धराली हादसे की चर्चा तत्काल दूसरी ओर मुड़ गई है। या, मोड़ दी गई है। हादसे के मूल कारण – असंगत विकास नीति- नेपथ्य में धकेल दिए गए हैं। बहस इस बात पर मच गई है कि बादल फटा क्या? क्या ग्लेशियर टूटा? क्या ग्लेशियरों के बीच बनी झील फटी? भाई, इसे वैज्ञानिक अध्ययनों के लिए छोड़ दो।
खीर गंगा में कभी भारी बाढ़ आई थी। उसका मलबा बाद में ठोस हो गया। नदी ने धारा तनिक बदल ली। उसी मलबे पर नया धराली बसता चला गया। ग्लेशियर टूटा या बादल फटा, खीर गंगा उस मलबे को अपनी ही जगह लेकर आई। वहां बेहिसाब बाजार, होटल, घर, दुकानें क्यों बनने दिए गए? इस पर बात हो।
केदारनाथ की एक धारक क्षमता है। हर तीर्थ व पर्यटन स्थल की होती है। उस पर विकास और पर्यटन का भारी बोझ लाद दोगे तो क्या होगा? केदारनाथ में भारी-भारी मशीनों से गहरी खुदाई और कंक्रीट का निर्माण जारी है। हर साल हेलीकॉप्टरों की उड़ान बढ़ती जा रही है। होटल और होम स्टे बढ़ते जा रहे हैं। जोर से बोलना मना होता था मगर हेलीकॉप्टर गरज रहे हैं। डी जे धमक रहे हैं। भीड़ इतनी होती है कि कंधे छिलते हैं। क्यों? इस पर बहस हो।
बदरीनाथ, यमुनोत्री, गंगोत्री का हाल छुपा है क्या? और बाकी धर्म स्थल-पर्यटक स्थल? गधेरों (नालों) तक में होटल-होम स्टे बन गए हैं। और बन रहे हैं। खड़ी ढाल पर बहुमंजिले निर्माण हो गए। होते जा रहे। करने दिए जा रहे। भीड़, शोर और कचरा कच्चे हिमालय को बेचैन, अस्थिर किए हुए है। बारिश का पानी बहने की जगह नहीं बच रही। क्यों? इस पर बहस करो।
सरकारी नीति है- आओ पर्यटको, और आओ। आओ उद्यमियो, और निर्माण करो। और हेलीकॉप्टर उड़ाओ। पहाड़ की चोटियां बिक रहीं। नदी तट बिक रहे। नदियां सुरंगों में डाली जा रही। पहाड़ पर ट्रेन दौड़ाने जा रहे। स्टोन क्रशर धड़धड़ा रहे। खड़िया खनन से गांव धंस रहे। खेतों में गड्ढे हो गए। कानून ताक पर। हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट चालाकी से किनारे किए। आदेश-निर्देश घुमाने में नौकरशाही पारंगत। नेता बेलगाम। माफिया-ठेकेदारों की तरक्की देखिए। जनता गरीबदास। पलायन कर रही। क्यों, इस पर कोई गंभीर चर्चा करेंगे?
चारधाम बारामासी सड़क बनाने के लिए कितने वृक्षों का कत्लेआम हुआ? सुप्रीम कोर्ट की बनाई उच्चाधिकार प्राप्त समिति ने कहा- सड़क चौड़ी मत करो। करनी हो तो ‘एलीवेटेड रोड’ बना लो। पेड़ व पहाड़ कम काटने पड़ेंगे। नहीं सुनी गई। इको सेंसिटिव जोन का कोई अर्थ होता है? अकेले भागीरथी इको सेंसिटिव ज़ोन में ही सड़क के लिए छह हजार देवदार काट दिए। गगन चुम्बी पेड़ थे। मलबा और चट्टानें रोकने का जरूरी काम करते थे। क्यों नहीं सुनी, किसने कान बंद किए? इस पर बात करो।
बादल फटेगा, ग्लेशियर टूटेगा, भूस्खलन होंगे। यह हिमालय की प्रकृति है। भू-हलचल को उत्प्रेरित करने वाला ‘मेन सेंट्रल थ्रस्ट’ हिमालय के बीच से गुजरता है। उसका सक्रिय होना कोई सरकार नहीं रोक सकती। इसलिए विकास नीति बदलने पर बात करो। पहाड़ और नदियां इनसान की गुलाम नहीं हैं। तुम्हारे कारण वे नहीं हैं। उनके कारण तुम हो। इसको दिल से समझो। केदारनाथ में शंकराचार्य की समाधि के लिए जो अपार कंक्रीट पाटा जा रहा है, उससे महादेव प्रसन्न नहीं होंगे। पहाड़ अवश्य खफा होंगे। हो ही रहे हैं। ऋषि गंगा में एवलांच ने एक पूरी परियोजना तहस-नहस कर दी। जोशीमठ धंस रहा है। धंसने वाली जगहें बढ़ रही हैं। हर बार ज़्यादा मौतें और ज़्यादा नुकसान हो रहा है। धराली की मौतों का आंकड़ा तो अभी आना है। सोचो। चर्चा करो तो इस पर करो। शायद कुछ बात बने।
- न जो (नवोदय टाइम्स, 09 अगस्त 2025 में प्रकाशित)
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