Monday, January 22, 2024

पहाड़ों पर क्यों नहीं गिर रही बर्फ़?

पिछले सप्ताह अखबार में एक खबर पढ़ी थी कि इस 'चिल्ला जाड़ा' में भी अभी तक कश्मीर में बर्फ नहीं गिरी है। खबर के साथ छपी फोटो में गुलमर्ग जैसी खूबसूरत जगह, जहां बरफ की मोटी पर्तों के बीच इन दिनों खूब स्कीइंग होती थी और पर्यटकों का जमावड़ा लगा रहता था, वहां मुरझाई-सूखी घास दिखाई दे रही है। पर्यटकों से रोजी-रोटी चलाने वाले कश्मीरी अपना दुखड़ा सुना रहे थे कि हिमपात न होने से सन्नाटा छाया है और वे अब नाउम्मीद हो रहे हैं। हिमाचल प्रदेश और उत्तराखण्ड के मित्र बता रहे हैं कि इन सर्दियों में अब तक न बारिश हुई है, न बर्फ गिरी है। ऊंचाई वाले कुछ इलाकों में छिट-पुट हिमपात अवश्य हुआ है लेकिन वह बहुत कम  है। यह प्रवृत्ति पिछले कुछ वर्षों से बढ़ती आई है।

दो दिन पहले The Third Pole (@third_pole) पर Nidhi Jamwal का लेख( https://www.thethirdpole.net/en/climate/scientists-say-worse-to-come-as-himalayan-snow-ceases/ )पढ़ने को मिला जो पूरी हिमालयी पट्टी में बर्फबारी न होने की गम्भीर समस्या पर केंद्रित है। निधि लिखती हैं कि हिमपात में साल-दर-साल कमी होने से हिमालयी क्षेत्र में स्थानीय जनता ही नहीं विज्ञानी भी बहुत चिंतित हैं क्योंकि पानी के भण्डार के लिए हिमपात होना जरूरी है। बर्फबारी को जल-सुरक्षा के रूप में देखा जाता है। हिमपात होता रहेगा तो भविष्य में पानी का संकट नहीं होगा। इसका सीधा अर्थ है कि सर्दियों के इस मौसम में भी कश्मीर में गुलमर्ग, उत्तराखण्ड में औली और हिमाचल में कुफरी जैसी जगहों का बर्फ के बिना होना  भावी जल-संकट का संकेत है। यह बहुत चिंताजनक बात है। 

हिमालयी क्षेत्र में हिमपात में कमी होते जाने के कारण क्या हैं? निधि के उपर्युक्त लेख में इस प्रश्न का उत्तर तलाशने की कोशिश की गई है। मौसम का रवैया बदल रहा है। विज्ञानी जिसे पश्चिमी विक्षोभ कहते हैं, और जिसके बार-बार होने से मौसम में उतार-चढ़ाव आते हैं,  उसकी दर कम होती जा रही है। भूमध्य सागर से उठने वाली शीतोष्ण यानी ठण्डी और गर्म आंधियों को पश्चिमी विक्षोभ कहा जाता है जो पूर्व की दिशा में बारिश लाती हैं। इसी पश्चिमी विक्षोभ के कारण पाकिस्तान समेत उत्तर भारत में वर्षा होती है और बर्फ गिरती है। ग्लेशियरों (हिमगलों) को बनाए रखने के लिए हिम्पात होते रहना आवश्यक है क्योंकि गर्मियों में ग्लेशियर लगातार पिघलते रहते हैं। ये ग्लेशियर जल का महत्त्वपूर्ण भण्डार हैं। 

इस वर्ष पश्चिमी विक्षोभ बहुत हल्का हुआ अर्थात भूमध्यसागर से उठी ठंडी-गर्म हवाओं के झोंके बहुत कमजोर रहे। इसी कारण यहां न पर्याप्त बारिश हुई और न बर्फ गिरी। भविष्य के लिए भी चिंताजनक संकेत मिले हैं। एक विशेषज्ञ ने कहा कि भविष्य के लिए पश्चिमी विक्षोभ के जो अनुमान हैं वे भी निराशाजनक हैं। सन 2050 तक पश्चिमी विक्षोभ की दर में 10 से 15 फीसदी की गिरावट की आशंका है। यह चिंताजनक है।

लद्दाख, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल और उत्तराखण्ड में, जहां खूब बर्फ गिरा करती थी, अब तक काफ़ी कम हिमपात होने की खबरें मिली हैं। लाहौल-स्पीति में तो इस समय चार-पांच फुट बर्फ पड़ी रहती थी। मौसम विभाग के अनुसार अगले एक हफ्ते तक भी इन क्षेत्रों में हिमपात का पूर्वानुमान नहीं है। ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है। कश्मीर और लद्दाख में सर्दियां अब पहले की अपेक्षा गर्म होने लगी हैं। लेह में तो यह सबसे गर्म सर्दियां हैं। इससे ग्लेशियरों के पिघलने की दर बढ़ी है और हिमपात न होने से ग्लेशियरों पर नई बर्फ नहीं जमा हो पा रही। दिसम्बर 2023 के पूरे महीने उत्तर भारत में हिमपात लगभग नहीं हुआ।

दूसरी ओर, मई, जून व जुलाई महीनों में पश्चिमी विक्षोभ में तेजी आ रही है जिससे मानसून में अत्यधिक वर्षा और तदजनित दुर्घटनाएं अर्थात बाढ़, भूस्खलन, आदि बढ़ रहे हैं। 

मौसम के मिजाज में यह बदलाव अचानक या अपने आप नहीं हो रहा। इसके भी मानव जनित कारण हैं। यह मनुष्य की गलत विकास नीतियों के कारण समूची प्रकृति पर पड़ रहे दुष्प्रभावों का परिणाम ही है।

- न जो, 23 जनवरी, 2024 (फोटो -बर्फ बिन सूखा गुलमर्ग, साभार - Indian Express)


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