Saturday, February 16, 2019

‘विकास’ के प्रतीक तारों के मकड़जाल


चंद रोज पहले कांग्रेस के लखनऊ रोड शो में बड़ी गाड़ी की छत पर खड़े राहुल, प्रियंका, ज्योतिरादित्य समेत  सभी नेताओं को तारों के मकड़जाल से उलझते, झुकते-बचते सभी ने देखा. फिर उन्हें बड़ी गाड़ी से उतर कर छोटी गाड़ियों पर  खड़े होना पड़ा. पार्टी महासचिव के रूप में प्रियंका का पहला दौरा टीवी चैनलों से पूरे देश में प्रसारित हो रहा था. चैनलों के एंकर रोड-शो के आयोजकों की इस बात के लिए आलोचना कर रहे थे कि उन्होंने यात्रा-मार्ग तय करते समय सड़कों के ऊपर लटकते-झूलते तारों पर ध्यान क्यों नहीं दिया. बेतरतीब तारों के मकड़जाल पर सवाल कोई नहीं उठा रहा था. आखिर वे इतने भद्दे और असुरक्षित ढंग से लटके ही क्यों है?

किसी भी शहर के किसी इलाके में चले जाइए, तरह-तरह के तार सड़क के आर-पार, मकानों की बालकनियों, छतों, खम्भों, पेड़ों से लटकते-झूलते दिख जाएंगे. कोई ठीक आपके सिर की ऊंचाई तक लटका है, कोई हाथ ऊपर उठाने पर टकरा जाता है, किसी को बंदरों ने अपना झूला बना रखा है, किसी पर पतंग उलझी है, किसी पर बरसात में चढ़ गयी बेल की सूखी लतरें अटकी हैं.

एक दौर था जब सड़कों की एक तरफ बिजली और दूसरी तरफ टेलीफोन के तार दौड़ा करते थे. ठीक-ठाक खम्भे होते थे और तार भी अपनी जगह दुरुस्त.  समय के साथ बिजली और टेलीफोन वालों  की चुस्ती जाती रही. बीएसएनएल लैण्डलाइन के दिन लद गये हैं और जो कनेक्शन बचे हैं उनके तार खम्भों की बजाय पेड़ों, इमारतों, बिजली के खम्भों पर बंधे है, जिनका झूलना-लटकना लाजिमी है. बीएसएनएल वाले अब खम्भे नहीं लगाते. 

बीएसएनएल को मात देती कई टेलीकॉम कम्पनियां आ गयी हैं. कहने को उनके कनेक्शन भूमिगत ओएफसी केबल से होते हैं लेकिन ऐसी सुविधा वे घर-घर नहीं पहुंचा सके, इसलिए वे भी अपने तार बिजली के खम्भों और पेड़ों पर बांध कर ले जाते हैं. कई बार तो वे कई-कई मकानों के छतों से तार फंदा कर कनेक्शन देते हैं. यही हाल टीवी केबल नेटवर्क वालों का है. सबको बिजली के खम्भों और पेड़ों का सहारा है.

बिजली के खम्भों पर बिजली के तार कम, दूसरे तार ज्यादा बंधे मिलेंगे. इतने ज्यादा कि खम्भे का गला घुटता होगा. पता नहीं बिजले विभाग वाले इसकी बकायदा इजाजत देते है या यूँ ही कुछ ले-दे कर धंधा चल रहा है. इन झूलते  तारों को अक्सर बालू-मौरंग के ट्रक, आदि तोड़ते रहते हैं. किसी भी सुबह आप पा सकते हैं कि आपका केबल टीवी काम नहीं कर रहा, या सुबह नींद खुलने के बाद अंगड़ाई  लेने की फोटो शेयर करने के लिए  फेसबुक खुल नहीं रहा. ब्रॉडबैण्ड डाउन है. तहकीकात करने पर घर के बाहर तार टूटे मिलेंगे.

कांग्रेस के रोड शो में हमने देखा कि सुरक्षाकर्मी तारों को फण्टियों से उठा-उठा कर रास्ता बनाने की कोशिश कर रहे हैं. ऐसा हास्यास्पद  दृश्य हम लगभग रोज देखते हैं. समझदार ट्रक ड्राइवर एक सहायक को  गाड़ी की छत पर इसी काम के लिए चढ़ाए रखता है कि वह ऊपर लटकते तारों को टूटने से बचाने के लिए उठाता रहे. इस प्रयास में गाड़ी इतनी धीमे चलती है कि जाम लग जाता है.

नई कॉलोनियों के विकास के समय घोषणा होती है कि सभी किस्म के तार भूमिगत होंगे लेकिन घोषणा ही भूमिगत हो जाती है. विभाग वाले तर्क देते हैं कि भूमिगत तार कब कौन एजेंसी खोद कर काट डाले, इसलिए ओवरहेडही ठीक है. टूटने पर जोड़ना आसान तो होगा.

तारों के यह मकड़जाल में हमारे विकासके सटीक प्रतीक हैं. देश और समाज ऐसे ही लटकता-झूलता-टूटता-जुड़ता चल रहा है.

(सिटी तमाशा, नभाटा, 16 फरवरी, 2019)  
  



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