Friday, December 17, 2021

‘ऑर्गेनिक’ और ‘बायो’ का अजूबा घाल-मेल

बायो’, ‘ऑर्गेनिक’, ‘ग्रीन’- स्वास्थ्य के प्रति सचेत समाज की यह नई शब्दावली भोज्य पदार्थों के लिए है। यह ऑर्गेनिकके-68 गेहूं का आटा है, सर! निश्चिंत होकर ले जाइए।दुकानदार आटे के थैले में लगा बड़ा-सा हरा निशान दिखाता है, जिसमें हरे अक्षरों में ही ‘100% ऑर्गेनिकभी लिखा है। दाम डेढ़ गुना हैं। अनाज और सब्जियां छोड़िए, ‘ऑर्गेनिक चिप्सजैसी चीजें भी हैं। गुड़ भी ऑर्गेनिक हो गया है और जाने क्या-क्या। ग्रीन भी नया फण्डा है- विशुद्ध शाकाहारी। ऐसी सामग्री से बनी भोज्य वस्तुएं जिनमें सिर्फ प्राकृतिक वनस्पतियों से उत्पन्न तेल-मसालों का प्रयोग किया गया है।

हवा-पानी के प्रदूषण ने ही नहीं, अनाज-फल-सब्जी के प्रदूषण ने भी खाते-पीते वर्ग का माथा ठनका दिया है। खाने की चीजों से खतरनाक रासायनिक जहर हमारे शरीर में पहुंच रहा है। बेहिसाब कीटनाशकों और उर्वरकों के उपयोग ने माताओं के दूध को भी प्रदूषित कर दिया है। विज्ञानी चेतावनी दे रहे हैं। दुनिया में प्रकृति की ओर लौटनेकी सतर्कता बढ़ रही है। इसलिए ऑर्गेनिक’, ‘बायोऔर ग्रीनउत्पाद बाजार की शोभा बढ़ा रहे हैं। जो वहन कर सकते हैं, इन महंगी वस्तुओं को उत्साहित होकर खरीद रहे हैं और खुश हो रहे हैं कि इस जहरीली दुनिया में उन्हें अपने लिए एक सुरक्षित कोना मिल गया है।

लेकिन यह सुरक्षित कोना कितना सुरक्षित है? क्या गारण्टी है कि बाजार में जो सामान ऑर्गेनिकऔर ग्रीनकहकर मिल रहा है वह वास्तव में वैसा ही है जैसा कि पैकेट में दावा किया गया है? जो सब्जी आप ऑर्गेनिकसमझ कर महंगे दाम में खरीद लाए हैं, उसके उत्पादन में गोबर, आदि की प्राकृतिक खाद ही इस्तेमाल हुई है, यह कैसे सुनिश्चित हो? ‘ग्रीनलिखे पैकेट के भीतर जो सामान है उसके उत्पादन में पशु-पक्षियों से उत्पादित कोई चीज इस्तेमाल नहीं हुई है, इसकी क्या गारण्टी है? पैकेट पर जो लिखा है, वह कितना खरा और सच्चा है?

तीन दिन पहले इस बारे में दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक फैसला सुनाया है। एक याचिका पर निर्णय करते हुए अदालत ने कहा है कि प्रत्येक व्यक्ति को यह जानने का अधिकार है कि वह क्या खा रहा है। इसलिए खाद्य पदार्थों के कारोबारी यह सुनिश्चित करें कि चीजों के पैकेट पर उसे बनाने में इस्तेमाल वस्तुओं का साफ-साफ विवरण दें। विशेष रूप से यह अवश्य लिखें कि उसे बनाने में प्रयुक्त चीजें वनस्पतियों से प्राप्त की गई हैं या पशु-पक्षियों से। प्रकट रूप में शाकाहारीसामग्री भी अपने घटक तत्वों के कारण मांसाहारीहो सकती है।

वैसे, यह कानून पहले से है कि सभी वस्तुओं के पैकेट पर उसमें प्रयुक्त हर सामग्री और उसकी मात्रा का उल्लेख किया जाए। खाद्य सुरक्षा एवं मानक नियंत्रण (एफएसएसएआई) नियमावली इसीलिए बनी है। सवाल यह है कि उसका सही अर्थों में कितना पालन होता है। कोरोना के इस दौर में शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली सशक्त बनाने के लिए काढ़े से लेकर गिलोय, आँवला, तुलसी, जराकुश, जैसी वनस्पतियों के सेवन की सलाह दी जा रही है। बाजार इन उत्पादों से भर गया है। गिलोय के रस में विशुद्ध गिलोय ही है, कैसे पता चले? कोई देसी आयुर्वेदिक कम्पनी हो, या बहुराष्ट्रीय, उसके दावे पर कैसे भरोसा करें? झूठ और फरेब के इस दौर में सारे भरोसे हिल चुके हैं। विशुद्ध शाकाहार कहकर मांसाहार खिलाया जा रहा हो तो?

जहां जानवरों की चर्बी से विशुद्ध घी बनता हो और एफएसएसएआईका ठप्पा लगवाना बच्चों के खेल सरीखा हो, वहां पैकेट के बाहर दावे के साथ लिखे तथ्योंपर कितना भरोसा किया जा सकता है? राजधानी में एक आयोजन अभी पूरा हुआ है- ईट राइट मेला।यह राइटकैसे तय हो?  

 (सिटी तमाशा, नभाटा, 18 दिसम्बर, 2021)

              


1 comment:

सुधीर चन्द्र जोशी 'पथिक' said...

हाँ, यह आशंका तो हमेशा बनी रहती है कि जो खाद्य पदार्थ हम ऑर्गेनिक समझ कर खरीद रहे हैं, वह वास्तव में ऑर्गेनिक है भी या नहीं। जाँचने का कोई तरीका नहीं है। मिलावट के इस दौर में क्या असली है और क्या नकली, कैसे पता चले। सब भगवान भरोसे ही है।