Friday, October 01, 2021

ए मछलियो, जाओ, गंगा को प्रदूषण मुक्त करो!

 

बच्चो, क्या तुम्हें पता है कि गंगा नदी में मछलियां घटते-घटते बहुत कम रह गई हैं।

बाकी मछलियां कहां गई, सर?’

बढ़ते प्रदूषण ने उन्हें मार डाला।

अब क्या करेंगे, सर?’

गंगा में खूब सारी मछलियां डाल देंगे।

सर, वे भी प्रदूषण से मर गईं तो?’

बच्चों के इस अत्यंत स्वाभाविक सवाल पर सरचुप हो गए लेकिन सरकारी योजना तो बन चुकी है। बल्कि, शीघ्र अमल में आने वाली है। उत्तर प्रदेश सरकार ने तय किया है कि गंगा नदी को प्रदूषण मुक्त करने के लिए उसमें पंद्रह लाख मछलियां डाली जाएंगी। ये मछलियां पानी में बढ़ी नाइट्रोजन और दूसरे प्रदूषण को खत्म कर देंगी। गंगा साफ हो जाएगी!

गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के अभियान चलते हुए बीसियों साल हो गए। अरबों रु की योजनाएं गंगा में बह गईं। गंगा दिन पर दिन और भी प्रदूषित होती जा रही है। कुम्भ जैसे महत्वपूर्ण स्नान पर्वों के अवसर पर गंगा में साफ पानी छोड़ना पड़ता है ताकि वह डुबकी लगाने लायक हो सके। पानी में अक्सर इतना प्रदूषण हो जाता है कि मछलियों को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिलती। लाखों की संख्या में वे मरकर पानी पर उतराने लगती हैं। सरकार का ही आंकड़ा है कि पिछले बीस साल से लगातार मछलियां मर रही हैं और अब सिर्फ बीस प्रतिशत बची हैं।

तो, क्या लाखों मछलियां गंगा में छोड़ने से वह प्रदूषण मुक्त हो जाएगी? क्या इस पर विचार किया गया कि आखिर मछलियां कम क्यों होती गईं? मछली पकड़ने से तो इतनी कम नहीं हो सकतीं! और, मछलियां ही सारा प्रदूषण दूर कर देतीं तो वे मरती ही क्यों?

स्पष्ट है कि गंगा (बाकी नदियां भी) के प्रदूषण के प्रमुख कारणों से आंखें मूंदी जा रही हैं। पिछली तमाम योजनाओं की तरह एक और खानापूरी की जा रही है। कभी कछुए छोड़ेंगे, कभी मछलियां और कभी उनकी सतह की काई व खर-पतवार हटाने का अभियान चलाएंगे लेकिन उन कारणों को दूर करने का प्रयास नहीं करेंगे जिनसे नदियों में इतना जहर जा रहा है कि मछलियां ही नहीं, नदी एवं उसकी पूरी पारिस्थितिकी मर रही है।

क्या यह तथ्य सरकारों से छुपा है कि कितने कारखाने अपना जहरीला उत्सर्जन गंगा नदी में डाल रहे हैं? कितने शहरों के नाले और सीवर नदी में जहर घोल रहे हैं? कितने शहरों-कस्बों में भारी अतिक्रमण से नदियों का जल-ग्रहण क्षेत्र कंक्रीट से पाट दिया गया है? हिमालय से जो गंगा निकलती है, उसमें कितने बांध अवैज्ञानिक तरीके से बना दिए गए हैं? साल-दर-साल कितना मलबा नदियों में डाला जा रहा है? सबको सब पता है। सीवर, नाले और कारखानों के गंदे पानी को साफ करके नदी में डालने के कड़े निर्देश सरकार की नाक के नीचे हवा में उड़ाए जा रहे हैं। सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पालन करने का स्वांग किया जाता है।

और, अब जिम्मेदारी मछलियों को दी जा रही है कि जाओ और गंगा को साफ करो। मछलियों, कछुओं, आदि जल-जंतुओं ने जब तक सम्भव था नदियों को साफ रखा। मनुष्य के विकासने नहीं माना लेकिन  जल-जंतु मानते रहे कि स्वच्छ नदी उनके अस्तित्व का सवाल है। मनुष्य की अमानवीय और अवैज्ञानिक व्यवस्था ने इतनी अति कर दी के ये प्राणी लड़ते-लड़ते मरने लगे। ये अतियां न होतीं तो नदियों की पारिस्थितिकी उसे स्वयं ही साफ करती चलती। हमने नदी का समूचा पर्यावरण नष्ट कर दिया।

मछलियां डालने की नहीं, नदी को उसका स्वाभाविक जीवन लौटाने की आवश्यकता है। मछलियां और अन्य जल-जीवन उसमें अपने आप पनपने लगेगा। अन्यथा, पंद्रह लाख नहीं, पंद्रह करोड़ मछलियां डाल दीजिए, वे कितना नाइट्रोजन साफ करेंगी कब तक अपनी मनाएंगी खैर मनाएंगी?

(सिटी तमाशा, नभाटा, 02 अक्टूबर, 2021)    

          

No comments: