Friday, September 28, 2018

महिला पुलिस का क्रूर पुरुष-चेहरा




हमारे पुलिस बल में महिलाएं क्यों भर्ती की गयी होंगी? क्या सिर्फ इसलिए कि महिलाओं को पीटना हो, उन पर जुल्म करने हों तो उनकी जरूरत पड़ती है, क्योंकि पुरुष सिपाही का उन्हें हाथ लगाना अब अनुचित माना जाता है? जो काम पुरुष पुलिसकर्मी कर सकते हैं वह महिला क्यों नहीं कर सकतीं? क्या इस निर्णय में यह विचार भी शामिल है कि पुलिस कार्रवाई और जांच-पड़ताल के दौरान महिलाओं से सम्बंधित मामले सम्वेदनशीलता से निपटाए जा सकें, महिलाओं का पक्ष सही संदर्भों और उनके नजरिये से समझा जा सके?

महिलाएं चाहे तो गर्व कर सकती हैं कि महिला पुलिस वह सब करने में माहिर हो चुकी हैं जो उनके पुरुष सहकर्मी करते रहे हैं. गाली बकने से लेकर अत्याचार करने तक में उन्होंने बराबरी हासिल कर ली है. महिला होने के नाते उनमें महिलाओं के प्रति जो सम्वेदनशीलता होनी चाहिए थी, वह पूरी तरह कुंद हो चुकी है. उनके प्रशिक्षकों ने उन्हें 'पुलिस' बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. उन्हें शाबाशी दी जानी चाहिए.

हम बहुत तकलीफ के साथ यह बात इसलिए कह रहे हैं कि मेरठ के ताजा मामले में उस लड़की की पिटाई करने वालों में दो महिला पुलिसकर्मी शामिल थीं, जो 'लव-जिहाद' से हिंदू धर्म को बचाने का ठेका लेने वाले उद्दण्ड लोगों से त्रस्त थी, जिसे स्वयं सुरक्षा और आश्वस्ति की आवश्यकता थी. महिला पुलिस को देख कर उसने राहत की सांस ली होगी किन्तु उन दोनों गर्वीली सिपाहियों ने उसे शारीरिक ही नहीं मानसिक तौर पर भी बहुत प्रताड़ित किया. उन्होंने लड़की को पीटते हुए उसे लानत भेजी कि क्यों मुसलमान लड़के से दोस्ती करती है? तुम्हें इसके लिए शर्म नहीं आती? दोनों ने लड़की के  मुंह पर लिपटा स्कार्फ नोच लिया ताकि उसका चेहरा सब देखें यानी उसकी 'बदनामी' हो. पूरी तरह पुलिस बन जाने के बाद वे यह सोच नहीं सकतीं कि इसमें बदनामी के लिए क्या था.

मामला प्रचारित होने के बाद मामले में शामिल पुलिस जनों को निलम्बित कर दिया गया है. पुलिस महानिदेशक ने ट्वीट किया है कि मेरठ पुलिस के गैर-जिम्मेदाराना और संवेदनहीन रवैये को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. सच यही है कि हमारी पुलिस का व्यवहार अक्सर देश और संविधान को शर्मशार करने वाला होता है.

एक वयस्क छात्रा अपने दोस्त से मिलने उसके घर जाती है. दोस्त मुसलमान है. इस कारण हिंदू संगठनों के लोग हंगामा मचाते हैं कि यह लव जिहादका मामला है. पड़ोसियों के फोन करने पर पुलिस पहुँचती है लेकिन वह लड़के की पिटाई होते देखती रहती है.

यह पहली घटना नहीं है जब पुलिस का ऐसा अमानवीय एवं साम्प्रदायिक चेहरा सामने आया है. उग्र हिंदू राष्ट्रवाद के इस दौर में हिंदू संगठनों के उद्दण्ड कार्यकर्ता लव जिहादका हल्ला ज्यादा ही मचाने लगे हैं. हर बार पुलिस भी लड़के-लड़की को ही दोष देते और प्रताड़ित करते हैं. तथाकथित हिंदू संगठनों के हिंसक कार्यकर्ताओं को वे रोकते-टोकते नहीं.

पुलिस के ऐसे शर्मनाक व्यवहार से यह क्यों नहीं समझा जाए कि या तो पुलिस को ऐसे निर्देश हैं या उसे लगता है कि हमलावरों की पीठ पर मौजूदा सत्ता का हाथ है या फिर पुलिस की भी वही मानसिकता बन गयी है जो हिंदुत्व की रक्षा का झण्डा उठाने वाले हमलावरों की है. अन्यथा क्या वजह है कि हमलावरों को खदेड़ने की बजाय वे लड़की को पीटते हैं, मुसलमान लड़के से दोस्ती करने के कारण उसे लतड़ाते हैं?


('सिटी तमाशा' नभाटा, 29 सितम्बर, 2018)