Friday, September 06, 2019

‘ऐप’ में ऐब देख रहे शिक्षक



शिक्षक दिवस से सरकारी प्राथमिक शिक्षक गुस्से में हैं. सरकार ने प्रेरणा ऐपनाम का जासूस उनके पीछे लगा दिया है. यही ऐप अब उनकी हाज़िरी भी लगाएगा. दिन में तीन बार उन्हें स्कूल के बच्चों के साथ सेल्फी भेजनी है ताकि साबित हो कि वे स्कूल में हैं और पूरे समय हैं. छुट्टी लेने के लिए भी इसी ऐप में आवेदन डालना होगा. ऐसी कड़ी निगरानी भला आज के सरकारी कर्माचारियों को क्यों मंज़ूर होने लगी!

प्राथमिक शिक्षक संघ ने अपने सभी सदस्यों से कहा है कि वे प्रेरणाऐप डाउनलोड नहीं करें और काला फीता बांध कर विरोध दर्ज़ करें. माध्यमिक शिक्षक संघ ने भी उनको समर्थन दिया है. पता नहीं कब ऐप की पहुंच उन तक भी हो जाए. संघ ने विरोध का मुख्य कारण यह बताया है कि इससे महिला शिक्षकों की प्राइवेसीखतरे में हैं. कैसी प्राइवेसी खतरे में है, इसका संकेत मुख्यमंत्री योगी ने ऐप जारी करते समय कर दिया था. उन्होंने कहा था- महिलाएं बेहतर शिक्षक साबित हो सकती हैं बशर्ते कि वे नियमित स्कूल जाएं.ऐप से सेल्फी भेजने के लिए तो नियमित स्कूल जाना पड़ेगा न !

सिर्फ महिला शिक्षकों को निशाने पर रखना गलत है. ऐवजी शिक्षकों की तैनाती में पुरुष शिक्षक बहुत आगे हैं. हजार-दो हजार रुपल्ली में किसी बेरोजगार को अपनी जगह स्कूल भेजकर राजनीति या धंधे में लिप्त शिक्षक हमारी शिक्षा व्यवस्था के बहुपरिचित अंग हैं. मुख्यमंत्री शायद इसका ज़िक्र करना भूल गए. खैर, बात परिहास की नहीं है. शिक्षक चाहें तो इस ऐप का लाभ उठाकर शिक्षा और स्कूलों की बदहाली पर सरकार के कान भी पकड़ सकते हैं. स्कूल की ढही या टपकती छत, उखड़े दरवाज़े, परिसर में बंधे जानवरों, आदि के साथ भी सेल्फी भेज सकते हैं- हर घण्टे पर एक. हाज़िरी के साथ हालात भी दर्ज़.

प्रेरणा ऐप से शिक्षक इसलिए बचना चाहते हैं कि वह उनकी प्राइवेसी पर तो नहीं, हां  आज़ादी पर अंकुश अवश्य लगाता है. सरकार से उनकी चुगली करता है. ऐसी व्यवस्था किसी सरकारी कर्मचारी को स्वीकार नहीं होती. नगर निगम की गाड़ियों से पेट्रोल चुराने वालों ने गाड़ियों में जीपीएस नहीं लगाने दिए या नोच कर फेंक दिए. सफाई कर्मचारियों ने वह घड़ी पहनने से इनकार कर दिया जो बता देती थी कि वे साइट पर हैं या दिल्ली-मुम्बई की तरफ. टेक्नॉलजी आज हर किसी की जासूसी कर सकती है. काश, विधायकों-मंत्रियों की कलाई में भी कोई ऐसी घड़ी बांध देता कि वे क्या करते-बोलते हैं!

प्रेरणा ऐप का उद्देश्य, जैसा कि सरकार का दावा है, प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था को चुस्त-दुरस्त बनाना है. उद्देश्य अच्छा है. इस काम पर लगना ही चाहिए लेकिन क्या सरकार यह समझती है कि शिक्षकों की स्कूलों में नियमित उपस्थिति से ही शिक्षा की गुणवता सुधर जाएगी? उपस्थित होने वाला शिक्षक पढ़ाने के लिए समर्पित है ही, यह कैसे सुनिश्चित होगा?

हमारी प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था अव्वल तो सरकारी और सामाजिक सोच की मारी है. मामला नीतिगत और नाजुक है. प्राथमिक स्तर पर बच्चों को क्या पढ़ाना है, कैसे पढ़ाना है, स्कूल कैसे होने चाहिए और शिक्षकों की क्या योग्यता और भूमिका होनी चाहिए, पहले तो इस पर विचार की ज़रूरत है. इस मूल मुद्दे को फिलहाल छोड़ भी दें तो यह विश्लेषण करना आवश्यक है कि यही प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था कोई पचास वर्ष पहले क्यों बेहतर थी. इस बीच क्या बिगड़ गया?

इसी शिक्षा प्रणाली में आज भी समर्पित शिक्षक मिल रहे हैं तो यह भी देखना होगा कि वे किसी ऐपके कारण नज़ीर बन रहे हैं या समाज के प्रति अपने उत्तरदायित्व का निर्वहन करके? क्या कोई ऐप सभी शिक्षकों में यह बोध करा सकता है?

(सिटी तमाशा, नभाटा, 07 सितम्बर, 2019) 



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