Monday, February 17, 2020

डिफेंस एक्स्पो जैसी चुस्ती अक्सर क्यों नहीं दिखती



पिछले सप्ताह डिफेंस एक्सपो की गहमागहमी थी. जनता में भी कौतुक और उत्साह था. पूरा सरकारी अमला इस अवसर को आलीशान ढंग से सम्पन्न कराने में जुटा था. शहर, खासकर प्रदर्शनी और आयोजन-स्थल, साफ-सुथरे थे. सेना का शौर्य प्रदर्शन गोमती किनारे हो रहा था और अपनी गोमती पहचानी ही नहीं जा रही थी. उसमें काफी पानी था और साफ भी. खर-पतवार, झाड़-झंखाड़ तो खैर साफ किए ही गए थे, कुछ जगहों पर उसकी तलहटी से मलबा भी निकाला गया था. नदी तट, जो अब रिवर फ्रण्ट कहलाता है, बहुत साफ और खूबसरती से सजाया गया था.

जब भी कोई बड़ा आयोजन होता है, सरकारी विभाग आयोजन स्थल और शहर को स्वच्छ बनाने और सजाने के लिए सिर के बल खड़े हो जाते हैं. इन्वेस्टर समिट हो या प्रधानमंत्री का शहर आगमन, सरकारी अमले की मुस्तैदी और कर्तव्य परायणता देखते ही बनती है. आयोजन स्थल और उधर जाने वाले मार्ग जगमगा उठते हैं. बाकी दिन वह कर्तव्य-बोध कहां चला जाता है?

नगर निगम हो या विकास प्राधिकरण या दूसरे संस्थान और विभाग, उनमें शहर को साफ-सुथरा और व्यवस्थित रखने की क्षमता है, यह इन आयोजनों से स्पष्ट हो जाता है. संसाधनों का रोना बेकार ही रोया जाता है. कमी संकल्प-शक्ति की है. डिफेंस एक्स्पो जैसी चुस्ती रोज नहीं हो सकती लेकिन उसकी आधी क्षमता भी लगाई जाए तो नागरिकों की अधसंख्य शिकायतें दूर की जा सकती हैं.

सबसे सुखद आश्चर्य गोमती नदी को देख कर हुआ. लग ही नहीं रहा था कि वह अपनी ही गंधाती, कचरे से भरी और शहर का मल-मूत्र बहाने वाली गोमती है. जाहिर है उसमें कहीं से साफ पानी छोड़ा गया होगा. इस बीच नालों से गन्दगी का प्रवाह भी अवश्य बंद किया गया होगा, वर्ना सारी कवायद बेकार हो जाती. जैसे पिछले वर्ष अर्धकुम्भ के समय गंगा किनारे के सभी उद्योग दो-तीन महीने के लिए बंद कर दिए गए थे ताकि उनके गंदे पानी से नदी का गंदा होना रुक जाए और संगम पर साफ पानी मिले.

उद्योगों को कुछ समय के लिए बंद करना या नालों का प्रवाह सप्ताह भर को रोक देना नदियों को साफ रखने के उपाय नहीं हो सकते. वह किसी आयोजन-विशेष के लिए दिखावा ही कहा जाएगा. इससे इतना स्पष्ट है कि सरकार नदियों की दुर्दशा को समझती है और जानती है कि क्या करने से नदियों की सूरत बदली जा सकती है. गंगा की सफाई के नाम पर अरबों रु बहा दिए गए लेकिन आज तक उसके तट पर स्थित उद्योगों को स्थानांतरित करने या उनका उच्छिष्ट पूरी तरह साफ करके नदी में बहाने का जरूरी काम नहीं किया जा सका. 
गोमती नदी में आज भी शहर के नाले गन्दगी बहा रहे हैं. सीवेज ट्रीटमेंट प्लाण्ट सिर्फ बजट खपाने को आधे-अधूरे लगे या बेकार पड़े हैं. इस काम को सर्वोच्च प्राथमिकता नहीं दी गई. सरकार संकल्प ले तो सभी नालों को सीवेज ट्रीट प्लांट से जोड़ना क्या कठिन है? एक दिन में नहीं होगा लेकिन बहुत समय भी नहीं लगेगा. जैसी इच्छा-शक्ति डिफेंस एक्स्पो के समय दिखाई गई, वैसी कर्मठता दिखानी होगी. किया जा सकता है, यह साबित हो चुका है. यही सरकारी अमला कर सकता है.

काम-चोरी, लापरवाही, भ्रष्टाचार हमारे सरकारी तंत्र की विशेषता बन चुके हैं. कोई काम कैसे शीघ्र और सबसे बढ़िया हो, यह निष्ठा-भाव ऊपर से नीचे तक नदारद है. काम में अड़ंगा लगाना और नियमों की चकरघिन्नी में घुमाना सबको खूब आता है. आला अफसर हों या नेता-मंत्री, सब जानते हैं कि कहां क्या बीमारी है. यह बीमारी ही सामान्य आचारण बन गई है. इसलिए डिफेंस एक्स्पो का आयोजन सिर के बल खड़े होना लगता है.

(सिटी तमाशा, नभाटा, 15 फरवरी, 2020) 
         

No comments: