वर्तमान लोक सभा की अंतिम बैठक में समाजवादी पार्टी के
लाचार संरक्षक मुलायम सिंह यादव की एक टिप्पणी सुर्खियों में है. सपा समेत विपक्ष
के सभी नेता बगलें झांकते हुए उनके बयान पर सफाई देने में लगे हैं और भाजपा नेताओं
की बांछें खिली हुई हैं. मीडिया, विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक, इसे तूल दिये पड़ा है. मुलायम के बयान के विविध अर्थ लागाये जा रहे हैं.
आखिर मुलायम ने कहा क्या? उन्होंने
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को शुभकामनाएँ देते हुए कामना की कि आप फिर
प्रधानमंत्री के रूप में वापस आएँ. हम आपको धन्यवाद देते हैं कि आपने सबके साथ
मिलकर काम किया. हमने जब भी आपसे किसी काम के लिए कहा, आपने
उसी वक्त आदेश दिये. इसके लिए आपका सम्मान करते हैं.
आखिर मुलायम की इस टिप्पणी में ऐसा क्या है कि विपक्ष के
लिए आसमान टूट पड़ा और भाजपा को वरदान प्राप्त हो गया? इस बयान को यदि मुलायम की पिछले दो-तीन साल की स्थितियों और लोक सभा की
विदाई बैठक के परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो इसमें तूफान खड़ा करने जैसी कोई बात
नहीं है.
पहली बात यह कि राजनीति के हिसाब से अवस्था ज्यादा नहीं
होने के बावजूद मुलायम पर उम्र हावी हो गयी है. वे अस्वस्थ भी रहते हैं. अक्सर
भावुक हो जाते हैं और कुछ भी बोल देते हैं. समाजवादी पार्टी में विभाजन के बाद से
दोनों धड़ों के बीच किसी तरह अपना संतुलन साधने कोशिश में उनके अजब-गजब बयान मीडिया
की सुर्खियाँ बनते रहते हैं. कभी पुत्र अखिलेश को लताड़ते हैं और भ्राता शिवपाल के
मंच पर उन्हें आशीर्वाद देते हैं. उसके चंद दिन बाद अखिलेश के साथ खड़े होकर इशारों
में शिवपाल की आलोचना करते हैं. हर बार मीडिया इसे कभी उनका अखिलेश का साथ देने और
कभी शिवपाल को मजबूत करने के रूप में देखता है.
तो, लोक सभा में उन्होंने जो कहा पहले तो उसे
राजनैतिक मतभेद भुलाकर सबके मंगल की कामना करने के रूप में देखा जाना चाहिए,
जैसी कि अनतिम बैठक की परिपाटी है. सभी सदस्य इस अवसर पर वैचारिक
मतभेदों के बावजूद परस्पर निंदा-आलोचना से बचते हैं. विदाई भाषण में तारीफें ही की
जाती हैं. इसलिए अगर वे प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी की खुलकर प्रशंसा कर गये तो आश्चर्य नहीं. हाँ, उनके फिर से
प्रधानमंत्री बनने की कामना को राजनैतिक चश्मे से देखा जा रहा है जो इस चुनावी
वर्ष में स्वाभाविक है. इसे अधिक से अधिक राजनैतिक वानप्रस्थ की ओर अग्रसर मुलायम की भावनाओं के अतिरेक से अधिक नहीं समझा
जाना चाहिए. मुलायम का राजनैतिक समर्पण तो यह कतई नहीं है.
दूसरी बात यह कि, विपक्षी नेता अपने निजी या पार्टी के कामों
के लिए व्यक्तिगत रूप से प्रधानमंत्रियों
से अनुरोध करते हैं, यह कोई छुपी बात नहीं है. ‘हमने जब भी किसी काम के लिए कहा, आपने उसी समय आदेश
दिये’ कहना इसी संदर्भ में था. मार्च 2017 में उत्तर प्रदेश
के मुख्यमंत्री के रूप मेंआदित्यनाथ योगी के शपथ ग्रहण समारोह के मंच पर उपस्थित
होकर भी मुलायम ने चौंकाया था. याद कीजिए कि उस मंच पर मुलायम मोदी के कान में कुछ
फुसफुसाए थे. कई दिन तक उस फोटो के साथ मीडिया में यह चर्चा होती रही थी कि आखिर
मुलायम ने मोदी से कहा क्या होगा!
यह भी याद करना चाहिए कि 2014 में मोदी सरकार के शपथ ग्रहण
में अमित शाह ने मुलायम को पीछे की कुर्सी से खुद लाकर आगली पंक्ति में बैठाया था.
मुलायम के पोते तेजप्रातप यादव की शादी के समारोह में मोदी आशीर्वाद देने पहुँचे
थे. यह सब राजनैतिक शिष्टाचार हैं जो बरते ही जाने चाहिए. इनका अर्थ यह नहीं कि
मोदी मुलायम पर कृपालु हैं या मुलायम भाजपा-विरोध का अपना विचार त्याग कर मोदी-समर्थक
हो गये हैं.
हमने ऊपर मुलायम की अवस्था और अस्वस्थता की चर्चा की थी.
उनकी राजनैतिक पारी अब अधिक शेष नहीं है. जो मुलायम 1980 और 90 के दशक में
भाजपा-विरोधी राजनीति के शिखर-नेता थे, वह 2019 में विपक्ष ही नहीं अपनी पार्टी के
भी हाशिए पर हैं. मोदी को उनसे आज कोई
खतरा नहीं है. बल्कि, मुलायम ही उनसे व्यक्तिगत सहयोग और
कृपा के आकांक्षी हो सकते हैं. इसलिए उन्होंने मोदी की तारीफ के पुल बांध दिये हों
तो भी आश्चर्य नहीं.
मुलायम अब लाचार नेता हैं. वे एक ऐसे राजनैतिक परिवार के
मुखिया हैं जहाँ शक्ति के कम से कम तीन ध्रुव हैं. बड़े बेटे अखिलेश को स्वयं
उन्होंने मुख्यमंत्री बनाया और उस छोटे भाई की नाराजगी मोल ली जिसने उनके साथ कंधे
से कंधा मिलाकर समाजवादी पार्टी को खड़ा किया था. उस भाई से वे अलग नहीं हो सकते, इसलिए उसका साथ देना भी मजबूरी है. तीसरा शक्ति केंद्र उनकी दूसरी शादी से
जन्मा रिश्ता है. तीनों केंद्र अति महत्वाकांक्षी हैं. मुलायम तीनों के बीच झूलने
को मजबूर हैं. इसीलिए उनकी बातों को अब बहुत गम्भीरता से नहीं लिया जाता.
कभी क्षेत्रीय दलों और वामपंथियों के बीच सम्मान से स्वीकारा
जाने वाला तथा प्रधानमंत्री पद का बड़ा दावेदार यह समाजवादी पहलवान आज अपने ही
अखाड़े में चित है. विपरीत परिस्थितियों में भी ठसक से रहने वाले मुलायम अब न
सेनापति रहे और न संरक्षक के रूप में प्रभावशाली.
मुलायम का यह हश्र दयनीय लगता है. मोदी की अतिरेक भरी
प्रशंसा करना उन्हें और भी दयनीय बनाता है.
(news18.com, 14 फरवरी, 2109)
1 comment:
स्पष्ट आकलन। आजकल इलेक्ट्रॉनिक मीडिया इतना तेज है कि सबकी समझदानी पर हावी हो जाता है। लोग चैनलों पर दिये जा रहे तर्कों पर ही विचारधारा बना लेते हैं।
Post a Comment