Friday, May 10, 2019

अब और प्रतिभाशाली पीढ़ी पैदा नहीं होगी?


केंद्रीय शिक्षा बोर्डों के परीक्षा परिणाम आने के बाद कुछ रोचक और कुछ गम्भीर बहस छिड़ी हुई है. सोशल साइटों में राजनैतिक पालेबाजी और गाली-गलौज के बीच कभी-कभी अच्छी और विचारोत्तेजक चर्चा भी हो जाती है. पिछले कुछ दिन से 90 से 99 फीसदी, बल्कि इससे भी ज्यादा नम्बर पाने वाले बच्चों के बारे में  सचित्र-सगर्व पोस्ट देखने को मिल रही हैं. इस गर्वीली सफलता पर सवाल उठाने वाली टिप्पणियाँ पढ़ना रोचक ही नहीं, सुखद भी है.  

कोई यह पूछ ले रहा है कि क्या कोई माता-पिता 60-70 प्रतिशत नम्बर पाने वाले अपने बच्चों से भी इतना ही खुश है? जवाब में कोई कह रहा है कि हम तो बहुत खुश हैं कि हमारा बच्चा सिर्फ पढ़ाई में ही नहीं डूबा रहा, खेलते-कूदते और मस्ती करते हुए 75 फीसदी नम्बर लाया. ऐसे चंद माता-पिताओं को शाबाशी देने वाले भी हैं.

यह बहस भी खूब चल रही है कि इन परीक्षाओं में 99 प्रतिशत नम्बर लाने का विशेष अर्थ नहीं है. जीवन की परीक्षा अलग ही तरीके से होती है. यह बताने वाले भी हैं कि बहुत सफल और शीर्ष जगहों पर पहुँचे ज्यादातर व्यक्ति स्कूलों के टॉपर नहीं रहे. कुछ तो फेल भी हुए थे लेकिन व्याहारिक पाठ उन्होंने अच्छा पढ़ा और उसी ने जीवन में साथ दिया. 

सबसे गम्भीर बहस इस पर छिड़ी हुई है कि हिंदी या अंग्रेजी भाषा और संगीत जैसे विषय में 100 में 100 नम्बर कैसे दिये जा सकते हैं. गणित और विज्ञान में तो ठीक है कि पूरे नम्बर आते रहे हैं. क्या भविष्य में इनसे ज्यादा होशियार बच्चे नहीं होंगे?

इस साल आईएससी की 12वीं दर्जे की परीक्षा में दो बच्चों को 400 में 400 अंक मिले. नम्बरों के हिसाब से यह सफलता का अंतिम पायदान है. इससे दो दिन पहले सीबीएसई के बारहवीं कक्षा के नतीजों में दो टॉपर बच्चों को 500 में 499 अंक मिले. सिर्फ एक विषय में 99 अंक, बाकी सब में 100 में 100.

क्या यह परिणाम चौंकाता नहीं है? क्या हम प्रतिभा की पराकाष्ठा पर पहुँच गये हैं? सवाल बहुत प्रासंगिक हैं. भाषा और संगीत जैसे विषयों में पूरे अंक मिलना और भी बड़े सवाल खड़े कर रहा है. ये ऐसे विषय हैं जिनमें कोई कितनी ही निपुणता हसिल कर ले, उससे श्रेष्ठ करने की सम्भावना हमेशा बनी रहेगी. अपने समय के सर्वश्रेष्ठ भाषाविद्‍ या संगीतविद्‍ को भी सर्वकालिक श्रेष्ठता का प्रमाणपत्र कैसे दिया जा सकता है?

यह एवरेस्ट का शिखर नहीं है कि उससे ऊंचा चढ़ना सम्भव ही नहीं होगा. क्या आने वाले वर्षों में जो बच्चे पूरे-पूरे नम्बर पाएंगे, वे सब बराबर प्रतिभाशाली होंगे? रोचक होगा यह देखना कि जिन्हें आज पूरे नम्बर मिले हैं, वे भविष्य में क्या बनते और कहाँ पहुँचते हैं.

बच्चे और अभिभावक तो प्रसन्न होंगे ही, दोनों बोर्डों के पदाधिकारी भी खुशी से फूले नहीं समा रहे लेकिन कई शिक्षा विशेषज्ञ इस प्रवृत्ति को चिंताजनक मान रहे हैं. प्रसिद्ध शिक्षाविद्‍ कृष्ण कुमार ने कहा है कि मुख्य समस्या प्रश्न बनाने, उनके उत्तर लिखाने और मूल्यांकन के मशीनी तरीके में है, जो दोषपूर्ण है. कृष्ण कुमार इसे रटा-रटा कर इम्तहान पास कराने वालों की सफलता मानते हैं.

नई पीढ़ी निश्चय ही प्रतिभाशाली है. उनके लिए दुनिया गोल नहीं, सामने खुला सपाट मैदान है. उन्हें बुलंदियाँ छूनी हैं लेकिन उनकी मेधा का मूल्यांकन किसी मशीनी तरीके से ढाई-तीन घण्टे की परीक्षा में मिले नम्बरों से किया जा सकता है, यह धारणा कतई सही नहीं है. दूसरे, यह बच्चों को अनावश्यक नम्बर होड़, तनाव, कुण्ठा और हताशा में डालना भी है. 

(सिटी तमाशा, नभाटा, 11 मई, 2019)   


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