Friday, February 11, 2022

असफलताओं पर पर्दा हैं ‘फ्री’ वाले वादे

 

चुनावी रैलियों-भाषणों में अमर्यादित भाषा और आरोप छाए हुए हैं तो पार्टियों के चुनाव घोषणापत्रों में  लुभावने वादों की बहार है। 300 यूनिट तक फ्री बिजली देने की बात पहले एक दल ने की। अब एक से अधिक दलों ने यह वादा दोहरा दिया है। किसानों को लुभाने में सभी लगे हैं। सो, उन्हें ऋण माफी से लेकर फ्री बिजली देने के वादे हो रहे हैं। फ्री लैपटॉप, टैबलेट, मोबाइल और सायकिल पुरानी बातें हो गईं। अब स्कूटी का जमाना है। लड़कियों को फ्री स्कूटी बांटने का वादा पहले कांग्रेस लाई। फिर भाजपा ने भी दोहरा दिया यही वादा। अब दोनों इस बात पर भिड़े हुए हैं कि किसने किसका वादा चुरा लिया।

तमिलनाडु से सम्भवत: इसकी शुरुआत हुई थी। द्रविड़ दलों की चुनावी लड़ाई इतनी तीखी हुई कि फ्री रंगीन टीवी तक बांटे गए। धीरे-धीरे यह प्रवृत्ति पूरे देश में फैल गई और राष्ट्रीय राजनैतिक दलों ने भी इसे अपनाना शुरू किया। शुरू में इसकी बड़ी निंदा होती थी। समाज का सचेत वर्ग और कुछ राजनैतिक दल भी इसे मतदातों को रिश्वत देने जैसा मानते थे। चुनाव के समय नकद बांटना अपराध है तो चुनाव के समय वादा करके बाद में बांटना क्या कहा जाएगा?

एक बार चुनाव से कुछ पहले अटल जी के जन्म दिन पर लाजजी टंडन ने लखनऊ में एक समारोह करके महिलाओं को साड़ियां बांटी थी। उस समारोह में मची भगदड़ में कई मौतें हुई थीं। इस हादसे के लिए ही नहीं, मुफ्त साड़ियां बांटे जाने की बड़ी निंदा हुई थी, हालांकि तब तक चुनाव आचार संहिता लागू नहीं हुई थी। अब तो चुनाव आचार संहिता लागू होने के बाद भी मतदाताओं को खुले आम ऐसे लालच दिए जाते हैं, जिन पर निर्वाचन आयोग की नज़र जानी चाहिए लेकिन जाती नहीं। अब सब चलने लगा है।

हमारे यहां चूंकि राज्य की अवधारणा कल्याणकारीकी है, इसलिए यह माना जाता है कि सरकारें गरीब-गुरबों, निराश्रितों, बेघरों, आदि की मदद करेंगी। यह सरकार का दायित्व माना गया है कि कोई भी भूखा और बेघर न रहे, कोई शीत से प्राण न गंवाए। सस्ती दरों पर राशन और इलाज उपलब्ध कराने की योजनाएं इसी दर्शन के अनुसार बनाई जाती रहीं। वे चुनावी लालच का हिस्सा नहीं थीं।

अब तो बेरोजगारों को रोजगार देने का वादा भी चुनावी होकर रह गया है। घोषणाएं होती हैं कि सरकार में आने पर दो करोड़ नौकरियां देंगे। रोजगार सृजित करना सरकारों का दायित्व है। जो दायित्व है, उसे लुभावना वादा क्यों बना दिया गया? यह अलग बात है कि सरकारें रोजगार देने में विफल होती हैं। सरकारी यानी जनता का धन ऐए-ऐसे कार्यों में व्यय किया जाता है जो उत्पादक नहीं होता यानी जिनसे रोजगार सृजन नहीं होता। इसीलिए बेरोजगारी बढ़ती है और फिर चुनाव जीतने के लिए फ्री चीजों का लालच दिया जाता है।

जनता के बड़े वर्ग को फ्री चीजों की ऐसी लत लगा दी गई है कि वे चुनावों का इंतज़ार करने लगे हैं। यह एक तरह से अपनी विफलताएं छुपाने की चाल है। इस आड़ में जनता को निकम्मा बनाने का काम भी हो रहा है। जनता सरकार से सवाल पूछने की बजाय फ्री वस्तुओं का इंतज़ार करती है। यह बहुत खतरनाक है। हमारे एक बैंक कर्मी मित्र बताते हैं कि अधिकतर किसान बैंकों से ऋण लेकर उसकी अदायगी जान-बूझकर नहीं करते। कारण यह कि चुनाव के समय सभी दल ऋण माफी के वादे करते हैं और जीतने पर कर भी देते हैं। ऐसे ही, लोगों को फ्री गैस कनेक्शन, फ्री आवास, फ्री राशन और नकदी का भी इंतज़ार रहने लगा है।                         

जितनी अधिक विफलताएं, उतने अधिक फ्री वादे।

(सिटी तमाशा, नभाटा, 12 फरवरी, 2022) 

     

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