कोरोना काल की एक बड़ी चुनौती अब स्कूल-कॉलेज खोलना साबित होगी। सबसे बड़ी चुनौती करोड़ों की संख्या में बेरोजगार हुए कामगारों के लिए काम की व्यवस्था करना अब भी बनी हुई है। काफी आर्थिक गतिविधियां शुरू हो गई है लेकिन जिनके पैर ही उखड़ गए थे उनका स्थिर होना लम्बे समय तक बड़ी समस्या बना रहेगा। इस दौरान बहुत सारे लोगों ने नौकरियां खोई हैं। इनमें छोटी तनख्वाहों वाले भी है और भारी-भरकम पैकेज वाले भी। आधुनिक जीवन पद्धति ने भारी-भरकम पैकेज वालों की हालत भी दयनीय बना रखी है। कई बार वे कामगारों से भी बुरी हालत में पाए जा रहे हैं। खैर, यह बिल्कुल अलग मुद्दा है।
पंद्रह अक्टूबर से अपने प्रदेश में दसवीं से आगे की कक्षाओं
को चलाने की अनुमति सरकार ने दे दी है। साथ में शर्तें हैं और वे आसान नहीं हैं।
बताते हैं कि इसमें अभिभावकों का समर्थन है। अभिभावक लिखकर देंगे तब बच्चे स्कूल
जा सकेंगे। वहां छह फुट की शारीरिक दूरी रखेंगे, कॉपी-किताब, कलम, कुछ भी एक-दूसरे से साझा नहीं करेंगे, चिकित्सकीय जांच होगी, वगैरह-वगैरह्। स्कूल
प्रबंधकों के लिए इनका पालन करवा पाना आसान होगा? बच्चे,
दसवीं-बारहवीं के ही सही, आवश्यक सावधानियां
मानेंगे?
वे कौन और कितने अभिभावक है जो बच्चों को स्कूल भेजने के
लिए परेशान हैं? लगता है सारा जोर निजी और गैर-सहायता-प्राप्त विद्यालयों के
मालिकों-प्रबंधकों का ही है कि स्कूल खोले जाएं। पढ़ाई से कहीं अधिक यह व्यवसाय की
चिंता लगती है। इसके लिए उन्होंने प्रशासन की शर्तें स्वीकार कर लीं। कैसे वे
आधे-आधे छात्रों की कक्षाएं दो पालियों में चला पाएंगे, जबकि
ऑनलाइन कक्षाएं भी जारी रखनी होंगी, उनके लिए जो अब भी स्कूल
नहीं आना चाहते। यह बड़ी चुनौती है और उतना ही बड़ा खतरा भी।
कोरोना-त्रस्त दुनिया में जहां-जहां भी स्कूल खुले, वहां-वहां
महामारी बढ़ी है। बच्चों-किशोरों-युवाओं से कोरोना बंदी और सावधानियों का पालन
कराना बहुत मुश्किल साबित हुआ है। परिवार के बीच रहते हुए भी उन्हें घर से बाहर न
जाने के लिए मनाना कठिन रहा है। एक बार स्कूल खुले तो इन आजाद परिंदों को उड़ने से
कैसे रोका जा सकेगा? सावधानियों के पालन पर कौन नज़र रखेगा?
फिर, जो बच्चे अपने घर से दूर शहरों में पढ़ते
हैं, वे क्या करेंगे?
स्कूलों से संक्रमण फैला तो कौन जिम्मेदार होगा? स्कूल
प्रबंधक कह रहे हैं कि यह दायित्व उनका नहीं है। स्कूल परिसर में कुछ भी होता है
तो प्रबंधक अपने दायित्व से कैसे बच सकते हैं? क्या वे यह
कहेंगे कि अभिभावकों ने लिखित सहमति दी है इसलिए संक्रमण होने पर परिवार वाले ही
जानें? सभी अभिभावक स्कूल खोलने पर सहमत हों, ऐसा नहीं है। पढ़ाई और करिअर की चिंता स्वाभाविक ही सबको होगी, विशेष रूप से दसवीं-बारहवीं के बच्चों के लिए लेकिन अभी संक्रमण नियंत्रित
नहीं हुआ है। दूसरे दौर का खतरा सामने है।
तर्क यह दिया जा रहा है कि जब अधिकतर व्यावसायिक गतिविधियों
की अनुमति दे दी गई है तो स्कूल ही क्यों बंद रखे जाएं। कोरोना शीघ्र विदा होने
वाला नहीं और वैक्सीन का कोई भरोसा है नहीं। उसके साथ रहना सीखना है तो
स्कूल-कॉलेज भी खुलें। हमारे यहां स्कूल बहुत बड़ा व्यवसाय हैं। असल चिंता इसी
व्यवसाय की है।
सरकारी स्कूलों की आर्थिक हालत इतनी खराब है कि उनके पास
कोरोना के लिए आवश्यक सावधानियां बरतने के लिए बजट ही नहीं है। सरकारी और निजी
स्कूलों में संसाधनों की बहुत बड़ी खाई है। निजी स्कूलों को व्यवसाय की चिंता है तो
सरकारी स्कूलों को आवश्यक खर्चों की। अंकों की होड़ को शिक्षा न मानें तो वह दोनों
ही जगह मार खाती है।
(सिटी तमाशा, 10 अक्टूबर, 2020)
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