जैसा कि हमेशा होता है, बल्कि कर दिया जाता है, हाथरस या बलरामपुर या किसी भी जगह किसी युवती के बलात्कार और हत्या का मुख्य मुद्दा दूसरे विवादों में उलझा दिया जाएगा। जैसे, एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने फॉरेंसिक जांच का हवाला देकर घोषणा कर दी है कि हाथरस की दलित युवती से बलात्कार नहीं हुआ था। उसकी मृत्यु गर्दन की हड्डी टूटने की वजह से हुई। अब विवाद में पड़ते रहिए कि बलात्कार क्या है और हुआ था या नहीं या फॉरेंसिक रिपोर्ट में छेड़छाड़ तो नहीं हुई।
पुलिस प्रशासन यह भी कहने लगा है कि हाथरस कांड की आड़ में प्रदेश
में जातीय विद्वेष फैलाने और सरकार को बदनाम करने की साजिश की गई। प्रशासन अब जांच
करेगा कि इसके पीछे कौन लोग थे। उन पर कार्रवाई की जाएगी। मूल अपराध और अपराधी
कहीं नेपथ्य में चले जाएंगे।
बलात्कार और हत्या जैसे संगीन अपराधों को मुद्दा बनाकर
कांग्रेस या किसी भी विरोधी दल का सत्ता पक्ष के विरुद्ध आंदोलन करना स्वाभाविक
होना चाहिए लेकिन बहस इस पर होने लगेगी कि राहुल-प्रियंका को हाथरस जाने का ड्रामा
करने की क्या जरूरत थी। विपक्ष में कोई भी पार्टी हो, यही
करेगी। यह उसका लोकतांत्रिक अधिकार भी है। सरकार क्या और
क्यों कर रही है, यह सवाल भी बराबर पूछना होगा।
यह मुद्दा भी हर बार की तरह
पीछे छूट जाएगा कि हमारा समाज आज भी स्त्रियों के प्रति कितना संवेदनहीन और पाशविक
है। स्त्री और वह भी दलित, मनुष्य होने का दर्जा ही नहीं रखती। दलितों और स्त्रियों पर
अत्याचार होते जा रहे हैं। यह वही हाथरस है जहां साल-डेढ़ साल पहले कोर्ट के आदेश
के बावजूद एक दलित लड़की की बारात गांव के मुख्य रास्ते से नहीं आने दी गई। प्रशासन
ने ही बीच-बचाव करके दूसरा रास्ता बनवाया। यह कैसा ‘बीच-बचाव’ है जो अन्याय का समर्थन करता है? अपराधियों के
समर्थन में जातीय गोलबंदी होती है और मीडिया में आने के बावजूद प्रशासन के कान में
जूं नहीं रेंगती।
जीभ काटना और गर्दन तोड़ देना जैसा जघन्य अपराध बताता है कि
घृणा कितनी गहरी है। यह भी कि अपराधियों को कानून का भय नहीं रहा। कोई एक मामला
नहीं है और सिर्फ इसी सरकार के कार्यकाल की बात नहीं है। बलात्कार और हत्या
सामान्य अपराध बन गए हैं। वंचित वर्ग सर्वाधिक उपेक्षित और उत्पीड़ित है। क्या इसके
पीछे सरकारों और जांच एजेंसियों के संवेदनहीन रवैये नहीं हैं?
प्रशासन का दायित्व अपराधों को छुपाना या अपराध को कमतर
साबित करना नहीं, अपराधियों को पकड़ना, सबूत जुटाना और
अदालत तक पहुंचाना है ताकि उन्हें कड़ा दण्ड मिले। जब परिवार के विरोध के बावजूद प्रशासन
आधी रात को पीड़िता का अंतिम संस्कार करा देता है तो लगता नहीं कि उसकी प्राथमिकता
वही है जो होनी चाहिए थी। आगे-पीछे हुए दो मामलों में रात को पुलिस पहरे में किए गए
अंतिम संस्कार क्या साबित करते हैं?
महात्मा गांधी की जयंती पर देश ने उन्हें ससमारोह याद किया।
समारोह करने और श्रद्धा बरतने में कितना अंतर है! श्रद्धा में अनुकरण की भावना भी निहित
होती है। गांधी ने कहा था कि सरकारों को कोई भी फैसला लेते वक्त कतार में सबसे पीछे
खड़े व्यक्ति का ध्यान करना चाहिए कि फैसले का उस पर क्या असर पड़ेगा। समाज में सबसे
पिछड़े और वंचित वर्ग का कितना और कैसा ध्यान रखा जा रहा है?
गांधी सिर्फ तस्वीरों, मूर्तियों और समारोहों में हैं। हाथरस से बलरामपुर
तक हम जो होता देखते हैं उसमें गांधी कहां हैं?
(सिटी तमाशा, नभाटा, 03 अक्टूबर, 2020)
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