Friday, August 07, 2020

महामारी को भी अयोध्या-सी चुस्त-चौकस व्यवस्था चाहिए


अयोध्या में राम मंदिर के भूमि पूजन का कार्यक्रम अत्यंत भव्य और व्यवस्थित था. पता नहीं बहुत सारे अन्य वीआईपी और आम जनता की बड़ी संख्या में उपस्थिति होती तो आयोजन कैसा निपट पातालेकिन जैसा कार्यक्रम हुआउसके लिए उत्तर प्रदेश सरकार और अयोध्या समेत पूरे प्रशासन को अपनी पीठ ठोकने का अधिकार है. राम मंदिर निर्माण की शुरुआत के लिए इतने ताम-झाम और बहु-प्रचारित कार्यक्रम को कोई अनावश्यक माने या पांच सौ साल के अन्याय का सर्वथा उचित प्रतिकारकिसी को इसमें संदेह नहीं कि आयोजन सफलता के सभी मानकों पर खरा उतरा.

इससे एक बात पुन: प्रमाणित होती है कि सरकार और प्रशासन अगर मन से चाह लें और जुट जाएं तो किसी भी कार्यक्रम या अभियान की सफलता असंदिग्ध हो जाती है. प्रश्न यहां यही है कि यह मन से चाहना और जुट जाना अन्य अति महत्त्वपूर्ण उत्तरदायित्वों को निभाने में क्यों नहीं दिखाई देता? जैसे, देश-प्रदेश इस समय कोरोना महामारी के विकराल दौर से गुजर रहा है. वैक्सीन पर भारत समेत दुनिया भर में परीक्षण चल रहे हैं लेकिन अभी इस बीमारी पर अभी मनुष्य नियंत्रण नहीं कर पाया है. जो अब तक समझा गया है, वह यह कि कुछ सावधानियों और कुछ चिकित्सा व्यवस्थाओं के साथ कोरोना को नियंत्रित कर उससे क्रमश: मुक्ति पाई जा सकती है.


अप्रैल मध्य से राष्ट्रीय स्तर पर बंदी तेजी से इसे फैलने न देने के लिए आवश्यक समझी गई. बंदी का दूसरा और भी महत्त्वपूर्ण उद्देश्य था कि बंदी के दौरान वे सभी आवश्यक चिकित्सा व्यवस्थाएं जुटा ली जाएंगी जो हमारे देश में पर्याप्त नहीं थीं. यह तय था कि जनसंख्या बहुत एवं सघन इस देश में बंदी खुलने के बाद कोरोना तेजी से पैर फैलाएगा. बीमारी का एक चरम-स्तर आएगा. उस समय हमें अधिक से अधिक अस्पताल, एम्बुलेंस, बिस्तर, वेण्टीलेटर, दवाइयां, आदि चाहिए होंगी.

क्या हमने युद्ध स्तर पर वैसी तैयारी की? क्या इस महत्त्वपूर्ण उत्तरदायित्व के प्रति हमारा समर्पण पूरा रहा? इसे अब सरकारी स्तर पर भी दबे स्वर में स्वीकार किया जा रहा है कि बंदी के दौरान कामगारों की रोजी-रोटी और आवास की व्यवस्था या उनकी घर-वापसी की व्यवस्था में चूक हुई. बंदी-पश्चात की आवश्यक व्यवस्था करने में हम कितने सफल रहे? यह सवाल कोरोना का विस्तार निरंतर हमसे पूछ रहा है.

ऐसा क्यों हुआ कि लेवल-दो और लेवल-तीन के यानी अत्यावश्यक चिकित्सा सुविधाओं वाले अस्पताल अभी से कम पड़ गए हैं जबकि बीमारी का चरम आने में अभी देर है? एम्बुलेंस समय पर मिल नहीं पा रहीं. जिम्मेदार अधिकारियों को सूचना दिए जाने के बाद भी जांच के लिए दो-तीन दिन तक प्रतीक्षा करना, हेल्पलाइन से सहायता न मिलना, किसी अपार्टमेण्ट या कॉलोनी को कई-कई दिन सैनीटाइज नहीं करना, भर्ती करने में अत्यधिक विलम्ब जैसी शिकायतें अब रोजाना बढ़ रही हैं. कई जगह कोरोना योद्धाओं में ही असंतोष फैला, क्योंकि उन्हें स्वयं संक्रमित होने पर तत्काल भर्ती नहीं किया जा सका या वेतन, आदि के लिए परेशान होना पड़ा.

अयोध्या का आयोजन हमारी क्षमता, कुशलता और भरोसे का प्रतीक है तो वह महामारी से निपटने में क्यों नहीं दिखाई दे रहा? यह महामारी गरीब-अमीर या आम एवं वीआईपी में अंतर नहीं कर रही. कई वीआईपी संक्रमित हुए हैं लेकिन पर्याप्त तैयारी नहीं होने की मार सदा की तरह आम और गरीब पर ही पड़ रही है. क्या महामारी से निपटने की व्यवस्था राम मंदिर के भूमि पूजन की भांति चुस्त और चौकस नहीं हो सकती थी?    

(सिटी तमाशा, नभाटा, 08 अगस्त, 2020)            

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