Friday, August 28, 2020

चिकित्सा क्षेत्र, टेक्नॉलजी और प्राथमिकता का प्रश्न


पेट की पुरानी व्याधि ने फिर तंग करना शुरू किया तो अपने चिकित्सक से सम्पर्क किया. कोरोना काल में अस्पताल जाना उचित नहीं. उन्होंने एक वेबसाइट पर जाकर समय लेने को कहा. वेबसाइट ने चिकित्सक से परामर्श के लिए एक दिन और समय निश्चित कर दिया. तय समय पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से समस्या पर चर्चा हुई. वेबसाइट पर ही कुछ दवाएं और परीक्षण सुझाए गए. नुस्खा डाउनलोड किया और इलाज शुरू.

टेली-मेडिसिन कोई नई बात नहीं. टेक्नॉलजी ने बहुत सारी नई राहें खोली हैं. जटिल प्रक्रिया को आसान और सुलभ बनाया है. काफी समय हुआ, अमेरिका-यूरोप के कई चिकित्सा संस्थान दूसरे देशों में और भारत के विशेषज्ञ चिकित्सक दूर-दूर के शहरों में ही नहीं खाड़ी के देशों तक टेली-मेडिसिन से परामर्श दे रहे हैं. वीडियो कांफ्रेंसिंग से कई जटिल शल्य क्रियाएं भी निर्देशित की गई हैं. इस सुविधा का विस्तार हो रहा है. इस कोरोना-काल में टेली-मेडिसिन बहुत फायदेमंद साबित हो रहा है.

देश के बड़े शहरों में चिकित्सा-तंत्र जितना आधुनिक और सक्षम है, उतना ही पिछड़ा और अक्षम भी. शहरों से लगे गांवों में भी सरकारी अस्पतालों का बुरा हाल है. सामुदायिक और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की स्थिति अत्यंत दयनीय है. डॉक्टर-नर्स की कमी ही नहीं, जरूरी उपकरणों का घोर अभाव है. क्या शहरों के बड़े अस्पतालों और विशेषज्ञ चिकित्सकों का लाभ टेली-मेडिसिन के माध्यम से सुदूर इलाकों तक नहीं पहुंचाया जा सकता?

स्वास्थ्य पर हमारी सरकारें बहुत ही कम खर्च करती हैं. वर्षों से स्वास्थ्य का बजट जीडीपी के एक फीसदी से कुछ ही ऊपर है. कोई सरकार इसे नहीं बढ़ा रही. कुछ पड़ोसी देश जन स्वास्थ्य पर हमसे अधिक खर्च करते हैं. अगर थोड़ा-सा बजट बढ़ाकर ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्रों और छोटे अस्पतालों में आवश्यक संसाधन जुटा दिए जाएं और उन्हें टेली-मेडिसिन से बड़े अस्पतालों से जोड़ दिया जाए तो स्थानीय स्तर पर आसानी से बेहतर चिकित्सा उपलब्ध कराई जा सकती है. एक बार बड़े अस्पतालों में इलाज करा चुके मरीजों को बाद का परामर्श भी अपने इलाके में मिल जाएगा. छोटी-छोटी व्याधियों को लेकर शहरी अस्पतालों की दौड़ बचेगी.

टेक्नॉलजी के बेहतर उपयोग में निजी संस्थान बहुत आगे हैं. कोरोना-काल में शायद ही कोई सरकारी कार्यालय हो जहां वर्क फ्रॉम होमकी सुविधा होगी. निजी कम्पनियां और उसके कर्मचारी इसका लाभ उठा रहे हैं और खतरे से बचे हैं. टेक्नॉलजी से सरकारी व्यवस्था को परहेज जैसा है. वास्तव में यह परहेज पारदर्शिता से है, जो टेक्नॉलजी की विशेषता है. हमारी सरकारें पारदर्शी होना ही नहीं चाहतीं. बातें खूब होती रहती हैं.

ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्रों को टेली-मेडिसिन के माध्यम से बड़े अस्पतालों से जोड़ना हमारे स्वास्थ्य तंत्र की कई खामियों को भर सकता है. गांव-गांव बड़े अस्पताल खोलना अत्यधिक व्यय और समय मांगते हैं. टेक्नॉलजी इस दोनों की आसानी से भरपाई कर सकती है. अब तो एक अच्छा मोबाइल फोन और अच्छी कनेक्टिविटी चमत्कार कर देती है.

छोटे-छोटे बच्चों को मोबाइल से स्कूली पाठ पढ़ाने पर आजकल बड़ा जोर है. इसकी उपयोगिता पर विवाद भी हैं. मोबाइल से चिकित्सा परामर्श का तो स्वागत ही होगा. गांवों के स्वास्थ्य केंद्रों का सामान्य चिकित्सक एक फोन से किसी जरूरतमंद को तत्काल विशेषज्ञ सलाह दिला सकता है. निजी क्षेत्र में ऐसा हो रहा है तो सरकार क्यों नहीं कर सकती.

प्रश्न इच्छा शक्ति और प्राथमिकताओं का है. बड़े परिवर्तन के दावे बहुत होते हैं. मूल प्रश्न यह है कि क्या गांव-गिराम के सामान्य जन तक आवश्यक स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचाना शीर्ष प्राथमिकताओं में शामिल है?

(सिटी तमाशा, नभाटा, 29 अगस्त, 2020)              
   

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