बदनाम बुलडोअर को चाहे जितना कोसिए, गाली देने के लिए उसके खोजकर्ता का नाम गूगल बाबा भी नहीं बता पाएंगे। ‘आ बैल मुझे मार’ कहना चाहें तो दूसरे बाबा मिल जाएंगे। बीसवीं शताब्दी के पहले दशक में यूरोप में ऐसी मशीनें बननी शुरू हुईं जो बीहड़ इलाकों में न केवल चल सकें बल्कि चट्टानों, टीलों को खोद सकें, अधिकाधिक मलबा ढोकर भूमि को समतल कर सकें। दूसरे विश्वयुद्ध तक आते-आते ये ‘डोजर’ मशीनें, जिन्हें आज बुलडोजर कहा जाता है, इतनी चल निकली थीं कि न केवल सड़कें बनाने, रेल पटरियां बिछाने और नींव खोदने के काम आने लगी थीं, बल्कि युद्ध क्षेत्र में आगे-आगे रास्ता बनाने, बंकर ध्वस्त करने, आदि के खूब काम आईं। मित्र देशों ने हिटलर की फौजों के विरुद्ध इनका खूब इस्तेमाल किया था।
बुलडोजर ने निर्माणों के इतिहास में जितने अच्छे काम किए होंगे, उनकी सारी
ख्याति आज डूब चुकी है। यह मशीन जनता के सीनों में धड़धड़ाने लगी है। जितने खतरनाक कानून
इस देश में है, वे इसकी कार्रवाइयों के आगे फीके पड़ गए हैं। सीबीआई,
एनएसए, आदि एजेंसियां उसके आगे कुछ नहीं हैं। किसी
के घर या दुकान के आगे गलती से भी बुलडोजर खड़ा कर दीजिए तो वह सपरिवार भूलुण्ठित हो
जाएगा और पाताल से भी पल भर में हाथ बांधे अवतरित हो जाएगा।
बुलडोजर हमारे समय का सबसे बड़ा प्रतीक बन गया है। वह नेताओं
को ‘बाबा’, ‘मामा’ जैसी पदवियों से
विभूषित कर रहा है। उसके स्मृति चिह्न नेताओं को भेंट किए जा रहे हैं। ब्रितानी प्रधानमंत्री
उसके साथ फोटो खिंचा रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट उसका संज्ञान ले रहा है। वह चुनाव जिताऊ
नारा बन गया है। वह ‘अभियुक्तों’ को पल
भर में ‘अपराधी’ साबित कर दे रहा है। वह
गरीब से गरीब को भी ‘मलबे का मालिक’ बना
दे रहा है। उस पर कविताएं लिखी जाने लगी हैं। कहानियां सामने आने में कुछ वक्त लगेगा।
वह आज सर्वाधिक इस्तेमाल होने वाला शब्द है। उसका अब एक ही अर्थ है जो उसके अनाम आविष्कारक
और ढेर सारे निर्माताओं ने भी कभी नहीं सोचा होगा।
जिस तरह एक खोंचे वाला भी आयकर विभाग के नोटिस पर अपनी आय का
साफ-साफ हिसाब नहीं दे सकता, उसी तरह हमारे यहां कोई भी निर्माण शत-प्रतिशत
वैध घोषित नहीं किया जा सकता। यदि गलती से कोई निर्माण पूरी तरह वैध निकल भी आए तो
जैसा श्रीलाल शुक्ल ने ‘राग दरबारी’ में
लिखा है- ‘उस ट्रक को एक ओर से देखकर ड्राइवर कह सकता है कि वह
नियमानुसार सड़क के बाईं तरफ खड़ा है और पुलिस वाला दाईं तरफ से देखकर उसका चालान कर
सकता है कि ट्रक सड़क के बीचोंबीच खड़ा है।’
बुलडोजर की महिमा अपरम्पार है। वह सही को गलत और गलत को सही
ठहरा सकता है। बुलडोजर जिस सफाई और कुशलता से कानून को भी ढहा सकता है, उसकी मिसाल
हम आजकल खूब देख रहे हैं। नए जमाने की मॉम बच्चे को दूध की बोतल पकड़ाते हुए कहने लगीं
हैं- ‘चुपचाप पी ले, नहीं तो बुलडोजर आ
जाएगा।’ बच्चे फौरन जवाब देते हैं- ‘कुरकुरे
दिला दो वर्ना बुलडोजर आ जाएगा!’ इस संवाद से मॉम सहम जाती हैं
और डैड को कोविड जांच कराने की जरूरत पड़ जाती है।
विरोधियों के सपनों में दिन में भी बुलडोजर आता है। घर या दुकान
के बाहर मोटरसाइकिल की आवाज भी बुलडोजर जैसी लगती है। रक्तचाप बढ़ने से लेकर पेट के
शूल तक का कारण डॉक्टर बुलडोजर को मान रहे हैं। हर वक्त मुनाफे की सोचने वाले बुलडोजर
में निवेश कर रहे हैं। बेरोजगारों में बुलडोजर चलाना सीखने की होड़ मची है। इति नहीं, बुलडोजर
कथा अनंता!
(सिटी तमाशा, नभाटा, 23 अप्रैल, 2022)
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