Wednesday, January 17, 2024

जरा देखो तो शिक्षा का हाल

देश में स्कूली बच्चों की पढ़ाई का हाल जानने के लिए हर साल सर्वेक्षण करने वाली संस्था 'प्रथम' की 2023 की रिपोर्ट, जो 'असर' (एनुअल स्टेटस ऑफ एज्युकेशन रिपोर्ट) के नाम से जानी जाती है, 14 से 18 वर्ष के उम्र के किशोरों पर केंद्रित है। कल, 17 जनवरी 2024 को यह रिपोर्ट जारी की गई। हमेशा की तरह इस बार की कुछ चौंकाने वाले लेकिन कुछ आशा जगाने वाले तथ्य उभरे हैं। सबसे अधिक चौंकाने वाली जानकारी, हालांकि 'असर' रिपोर्टों को साल-दर-साल देखते रहने के बाद अब यह उतना चौंकाती नहीं, यह है कि ग्रामीण भारत में 14 से 18 साल के आधे से अधिक बच्चे तीन अंकों वाला भाग (गुणा-भाग वाला 'भाग') नहीं कर सकते जो कि कक्षा 3-4 में सिखा दिया जाता है। ये बच्चे समय का हिसाब लगाने से लेकर सामान्य गणित के सवाल हल करने में भी अटकते हैं। रिपोर्ट बताती है कि इन किशोर वय बच्चों में, जो चंद वर्षों में नौकारी की तलाश में निकलने वाले हैं, पढ़ाई सम्बंधी सामान्य क्षमताओं की भी कमी है।

नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार किशोरावस्था वाले ये अधिकसंख्य बच्चे 10वीं या उससे भी ऊपर की कक्षाओं में पहुंच जाने के बाद भी सामान्य पाठ पढ़ने-लिखने और गुणा-भाग-जोड़-घटाना करने में अटकते और परेशान होते हैं। 14-18 वय वर्ग के इन बच्चों में से 26.5% अपनी क्षेत्रीय भाषा की दर्जा दो की पाठ्य पुस्तक नहीं पढ़ पाते। 42.7 फीसदी किशोर-किशोरियां अंग्रेजी वाक्य नहीं पढ़ पाते और जो पढ़ लेते हैं उनमें से 26.5 % उसका अर्थ नहीं समझ सकते।  सामान्य गणित अब भी इनकी सबसे बड़ी समस्या है। जितने बच्चे सर्वेक्षण में शामिल किए गए उनमें से आधे से अधिक, बल्कि 56.7% तीन अंकों की संख्या को एक अंक से भाग देने का प्रश्न हल नहीं कर पाए। 

सर्वेक्षण में यह भी जांचा गया कि ये बच्चे दैनंदिन जीवन में उपयोग में आने वाली पढ़ाई, जैसे कि सामान्य हिसाब लगाने और आवश्यक लिखित निर्देश पढ़ सकने में कैसे हैं। चिंताजनक तथ्य यह सामने आया कि सिर्फ 45 प्रतिशत बच्चे यह हिसाब लगा सके कि एक शिशु रात में इतने बजे सोया और सुबह इतने बजे जागा तो वह कुल कितने घंटे सोया। पटरी (स्केल) से किसी वस्तु की लम्बाई नापने में 85 % बच्चे सफल रहे लेकिन तभी जब उन्हें पटरी पर शून्य से नापने को कहा गया। उसी वस्तु को आगे खिसका कर नापने को कहने पर केवल 40% बच्चे सही नाप कर सके। 'ओआरएस' (दस्त लगने पर दिया जाने वाला) घोल के पैकेट पर लिखे निर्देश पढ़ने में केवल 65.1% बच्चे सफल रहे। 

सामान्य गणित में लड़के, लड़कियों  से कुछ ही आगे पाए गए। सामान्य घटाने का सवाल 45% लड़कों ने सही हल किया जबकि 41.8% लड़कियां उसी सवाल को सही कर सकीं। किसी विशेष परिस्थिति में समय का सही हिसाब लगा पाने में 50.5% लड़के और 41.1% लड़कियां सफल रहीं। 

पढ़ाई-लिखाई का यह हाल तब है जबकि अब पहले की तुलना में बच्चे अधिक समय तक अपने स्कूल में रहने लगे हैं। सर्वेक्षण में पाया गया कि अब किसी विद्यालय में 14 से 18 आयु वर्ग के 86.5% बच्चे  भर्ती हैं। कोरोना महामारी के दौर से यह चिंता बनी हुई थी कि परिवारों में रोजी-रोटी के बढ़े संकट के करण बड़ी उम्र के बच्चे स्कूल छोड़ देंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ है। लड़कियों में स्कूल जाने और आगे तक पढ़ने की ललक बढ़ी है। उनकी उपस्थिति भी अब स्कूलों में अधिक संख्या मेंऔर अधिक समय तक रहने लगी है। गणित के सवाल हल करने और अंग्रेजी पढ़ पाने में लड़के ही आगे पाए गए। 

सर्वे में शामिल लड़कों में आधे के पास अपने ईमेल आई डी हैं जबकि लड़्कियों में यह प्रतिशत मात्र 30 है। घर से बाहर निकलने यानी यात्रा करने के मामले में लड़कियां अब भी अपने घरवालों पर अधिक निर्भर हैं।

रिपोर्ट के अनुसार सर्वेक्षण में शामिल 89% बच्चों के घर में स्मार्ट फोन है और उनमें से 92 फीसदी कहते हैं उन्हें उसका उपयोग करना आता है। मोबाइल इस्तेमाल के बारे में और भी कई तथ्य सामने आए हैं। अपना स्मार्ट फोन रखने के मामले में लड़के आगे हैं। स्वाभाविक ही, उसके उपयोग की जानकारी भी लड़कियों की तुलना में लड़कों में अधिक है। मोबाइल से ऑनलाइन सेवाओं का उपयोग करने वालों में लड़के 38 % हैं तो लड़कियां उसकी आधी यानी मात्र 19 प्रतिशत।

'असर' की केंद्र निदेशक विलिमा वाधवा कहती हैं कि आगे की पढ़ाई जारी रखने के लिए ही नहीं, रोजमर्रा के जीवन में भी सामान्य पढ़ाई-लिखाई आना बहुत जरूरी है। अगर भारत को विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनना है तो हमारी कामगार आबादी को विकास के मूलभूत पैमानों पर खरा रहना होगा।

'असर' का यह सर्वेक्षण देश के 26 प्रदेशों के 28 जिलों में 14-18 आयु वर्ग के 34,745 बच्चों में किया गया । उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में दो-दो और बाकी में एक-एक ग्रामीण जिला शामिल किया गया। 

2005 से नियमित 'असर' रिपोर्ट जारी करने वाली संस्था 'प्रथम' की मुखिया रुक्मिणी बनर्जी कहती हैं सामान्यत: हम 6-14 आयु वर्ग के बच्चों के बीच यह सर्वे किया करते थे लेकिन इसबार 14-18 आयु वर्ग को चुना गया। पूरी रिपोर्ट को इस साइट पर देखा-पढ़ा जा सकता है-

https://asercentre.org/wp-content/uploads/2022/12/ASER-2023-Report-1.pdf

- न जो, 18 जनवरी 2024

 


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