Sunday, September 15, 2019

ताकि जनता अपनी सुरक्षा के लिए ट्रैफिक नियम अपनाए



हर जगह नए ट्रैफिक कानून की चर्चा है. चर्चा नहीं, आतंक कहना चाहिए. सड़क किनारे जहां-तहां  हेल्मट बिक रहे हैं. गाड़ियों का प्रदूषण जांचने वाले कई केंद्र खुल गए हैं. हर केंद्र पर लम्बी कतारें हैं. जनता डरी हुई है.
इस डर पर दो मत हैं. एक कहते हैं कि इस देश में डर के बिना कोई काम सही नहीं होता. डर के मारे ही सही, दुपहिया वाले हेल्मेट लगाने लगे हैं. चौराहे पर रुकने लगे हैं, गाड़ियों के कागज बनवा रहे हैं. प्रदूषण जंचवा रहे हैं. यह सख्ती और बड़ा ज़ुर्माना बना रहना चाहिए. दूसरे मत वाले मानते हैं कि यह भयादोहन है. सड़क सुरक्षा के लिए लिए जनता को जागरूक और प्रेरित किया जाना चाहिए. यह सख्ती भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रही है. वगैरह-वगैरह.

केंद्रीय परिवहन मंत्री कहते हैं कि सड़क दुर्घटना में मौतों की बड़ी संख्या कम करने के लिए सख्त कानून ज़रूरी है. दूसरी तरफ, विपक्ष ही नहीं, भाजपा शासित कुछ राज्यों ने ज़ुर्माने की रकम कम कर दी है. अपना प्रदेश भी इसी राह पर है. लगता है, भाजपा को जनता की नाराज़गी का डर सताने लगा है. अगर सख्त ट्रैफिक कानून जनता की सुरक्षा के लिए ज़रूरी है तो राज्य सरकारें उसकी धार कुंद क्यों कर रही हैं?

ट्रैफिक नियम सख्ती से लागू हों, दो-पहिया वाले हेल्मेट पहनें, कार वाले सीट-बेल्ट लगाएं, गाड़ियां निर्धारित रफ्तार से सही दिशा में चलें, प्रदूषण नहीं फैलाएं, गलत जगह खड़ी न हों—यह सब बहुत आवश्यक है. हमारे देश में सबसे ज़्यादा जानें सड़क दुर्घटना में जाती हैं. इन मौतों को रोकना अत्यावश्यक है लेकिन यह बहस का विषय है कि क्या यह कानून को आतंककारी बनाकर रुकेगा?

एक पक्ष यह भी है और इसकी तरफ कम ही लोगों का ध्यान है कि जो दोपहिया चालक आनन-फानन में  हेल्मेट खरीद कर पहन रहे हैं, उनमें आधे से ज़्यादा लोग हेल्मेट का फीता नहीं बांधते. वह उनके कंधों पर झूलता रहता है. बांधे बिना हेल्मेट कोई सुरक्षा नहीं करता. सड़क किनारे बिक रहे सस्ते हेल्मेट कोई सुरक्षा नहीं देते. दुर्घटना में वे टूट जाते हैं. कानून और पुलिस दोनों का ध्यान इस ओर नहीं है. जनता का भी बहुत कम.

ट्रैफिक नियमों का पालन जनता स्वत: करे, इसके लिए जागरूकता और सख्ती दोनों आवश्यक हैं.  जनता उन्हें कैसे अपनाए जबकि जिम्मेदार लोग स्वयं निय्मों का सम्मान नहीं करते.पुलिस खुद ही नियमों का घोर उल्लंघन करती है. मंत्रियों-विधायकों और छुटभैए नेताओं के लिए नियम मखौल उड़ाने की चीज हैं. जनता किससे सीखे?
पुलिस हेल्मेट, सीट-बेल्ट और कागजात तो देख रही है लेकिन उलटी दिशा में चलने वालों पर उसकी नज़र नहीं है, जिनसे सबसे अधिक दुर्घटनाएं होती हैं. गाड़ियों में पीछे की लाल बत्ती न जलना हाई-वे में जानलेवा 

दुर्घटनाओं का बहुत बड़ा कारण है. शहरों में टेम्पो-ऑटो-डम्पर-ट्रॉली में खतरनाक ढंग से लगे नुकीले एंगल, सरिया, आदि लदे वाहन, जानलेवा डिवाइडर, स्पीड-ब्रेकर, सड़कों के गड्ढे, इन सब पर कौन ध्यान देगा? क्या जनता की सुरक्षा के लिए ये आवश्यक नहीं?

ट्रैफिक कानूनों पर सख्ती आवश्यक है लेकिन यह वीआईपी के लिए भी बराबर होनी चाहिए. इसे एकदम से लागू करने से पहले जनता को हफ्ते-दस दिन बिना ज़ुर्माना जांच करके सचेत किया जाना चाहिए था. सबसे ज़रूरी है जांच-पड़ताल करने वाली पुलिस का प्रशिक्षण ताकि वह जनता को दोस्ताना तरीके से समझाए कि यह उन्हीं की सुरक्षा के लिए है. अभी हो यह रहा है कि जनता इसे पुलिस का वसूली अभियान समझ रही है और उससे बचने के लिए नियम पालन का दिखावा कर रही है. कानून इस तरह लागू हो कि जनता आवश्यक सुरक्षा उपाय स्वत: अपना ले.

(सिटी तमाशा, 14 सितम्बर, 2019)


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