Sunday, January 21, 2024

‘उत्तर प्रदेश’ का नया जब्तशुदा साहित्य विशेषांक

प्रदेश के सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग की पत्रिका उत्तर प्रदेशके जब्तशुदा साहित्य विशेषांक (जनवरी-अप्रैल 2023) की एक-एक कर चार प्रतियां (तीन पिछले वर्ष और एक चंद रोज पहले) मेरे पते पर पहुंची लेकिन एक पुस्तक को पूरा करने की व्यस्तता में उस पर ध्यान नहीं दे पाया था। अब अंक हाथ में लिया तो आवरण पृष्ठ देखकर स्मृति में कुछ कौंधा। बहुत देखा-देखा, पहचाना-सा लगा यह आवरण। उत्तर प्रदेशके चुनिंदा विशेषांकों का अपना संकलन खंगाला तो अगस्त, 1997 में स्वतंत्रता की पचासवीं वर्षगांठ के अवसर पर प्रकाशित जब्तशुदा साहित्य विशेषांक’ (वर्ष 26 अंक 4) की प्रति मिल गई। उस पर भी ठीक यही आवरण पृष्ठ प्रकाशित है। फिर, 2023 में प्रकाशित विशेषांक के अतिथि सम्पादक विजय राय का सम्पादकीय पढ़ा तो स्पष्ट हुआ कि यह पच्चीस साल पहले प्रकाशित विशेषांक का ही पुनर्प्रकाशन है।1997 में प्रकाशित महत्त्वपूर्ण और संग्रहणीय विशेषांक का सम्पादन भी विजय राय ने ही किया था।

स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ब्रिटिश सरकार ने बहुत सारा साहित्य, पर्चे-बैनरों से लेकर पत्र-पत्रिकाएं, कविताएं, कहानियां, नाटक, लेख, उपन्यास, व्यंग्य, आदि बड़ी संख्या में जब्त किए थे। ब्रिटिश सरकार की नीतियों और उसके दमन के विरोध और आजादी की लड़ाई के लिए खुली या दबी-ढकी ललकार लगाने वाले इस जब्तशुदा साहित्य का हमारे लिए, विशेष रूप से आने वाली पीढ़ियों के लिए, ऐतिहासिक तथा दस्तावेजी महत्त्व है। उस साहित्य को तलाशने का काम एक अभियान के रूप में या सम्पूर्णता में नहीं हुआ। स्वतंत्रता के बाद सक्रिय सेनानियों-सम्पादकों-लेखकों की स्मृतियों से (जैसे यशपाल, मन्मथनाथ गुप्त, रामकृश्ण खत्री, आदि) कुछ जब्त साहित्य प्रकाशित होता रहा तो कुछ शकील सिद्दीकी और सुधीर विद्यार्थी जैसे कुछ अन्य लेखकों के शोध-प्रयत्नों से समय-समय पर सामने आया। अब तक काफी जब्तशुदा सामग्री सामने आ चुकी है लेकिन ऐसा समस्त साहित्य हमारे सामने आ चुका है, ऐसा बिल्कुल नहीं कहा जा सकता। 1997 में, जब देश स्वतंत्रता की पचासवीं वर्षगांठ मना रहा था, सूचना एवं जन सम्पर्क विभाग, उत्तर प्रदेश की पत्रिका उत्तर प्रदेशने विभिन्न विधाओं में जब्त साहित्य का एक संकलन विशेषांक के रूप में प्रकाशित किया था, जिसका खूब स्वागत हुआ था। उस विशेषांक में क्रांतिकारी भगवानदास माहौर की पत्नी यमुनादेवी माहौर, क्रांतिकारी दुर्गा भाभी (दुर्गा देवी वोहरा) आज़ाद हिंद फौज के सेनानी-संगीतकार कैप्टन रामसिंह, लक्ष्मी शंकर व्यास, शिवदान सिंह चौहान के लेख, भगत सिंह के महत्त्वपूर्ण दस्तावेज; फांसी की कोठरी से रामप्रसाद बिस्मिल के उद्गार; ‘न्यू इंडियन लिटरेचरकी जब्ती पर वीरेंद्र यादव का लेख; रवींद्रनाथ टैगोर, इकबाल, सागर निजामी, जां निसार अख्तर, अशफाक उल्ला खां, अली सरदार जाफरी, रामप्रसाद बिस्मिल, सोहनलाल द्विवेदी, समेत कुछ अज्ञात कवियों की जब्त हुई कविताएं; प्रेमचंद, ‘कौशिक’, ‘उग्र’, सज्जाद जहीर, चतुरसेन शास्त्री और अहमद अली की जब्त कहानियां; शरत चंद्र के जब्त उपन्यास पथेर दाबीपर विष्णु प्रभाकर का लेख; शचींद्रनाथ सान्याल की जब्त पुस्तक बंदी जीवन’, ‘नील दर्पण नाटक के रोचक मुकदमे के विवरण के साथ और भी ऐतिहासिक, महत्त्वपूर्ण और पठनीय-संग्रहणीय सामग्री शामिल थी।

पुनर्प्रकाशित विषेषांक में वह सारी सामग्री तो है ही, काफी कुछ नया भी जोड़ा गया है। विनायक दामोदर सावरकर का लेख स्वाधीनता का पहला संघर्ष’ (कालापानी की कैद में पहुंचने के बाद सावरकार द्वारा अंग्रेजों से बार-बार माफी मांगने के बहुत पहले लिखी गई उनकी उल्लेखनीय किताब का अंश) जो 1997 के विशेषांक में भीतर के पन्नों पर प्रकाशित हुआ था, इस बार पहला लेख वर्तमान राजनैतिक स्थितियों के कारण ही बनाया गया होगा। पुनर्प्रकाशित विशेषांक में जो नई सामग्री जोड़ी गई है उसमें चांदके फांसी अंक पर सुधीर विद्यार्थी, सुंदरलाल जी की जब्त हुई दस्तावेजी पुस्तक भारत में अंग्रेजी राजपर कुमार वीरेंद्र और राजगोपाल सिंह वर्मा, रवींद्र नाथ टैगोर की रूस की चिट्ठीपर अवधेश प्रधान, कहानी संग्रह अंगारेपर शकील सिद्दीकी, प्रेमचंद के सोजे वतनपर डॉ ए एन अग्निहोत्री और आशुतोष पार्थेश्वर, एवं जब्त नज्मों पर सुहेल वहीद के लेखों के अलावा जब्तशुदा कुछ और कहानियां एवं कविताएं शामिल किए गए हैं। इस तरह 338 पृष्ठों का यह वृहदाकार विशेषांक और भी समृद्ध हुआ है।             

स्वतंत्रता के अमृत वर्ष में इस संवर्धित विशेषांक के पुनर्प्रकाशन का इसलिए भी स्वागत किया जाना चाहिए कि न केवल पिछली पीढ़ी उस दौर की बेचैनी और संघर्ष को बार-बार याद करे, बल्कि इधर पली-बढ़ी पीढ़ियां समझ सकें कि देश की आज़ादी सिर्फ खोखले नारों और दावों से नहीं मिली थी। इस संग्राम में सभी धर्मों-वर्गों, जातियों-जनजातियों का योगदान था। यह जब्तशुदा साहित्य विशेषांक गवाह है कि यह देश सभी धर्मों-सम्प्र्दायों के बलिदान से बना है। इसे याद रखने की आज सबसे अधिक आवश्यकता है। उसके लिए कई पीढ़ियों ने अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया था। साहित्यकार-पत्रकार बिरादरी भी इसमें पूरे जोश से शामिल थी। इसलिए इस आज़ादी और विविधताओं वाले देश के बहुरंगी समाज एवं संस्कृति की हर कीमत रक्षा की जानी चाहिए।

- न जो, 22 जनवरी 2023

 

  

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