एक मास के भीतर दूसरी बार एम्बुलेंस की ‘मनमानी’ दरों पर शासन-प्रशासन ने रोष प्रकट किया है। दरें भी निर्धारित की गई हैं। पिछले दिनों लखनऊ के जिलाधिकारी ने कोविड मरीजों को लाने-ले जाने के लिए एम्बुलेंस की दरें तय की थीं। अब शासन स्तर पर पूरे प्रदेश में ये दरें निश्चित की गई हैं। महामारी की दूसरी लहर के चरम दौर में चौतरफा शिकायतें मिलीं कि अस्पताल और निजी एम्बुलेंस वाले मरीजों से मनमानी रकम वसूल रहे हैं। मरीजों की संख्या इतनी बढ़ गई थी कि एम्बुलेंस के लिए मारामारी मची थी। निजी एम्बुलेंस वालों ने इसका फायदा उठाकर मनमाना किराया वसूला। फायदा लूटने में सभी आगे थे।
शासन-प्रशासन की इस औपचारिक-सी
शैली पर कभी-कभी आश्चर्य होता है। ऐसा नहीं है कि एम्बुलेंस की दरें निर्धारित न हों
लेकिन शायद ही किसी को याद हो। जैसे, शहर में चलने वाले ऑटो-टेम्पो-टैक्सी आदि की दरें निर्धारित
होती हैं। यह कागजी औपचारिकता ही होती है क्योंकि ऑटो-टेम्पो-टैक्सी वाले किराया अपनी
ही दरों पर लेते हैं। शासन द्वारा तय दरें उनके वाहन में लिखी अवश्य होती हैं लेकिन
वसूली उससे कहीं अधिक होती है। यह सबको पता होता है लेकिन चलता रहता है।
अत्यावश्यक सेवा मानी जाने के
कारण एम्बुलेंस को परमिट नहीं लेना पड़ता लेकिन दरें उनकी भी तय रहती हैं। यह अलग बात
है कि ये दरें मात्र दिखावे के लिए होती हैं। एम्बुलेंस ही क्यों, कोविड मरीजों-तीमारदारों से सभी ने मनमानी वसूली की। ऑक्सीजन
और कुछ विशेष दवाओं के लिए कैसी भगदड़ मची थी! तीमारदार खाली सिलेण्डर लिए दौड़ रहे थे
और कहीं मिल गई तो कई-कई गुना रकम चुकानी पड़ी। दवाओं की चोरबाजारी हुई।
निजी अस्पतालों की शिकायतें हो रही है कि उन्होंने इलाज और ऑक्सीजन
आदि के नाम पर लाखों रु वसूले। जांच में ये शिकायतें सही भी पाई जा रही हैं लेकिन कार्रवाई
के नाम कुछ अस्पतालों को नोटिस थमा दी जाती है। ऐसी शिकायतें सामान्य दिनों में भी
आती थीं मगर कोविड-काल में ये बहुत बढ़ गईं, हालांकि हमारे यहां शिकायतें करने का चलन लगभग
नहीं है। मरीज की जान बचाएं या शिकायत करते फिरें? फिर भी खूब
शिकायतें आईं लेकिन कोई दंडात्मक कार्रवाई होती नहीं सुनाई दी जिससे कि वे आइंदा ऐसा
नहीं करें।
मुख्यमंत्री से लेकर आला अधिकारी तक चेतावनी देते रहते हैं।
इन चेतावनियों का कितना प्रभाव पड़ता है? शिकायत करने का कष्ट बहुत कम लोग उठाते हैं
क्योंकि जनता की शिकायतें सहानुभूति से सुनना अपने यहां होता नहीं। शिकायतकर्ता को
हतोत्साहित ही किया जाता है। फिर भी कुछ शिकायतें आती है तो इसका मतलब है कि मनमानी
वसूली बहुत बड़े पैमाने पर हो रही है।
इसकी सबसे बुरी मार गरीब, सीधे-सरल लोगों पर पड़ती है।
उनके मुंह में जैसे जुबान ही नहीं होती कि निर्धारित दर पूछ सकें या सवाल-जवाब कर सकें।
वे हर जगह ठगे-लूटे जाते हैं। अस्पतालों के बाहर उन्हें दलाल लूटते हैं और भीतर अस्पताल
वाले। और तो और, श्मशान घाट पर भी वे लूटे गए। यह अकारण नहीं
है कि कई जगह गरीब-गुरबों ने लाशें नदियों में बहा दीं या रेत में दफ्न कर दीं। कोई
अपनों को इस तरह विदा नहीं करता लेकिन जब विधिवत दाह-कर्म या दफनाने के लिए इतनी रकम
मांगी जाए कि वे दे न सकें तो क्या चारा रह जाता है?
जनता को, खासकर गरीब-गुरबों को क्या-कैसी समस्याएं झेलनी
पड़ती हैं या विभिन्न सेवाएं निर्धारित दरों पर चल रही हैं, इसे
देखने की कोई चिंता शासन-प्रशासन नहीं करता। सिर्फ कड़े निर्देशों से व्यवस्था नहीं
सुधरती।
(सिटी तमाशा, नभाटा, 05 जून, 2021)
1 comment:
बेहतरीन लेख सर।
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