Friday, February 28, 2020

इस नाजुक वक्त में हम और हमारे नेता


दिल्ली की सम्प्रदायिक हिंसा की दिल दहलाने वाली खबरों के बीच जब हम यह खबर भी पढ़ते हैं कि उत्तर प्रदेश विधान सभा में कई सदस्यों ने अपने वेतन-भत्ते, सुविधाएं और विधायक निधि बढ़ाने की मांग की तो कैसा लगता है?

दिल्ली में तीन दिन की हिंसा ने पूरे देश को दहलाया है. दिल्ली हाई-कोर्ट ने आधी रात को दिल्ली पुलिस को फटकारते हुए यह अकारण नहीं कहा कि हम 1984 जैसा फिर नहीं होने दे सकते. धर्म के आधार पर पैदा की जा रही नफरत का ख़ामियाजा यह देश विभाजन के बाद से अब तक समय-समय पर भुगतता रहा है. इस आग में बहुत कुछ अमूल्य भस्म हो जाता है. समाज आगे बढ़ने की बजाय गर्त में चला जाता है. उनके दुख-दर्द की कल्पना करना मुश्किल है जिनका सब-कुछ इस आग में जला दिया गया.

एक बार फिर यह साबित हुआ कि नफरती हिंसा में ज़्यादातर वे मारे जाते हैं जिनका इस सब से कोई सरोकार नहीं होता. रोजी-रोटी की ज़द्दोज़हद में लगे बेकसूर लोग इस आग की चपेट में आते हैं. साजिश रचने वाले आग लगाकर कहीं दूर से तमाशा देखते हैं. बात सिर्फ दिल्ली की नहीं है. हम सबको अपने गिरेबान में झांकना होगा कि नफरत की बढ़ती राजनीति में हमारी क्या भूमिका है.

आग लगाकर या पत्थर फेंककर ही इस आग में घी नहीं डाला जाता. सोशल मीडिया चालित इस दौर में हम अपने हाथ के मोबाइल से भी नफरत फैलाने का खतरनाक खेल जाने-अनजाने  खेलते हैं. फेसबुक और व्हाट्सऐप पर दिन-रात जो संदेश फॉरवर्ड करने में हम लगे रहते हैं, उसका कहां-क्या असर पड़ रहा है, सोचते हैं क्या? संदेश क्या है, किस मकसद से बनाया गया है, सच है या झूठ, किसको उससे फायदा हो रहा है और कौन उसके पीछे हो सकता है, इस पर हमें विचार क्यों नहीं करना चाहिए? इसके बिना हम नफरत फैलाने वालों के हाथों में खेल रहे होते हैं, उनके औजार बन जाते हैं, चिंगारी को शोला बना देते हैं.

अक्सर हैरत होती है कि कितने संवेदनहीन और स्वार्थी होते जा रहे हैं हम और हमारे नेता. दिल्ली जल रही थी और उत्तर प्रदेश विधान सभा में कई सदस्य अपने वेतन-भत्ते और सुविधाएं बढ़ाने की मांग कर रहे थे. इस मामले में सभी दलों के विधायकों में खूब एकता होती है.

एक विधायक जी को यह कष्ट है कि उन्हें विमान में सामान्य श्रेणी में यात्रा करने की सुविधा है जबकि अधिकारी बिजनेस या एक्जीक्यूटिव क्लास में सफर करते हैं. उनकी मांग थी कि इस अन्याय को दूर करके विधायकों को बिजनेस क्लास की सुविधा दी जानी चाहिए. किसी को महंगाई इतनी सता रही थी कि वेतन-भत्ते ऊंट के मुंह में जीरा लग रहे थे. कोई विधायक निधि दो करोड़ से सीधे दस करोड़ करने की मांग कर रहा था. एक विधायक जी  प्रदेश में कैसिनो (जुआ घर) खोले जाने की योजना के बारे में इस तरह पूछ रहे थे जैसे कि अब  किसी और चीज की आवश्यकता ही नहीं रही.

समाज नाजुक दौर से गुजर रहा है. जनता तरह-तरह से बहकाई-भड़काई जा रही है. नफ़रत की आग में वोटॉ की राजनीति की जा रही है. ऐसे में फूक-फूक कर कदम रखने की जरूरत है. जनता के जो नेता हैं, उनकी भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण है. हमें देखना चाहिए कि जो नेता हमने चुने, ऐसे बुरे वक्त में उनकी क्या भूमिका है. नेताओं को पहचानने का यह बढ़ियाअवसर है.  

(सिटी तमाशा, नभाटा, 29 फरवरी, 2019)  
  
    


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