समाज में साम्प्रदायिक नफरत फैलाकर अपना वोट बैंक मजबूत करने में जुटी उत्तराखण्ड की धामी सरकार को शायद ही यह इल्म हो कि उसी के राज्य में स्थित रुड़की आईआईटी ने भूस्खलन की पूर्व चेतावनी देने वाली एक तकनीक विकसित की है, जिसका उपयोग सुदूर केरल की राज्य सरकार करने जा रही है ताकि जनता सतर्क हो जाए और भूस्खलन से कम से कम नुकसान हो।
केरल में कुन्नूर से 60 किमी दूर कनिचर ग्राम पंचायत भूस्खलन और अतिवर्षा से अक्सर प्रभावित होता है। केरल के आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने इस गांव में राज्य का पहली स्थानीय प्रयोगशाला स्थापित की है जो इस ग्राम पंचायत के 4,600 घरों के निवासियों को रोजाना कई बार उस क्षेत्र-विशेष में होने वाले मौसमी बदलावों की सूचना व्हट्सैप से देती है। यह तकनीक 'लिविंग लैब' यानी जीवंत प्रयोगशाला कहलाती है। इसे नीदरलैण्ड्स (हॉलैण्ड) ने विकसित किया है। इस प्रयोग में सरकार, विशेषज्ञ, निजी एजेंसियां और नागरिक समाज, सभी शामिल हैं।
2022 में इस गांव में लगातार भारी वर्षा और भूस्खलनों से तीन लोगों की मौत हो गई थी और कई हेक्टेयर कृषि भूमि मलबे में दब गई थी। तब सरकार ने नीदरलैण्ड्स वाला प्रयोग यहां शुरू किया। एक प्रयोगशाला स्थापित की गई। अब दिन भर यहां के ग्रामीणों को मोबाइल पर यह पता चलता रहता है कि उनके इलाके में कब कितनी बारिश होगी, कितनी तेज हवाएं चलेंगी, तापमान कितना होगा, आदि।
चूंकि यह भूस्खलन के प्रति संवेदंशील क्षेत्र है, इसलिए अब इसी स्वचालित प्रयोगशाला में रुड़की आईआईटी द्वारा विकसित वह तकनीक भी शीघ्र लागू की जाने वाली है जो भूस्खलन की पूर्व चेतावनी दे देगी। इस बारे में Indian Express ने 19 अगस्त के अंक में पहले पेज पर विस्तार से खबर छापी है। भूस्खलन की पूर्व सूचना और उससे निपटने के बारे में सर्वाधिक जोर दिया जा रहा है।
केरल की यह अकेली स्वचालित स्थानीय मौसम प्रयोगशाला है। इसकी सफलता के बाद अब राज्य सरकार 13 और ग्राम पंचायतों में ऐसी प्रयोगशालाएं स्थापित करने जा रही है। हर ऐसे केंद्र पर एक अधिकारी की नियुक्ति भी की जा रही है जो इस तकनीक को लगातार विकसित करने काम करेगा ताकिआपदा के लिए पहले से पूरी तैयारी हो।
कनीचर ग्राम सभा में तैनात अधिकारी (उसे रेजिलेंस ऑफिसर नाम दिया गया है यानी तत्काल सामान्य स्थिति बहाल करने वाला) ने अखबार को बताया कि आपदा प्रबंधन में स्थानीय लोगों की भागीदारी सबसे महत्त्वपूर्ण है। विशेषज्ञ और अधिकारी तो बाद में वहां पहुंच पाते हैं। इसलिए स्कूलों में विद्यार्थियों से लेकर अस्पताल कर्मियों तक को आपदा प्रबंधन का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। आम जन को बताया गया है कि चेतावनी पाते ही बच निकलने का मार्ग क्या होगा, इमरजेंसी व्यवस्थाएं क्या होंगी, आदि।
60 स्कूलों के विद्यार्थियों को भूस्खलनों की चेतावनी पाते ही तत्काल क्या-क्या करें, इसका प्रशिक्षण दिया गया है। साथ ही, भूस्ख्लन हो जाने के तुरंत पश्चात क्या राहत कार्य और कैसे किए जाएं, इसका भी प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इस प्रकार हर स्कूल, हर अस्पताल और हर गांव के पास अपना आपदा प्रबंधन तंत्र तैयार है।
इस जीवंत मौसम प्रयोगशाला को सुदूर मौसम केंद्रों जैसा न समझा जाए। आम तौर पर मौसम केंद्र जिलावार वर्षा, तूफान , आदि की चेतावनी जारी करते हैं। जीवंत मौसम प्रयोगशाला एक ग्राम पंचायत में होने वाले मौसमों खतरों के प्रति आगाह करती है।
भूस्खलन के मामलों में तो यह प्रयोग अत्यंत उपयोगी होगा। धराली (उत्तराखण्ड) के सैलाब में हमने देखा कि मुखबा गांव के लोग ऊपर से विकराल मलबा आते देखकर सीटियां बजा-बजा कर या मोबाइल से धराली के लोगों को सतर्क कर रहे थे। सीटियां और मोबाइल कितना बचाव कर सकती हैं?
काश यह खबर केरल से पहले उत्तराखंड सरकार की ओर से मिलती! रुड़की आईआईटी द्वारा विकसित भूस्खलन की पूर्व चेतावनी देने वाले केंद्र उत्तराखंड के संवेदनशील क्षेत्रों में स्थापित किए गए होते तो कितनी जानें बच सकती थीं।
अब भी देर नहीं हुई है। बशर्ते की सरकार को अपने साम्प्रदायिक एजेंडे से बाहर देखने की फुर्सत हो।
Indian Express की पूरी खबर इस लिंक पर देख सकते हैं-
https://indianexpress.com/article/india/in-kerala-village-living-lab-provides-local-weather-forecast-landslide-alert-10197383/
-न जो, 20 अगस्त, 2025
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