‘लखनऊ जंक्शन पर आपका
स्वागत है’- प्लेटफॉर्मों से लेकर प्रतीक्षालय तक तीखी
उद्घोषणा से गूँज रहे थे. गुरुवार की शाम लगातार बताया जा रहा था कि ट्रेन संख्या
12533 प्लेटफॉर्म नम्बर छह से अपने निर्धारित समय 19.45 पर छूटेगी. शाम के 18.45
हो रहे थे. ट्रेन नं 15044 काठगोदाम-लखनऊ एक्सप्रेस के आने का वक्त हो चुका था.
उसके बारे में कोई सूचना न पूछताछ काउण्टर पर थी, न उद्घोषणा
में. रिकॉर्डेड आवाज लगातार पुष्पक एक्सप्रेस की सूचना प्रसारित किये जा रही थी.
मोबाइल पर नेशनल ट्रेन इंक्वायरी
सिस्टम बता रहा था कि 15044 ट्रेन आलमनगर स्टेशन पर खड़ी है. फोन पर यात्री बता रहे
थे कि ट्रेन काफी देर से वहीं खड़ी है. स्टेशन पर कई लोग परेशान घूम रहे थे कि इस
ट्रेन के आने की कोई सूचना क्यों नहीं दी जा रही. थोड़ी में साइट बताने लगी यह
ट्रेन अपने निर्धारित समय 18.45 पर लखनऊ
जंक्शन पहुँच चुकी है. दौड़ कर प्लेटफॉर्म देखे तो ट्रेन का कहीं अता-पता न
था.
घड़ी की सुइयाँ शाम के सात बजे से आगे
बढ़ चुकी थीं लेकिन उद्घोषणा सिर्फ पुष्पक एक्सप्रेस के बारे में हो रही थी. साइट
पर ट्रेन नं 15044 के बिना विलम्ब लखनऊ पहुँचने की सूचना थी जबकि उद्घोषणा में
इसका कोई जिक्र न था. साढ़े सात बजे बाद अचानक ट्रेन नं 15054,
लखनऊ-छपरा एक्सप्रेस के बारे में बताया जाने लगा कि वह प्लेटफॉर्म
नं एक से अपने निर्धारित समय 20.50 पर छूटेगी.
आधे घण्टे तक लगातार यही घोषणा होती रही. आने वाली किसी ट्रेन की कोई सूचना
किसी भी माध्यम से नहीं मिल रही थी. यात्री फोन से बता रहे थे कि ट्रेन नं 15044
आलमनगर से थोड़ा-सा सरकी और फिर खड़ी हो गयी. कई यात्री वहीं उतर कर अपने ठिकाने
जाने लगे थे.
पूरे दो घण्टे स्टेशन पर प्रतीक्षा
करने के बाद अंतत: 8.35 पर उद्घोषणा हुई कि ट्रेन प्लेटफॉर्म नं 2 पर आ रही है. जो
ट्रेन रेलवे इंक्वायरी साइट पर ठीक 6.45 बजे लखनऊ पहुँची दिखाई जा रही थी वह पूरे
दो घण्टे विलम्ब से लखनऊ जंक्शन पर पहुँची. ट्विटर और फेसबुक पर रेल मंत्री और
रेलवे बोर्ड के नाम भेजे गये संदेश बताते हैं कि ऐसा कई ट्रेनों के साथ हो रहा है.
वेबसाइट पर ट्रेन समय पर पहुँची दिखाई जाती है लेकिन वास्तव में वह बहुत विलम्ब से
आती है.
पूरे दो घण्टे स्टेशन पर इंतजार करते
हुए हम सोच रहे थे कि कितना कीमती समय बेकार जा रहा है. दो घण्टे में कितने जरूरी
रचनात्मक काम किये जा सकते हैं. कितने कीमती दिन बेकार जा रहे हैं. रेलवे क्यों
नहीं समझता होगा. ट्रेनें देरी से चल रही हैं. यह कोई नयी बात नहीं है लेकिन रेलवे
झूठी सूचना देकर यात्रियों को क्यों ठग रहा है?
साइट पर जानबूझ कर ट्रेनें राइट टाइम
दिखाना किसको खुश करने के लिए किया जा रहा है?
क्या इसी बिना पर रेल मंत्री ट्रेनों के बेहतर संचालन का दावा कर रहे हैं? जनता इस दावे पर कैसे विश्वास करे? यात्री तो परेशान
हैं. झूठी सूचनाएँ उन्हें और भी व्यथित कर रही हैं. इसका जनता पर जो प्रभाव पड़ना
है, पड़ ही रहा है. मंत्री और रेलवे बोर्ड खुश हों तो हों.
झूठी सूचनाओं से मंत्रियों और अफसरों
को खुश करने की सरकारी तंत्र की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है. कागज पर और वेबसाइट पर
सब चुस्त-दुरुस्त है. इससे कौन खुश हो रहा है?
ट्रेन लेट है तो कम से कम बता दीजिए. प्रयास कीजिए कि वे सही समय से चलें. झूठी
सूचनाएँ आपके नम्बर नहीं बढ़ाने वाली.
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