Friday, August 20, 2021

महामारी, बच्चे, स्कूल, आशंकाएं एवं प्रश्न

छोटे बच्चों के स्कूल भी अब खोले जा रहे हैं। डेढ़ साल बाद प्राथमिक स्कूलों के खुलने से कुछ खुशी, कुछ सनसनी और बहुत सारी आशंकाएं हैं। अभिभावक सबसे अधिक चिंतित हैं, हालांकि उनमें एक वर्ग ऐसा भी है जो चाहता है कि स्कूल खुलें और बच्चे स्वाभाविक जीवन जीएं। कोविड महामारी ने मानवजाति का बहुत बड़ा नुकसान किया है। बेहिसाब मौतें हुई हैं लेकिन बच्चों से इसने सहज और उन्मुक्त विकास छीना है। यह दौर उनकी स्मृति में एक आतंक की तरह मौजूद रहेगा।

घरों में कैद रहकर ऑनलाइन पढ़ाई का एक विकल्प था किंतु बहुत बड़ी संख्या में सुविधा विहीन बच्चे ऑनलाइन कक्षाओं से वंचित रहे। माता-पिता की रोजी छिन जाने से भूख, बीमारियों एवं मनोविकारों का भी वे शिकार हुए। ऑनलाइन पढ़ाई स्कूल जाने का विकल्प कतई नहीं हो सकती। अपने देश में इसकी कोई विशेष चिंता नहीं की गई। विकसित देशों में बंद स्कूलों से उपजी समस्याओं पर खूब मंथन हुआ है तथा इससे निपटने के उपाय निकाले जा रहे हैं।

कई देशों में कोविड के कारण बंद स्कूलों को शैक्षिक आपातकालकी तरह देखा गया है। यूनेस्कोएवं युनिसेफजैसी प्रतिष्ठित संस्थाओं ने देशों से अपील की है कि कोविड से बचाव के समस्त उपाय करते हुए स्कूलों को खोलने और खोले रखने का जतन करें। ऐसा आग्रह करने के कारण हैं। नन्हे बच्चों के लिए स्कूल सिर्फ किताबी पढ़ाई के लिए नहीं होते। उन्हें, ‘सीखने के केंद्रके रूप में देखा जाता है। इस  सीखने में गणित या भूगोल, वगैरह के पाठ उतना शामिल नहीं हैं, जितना कि जीवन का प्रत्यक्ष ज्ञान, जिसमें खेल, शैतानियां, दोस्तियां, टीचर से सम्वाद और अनेक तरह की गतिविधियां होती हैं। जो पढ़ सकते थे, उन बच्चों ने ऑनलाइन कक्षाओं में विषय तो पढ़ लिए लेकिन उनका मानसिक-शारीरिक विकास अवरुद्ध होने लगा।

स्कूलों की बंदी ने बच्चों के बीच की सामाजिक-शैक्षिक खाई को और भी बढ़ा दिया। आर्थिक खाई तो थी ही, उन प्रतिभावान बच्चों को भी पीछे धकेल दिया है जो गरीबी के बावजूद अपनी मेधा से स्कूल और समाज में महत्व पाते थे। युनिसेफने सभी देशों से अपील की है कि ऑनलाइन दौर में पिछड़ गए बच्चों को स्कूल खुलने पर बराबरी में आने का विशेष अवसर दें। हमारे यहां स्कूल खुल तो रहे हैं लेकिन क्या इस पक्ष पर स्कूल-प्रबंधन ध्यान देंगे? सरकारी प्राथमिक विद्यालयों की दुर्दशा किसी से छिपी नहीं है। उनमें अध्यापक ही नहीं हैं या बहुत कम हैं, वे कैसे इस पर अमल करेंगे? निजी स्कूलों क ध्यान अपनी कमाई पर अधिक है।

कोविड के तीसरे दौर के आने की चेतावनी बनी हुई है। स्कूल कब तक खुले रहेंगे, इस पर संशय है। पश्चिमी देशों में कई विशेषज्ञ यह मान रहे हैं कि यह वायरस बच्चों के लिए खतरनाक नहीं होगा, बशर्ते कि सभी टीचर और कर्मचारियों को दोनों टीके लग चुके हों। हालांकि इस राय पर भी सवाल उठ रहे हैं लेकिन वहां टीकाकरण सुनिश्चित करके स्कूल खोले जा रहे हैं। अपने यहां टीकाकरण की दर काफी सुस्त है।

करीब आधे अभिभावक इस पक्ष में नहीं हैं कि प्राथमिक स्कूल अभी खोल दिए जाएं। अभिभावकों की राय पूछी भी जा रही है। वे नहीं चाहेंगे तो बच्चों के स्कूल आने की बाध्यता नहीं होगी। यह अपने आप में एक नई विसंगति पैदा करेगा। दो पालियों में स्कूल चलाने से ही विसंगति पैदा हो गई है। दूसरी पाली में बहुत कम बच्चे आ रहे हैं।

महामारी अभी गई नहीं है। संक्रमण फैलने के खतरे के अलावा यह नई पीढ़ी के स्वाभाविक विकास का बड़ा सवाल भी है। इस पर बहुत गम्भीरता से विचार होना चाहिए। 

(सिटी तमाशा, नभाटा, 21 अगस्त, 2021)      

 

 

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