम
तोड़ देता है। कोविड महामारी ने इन स्वाथ्य केंद्रों की बदहाली और भी उजागर की। अगर
वे प्राथमिक चिकित्सा दे पाने में भी सक्षम होते तो गांवों-कस्बों में कोविड मरीजों
की मौतों का सिलसिला भयावह नहीं होता। बड़े शहरों के अस्पतालों में बेड और ऑक्सीजन के
लिए मारामारी इसलिए भी मची कि आसपास के ग्रामीण इलाकों से मरीज निरंतर लाए जा रहे थे।
वैसे, यह ‘गोद लेना’
जनप्रतिनिधियों से अक्सर सुनाई देता है। कभी कोई किसी गांव को गोद लेता
है कोई किसी संस्थान को और कोई किसी गरीब-लाचार बच्चे को। शुरुआती प्रचार और कुछ औपचारिकताओं
के बाद धीरे-धीरे गोद लिए गए गांवों/संस्थानों/बच्चों को भुला दिया जाता है। हमारे
जनप्रतिनिधियों की ‘व्यस्तता’ रचनात्मक
कामों में कम, अन्यत्र अधिक होती है। यह ‘अन्यत्र’ ही उनकी राजनीति का आधार होता है। रचनात्मक
काम थोड़ी प्रशंशा तो दिलाते है, चुनाव नहीं जिता पाते।
खैर, जिलों के सीएमओ पर स्वास्थ्य केद्रों में डॉक्टरों
की तैनाती करने का दबाव बना है। प्रदेश में डॉक्टरों की वैसे ही बहुत कमी है और जो
किसी स्वास्थ्य केंद्र में भेजे जाते हैं तो वे भी वहां से शहरों की ओर वापसी का राजनैतिक
जुगाड़ भिड़ा लेते हैं। मानक तो यह है कि एक लाख की आबादी पर एक सीएचसी और तीस हजार की
आबादी पर एक पीएचसी होने चाहिए लेकिन कई सीएचसी पर तीन से चार लाख तक की आबादी का दबाव
है। यही हाल पीएचसी का है। एक सीएचसी में महिला रोग विशेषज्ञ और एक शल्य चिकित्सक समेत
कम से कम पांच डॉक्टर होने चाहिए। उसमें तीस बेड और सभी उपकरणों से युक्त एक-दो ऑपरेशन
कक्ष होने चाहिए। इमारतें तो यह तंत्र फटाफट खड़ी कर देता है लेकिन बाकी सुविधाएं देने
में फिसड्डी साबित होता है।
गोद लेने का वास्तविक अर्थ क्या होगा? क्या सिर्फ
उनकी निगरानी? कुछ जनप्रतिनिधियों ने सीएचसी गोद लेकर उनकी मॉनीटरिंग
के लिए समिति बना दी हैं, जिनमें सीएमओ, एसडीएम से लेकर पार्टी के लोग भी शामिल हैं। यह समिति क्या कर पाएगी?
प्रदेश में सबसे बड़ी कमी डॉक्टरों की है। सर्वोच्च प्राथमिकता यह देखने
की होनी चाहिए कि प्रादेशिक चिकित्सा सेवा (पीएमएस) में डॉक्टर खुशी-खुशी आते क्यों
नहीं और आ गए तो उससे निकलने का प्रयास क्यों करते रहते हैं। जिलों में तैनात सरकारी
डॉक्टरों को एक एसडीएम भी जब चाहे तलब कर लेता है। उनका सम्मान और प्रतिष्ठा धीरे-धीरे
मिटा दिए गए। बहरहाल, इस पर फिर कभी।
अभी तो यह पूछना है कि क्या गोद लेने से सीएचसी की ये समस्याएं
दूर हो जाएंगी? स्वास्थ्य सेवाओं को दुरस्त करने के लिए समग्र स्वास्थ्य नीति
और अच्छे बजट की आवश्यकता तो है ही, निजी क्षेत्र को सिर पर बैठाना
भी बंद करना होगा। निजीकरण ने अत्यावश्यक सार्वजनिक सेवाओं को क्रमश: मारा है।
(सिटी तमाशा, नभाटा, 12 जून, 2021)
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