नव वर्ष 2022 का आज पहला दिन है। शुभकामनाओं, संकल्पों, उत्सव एवं उल्लास का दिन। बीते हुए को पीछे छोड़ देने का दिन। उससे सीखने का दिन। भविष्य में देखने और उसे सुंदर बनाने की ठानने का दिन। प्रत्येक वर्ष ऐसे ही आता है- आशाओं, उमंगों, सपनों के साथ। यूं तो प्रत्येक सुबह भी ऐसे ही होती है, नए दिन के साथ नए सपनों-संकल्पों की लेकिन नए साल की बात ही कुछ और है!
क्या वर्ष 2021 ने हमें बहुत डराया-सताया
है? वह बहुत कड़वी, न भूली जा सकने वाली यादें छोड़ गया है?
हम सब कामना कर रहे हैं कि वैसा हाहाकार फिर न मचे। नहीं होगा,
इसकी क्या आश्वस्ति है? अब तक की यात्रा में
जो-जो भयानक हुआ, विनाशकारी हुआ, महाविपदाएं
आईं, उनकी ही आहटें कहां थीं? सन 2020
के अंतिम दिनों से कोविड नामक जिस महामारी ने सारी दुनिया को हलकान कर रखा है,
उसकी आशंका भी किसे रही होगी? अच्छे, खूबसूरत दिनों की कामना करते हुई भी भयानक दिन आ जाते हैं। ऐसा होता रहा
है लेकिन बुरा समय बीत जाता है। रवि के रथ के साथ मनुष्य आगे बढ़ता रहा है।
पिछले कुछ दिनों से एक तेंदुआ शहर में घुस
आया है। अपने तीखे, खूंखार पंजों से उसने कई को घायल किया है। वह पता नहीं कब,
कहां घात लगाए बैठा हो। वह बेचारा तो मनुष्य के जंगल में कहीं से
भटक कर आ गया है। वह स्वयं ही डरा हुआ और अपनी जान बचाने के लिए ही आक्रामक बना
हुआ है। शीघ्र ही वह पकड़ लिया जाएगा लेकिन क्या खूंखार जबड़े वालों से मुक्ति मिल
जाने वाली है? कितने भयावह, खूंखार
पंजे और जबड़े हमें चारों ओर से घेरे हुए हैं। क्या हम उनकी दिन-दिन तेज होती दहाड़
सुन रहे हैं? उन्हें पहचान रहे हैं? उनसे
मुक्ति का कोई जतन कर रहे हैं?
नव वर्ष की समस्त शुभकामनाओं पर महामारी
के एक और भयानक दौर की आशंका हावी है। तेंदुए और महामारी के बढ़ते प्रकोप से डरना और सावधान रहना
आवश्यक है। तेंदुआ बहुत दिन शहर में नहीं रह सकता और न ही महामारी लम्बे समय तक
आतंक मचाएगी। उसकी रोकथाम की कुछ विधियां आ चुकीं और कुछ अधिक कारगर विधियां आने
वाली हैं। मगर जो मानव विरोधी, समाज विभाजक प्रवृत्तियां गहरे पैठ रही हैं,
वे भटके तेंदुओं और जानलेवा महामारियों से भी भयानक और मनुष्य-विरोधी
हैं।
महामारी से बचाव के लिए लगाए गए ‘रात्रि
कर्फ्यू’ के कारण नव वर्ष के स्वागत का रंगारंग जश्न न मना
सकने का मलाल पाले बैठी पीढ़ियों को क्या इसका अनुमान भी है कि भविष्य के लिए कैसे-कैसे
जहरीले बीज बोए जा रहे हैं? आने वाला समय कैसी चुनौतियां लाने
वाला है? टीके, ‘मास्क’ और कुछ सावधानियों से महामारी से बचा जा सकता है। बढ़ती नफरत, हिंसा और मनुष्य विरोधी प्रवृत्तियों का नव वर्ष की हमारी शुभाशाओं,
सपनों एवं संकल्पों से कोई सबंध है? तो फिर इन
प्रवृत्तियों से निपटने के लिए क्या-क्या करना चाहिए?
मनुष्य सर्वदा बेहतरी के सपने देखता है।
तमाम टूटे सपनों के बाद भी वह नया, सुंदर सपना देखना जारी रखता है। उसे साकार करने
के जतन करता है। वह हार नहीं मानता। यही मनुष्य होना है। केदारनाथ अग्रवाल इसे ‘रवि के रथ का घोड़ा’ कहते हैं-
जो जीवन की
धूल चाटकर बड़ा हुआ है
तूफानों से
लड़ा और खड़ा हुआ है
जिसने सोने को
खोदा लोहा मोड़ा है
वह रवि के रथ
का घोड़ा है
वह जन मारे
नहीं मरेगा, नहीं मरेगा।
मनुष्य मरणशील है लेकिन उसकी यात्रा
अजर-अमर है। इस यात्रा को सुंदर और प्रेममय बनाने के लिए हमें अपनी भूमिका तय करनी है। कामना है कि हम सब
ऐसा कर सकें!
(सिटी तमाशा, नभाटा, 01 जनवरी, 2022)
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