Sunday, May 01, 2022

नैतिकता के पाठ और जमीनी सच्चाई

मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी ने सभी मंत्रियों को निर्देश दिया है कि वे अपनी और अपने परिवार की सम्पतियों का ब्योरा प्रस्तुत करें। ऐसा निर्देश सरकार के आला अफसरों के लिए पहले से ही होता है। पता नहीं कितने अधिकारी यह विवरण प्रस्तुत करते रहे हैं। योगी जी ने अपने पिछले कार्यकाल में भी मंत्रियों को यह निर्देश दिया था। पता नहीं कि सभी मंत्रियों ने इस निर्देश का पालन किया या नहीं। यह जानकारी पारदर्शिता के लिए सार्वजनिक होनी आवश्यक है। भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने में भी यह मददगार है। वैसे, जिन मंत्रियों ने चुनाव लड़ा था उन्होंने नामांकन दाखिल करते समय अपनी और परिवारजनों की चल-अचल सम्पत्ति का विवरण शपथ-पत्र के रूप में दिया ही होगा। दोनों चुनावों के बीच किसकी सम्पत्तियों में कितना अन्तर आया, यह शपथपत्रों के तुलनात्मक अध्ययन से देखा जा सकता है। चुनाव के समय मीडिया ने ऐसा अध्ययन किया भी था।

वैसे, चल-अचल सम्पत्ति और शपथ पत्रों का रिश्ता कम रोचक नहीं होता। रोचक क्या, पहेली समझिए। जो वास्तव में होता है, वह शपथ पत्र में नहीं होता। जो शपथ पत्र में होता है वह असत्य नहीं होता लेकिन पूर्ण सत्य भी उसे कैसे कहा जा सकता है! मेरा कुछ नहीं है लेकिन सब मेरा है। मेरे नाम से नहीं है लेकिन मेरा है। नाम में क्या रखा है! नाम से अच्छा बेनाम है। बेनाम इस देश में अद्भुत तकनीक है और गजब की हैसियत रखता है। बेनाम का कोई हिसाब नहीं। वह शपथ पत्र क्या, हर पकड़-धकड़ से परे है। इस किस्से को क्या खींचें। पहेली आप बूझते ही हैं। खैर, बात मंशा की है जो अच्छी है।   

मुख्यमंत्री ने एक और स्वागत योग्य निर्देश जारी किया है। सोने-चांदी के मुकुट मंत्रियों को स्वागत या  सम्मान स्वरूप स्वीकार नहीं करने चाहिए। मुख्यमंत्री स्वयं किताबों और पुष्प-गुच्छों के अलावा कोई  उपहार नहीं लेते। मुकुट-सुकुट तो राजशाही-सामंतशाही के प्रतीक हैं। हमारा तो लोकतंत्र है। इसमें मुकुट-सुकुट पहनना शोभा नहीं देता। ऐसे सभी प्रतीकों से मंत्रियों को दूर रहना चाहिए जो बीते बदनाम युग के प्रतीक हैं। तलवार, गदा, त्रिशूल, वगैरह दिखवा लीजिए कि किस श्रेणी में आते हैं। बुलडोजर का प्रतीक नया है। वह चलेगा। हां, उसकी कीमत पांच हजार रुपए से अधिक नहीं होनी चाहिए।

कीमत के बारे में कॉर्पोरेट जगत की मार्केटिंग रणनीति बड़ी रोचक है। पांच हजार रु कहने-सुनने में अधिक लगता है। इसलिए मूल्य रखा जाता है- 4999 रु। इससे उपभोक्ता को लगता है कि चार हजार ही का तो है! इसीलिए आप पाएंगे कि दो सौ रु की वस्तु पर चिप्पी लगी होती है 199 रु की। दो सौ अधिक लगता है। 199 उससे काफी कम होता है! इसलिए उपहार देने वाले उसकी कीमत पांच हजार रु की बजाय 4999 रु बता सक्ते हैं। वैसे, भारतीय परम्परा में उपहार का मूल्य बताना अपमानजनक माना जाता है। उपहार अमूल्य होता है, एक सौ रु का हो या पांच लाख का। यह उपहार पाने वाले की श्रद्धा पर है कि वह उसे अमूल्य मानकर सरकारी कोषागार में जमा करवाए या 4999 रु का मानकर घर ले जाए!

ज्ञानी जन बता गए हैं कि नैतिकता, पारदर्शिता, ईमानदारी, आदि निर्देशों से माने जाने वाले गुण नहीं होते। वे मनुष्य की अपनी भीतरी शक्ति से उत्पन्न होते हैं। बच्चों को प्राथमिक कक्षाओं से ही नैतिक शिक्षा के पाठ पढ़ाए जाते हैं। न कोई ईश्वरचंद विद्यासागर बनता है न लालबहादुर शास्त्री। देश का नाम भ्रष्ट देशों की सूची में ऊपर ही ऊपर चढ़ता जाता है। तो भी पाठ्य पुस्तकें छपना बंद थोड़ी न करते हैं। शंका मंशा पर नहीं की जाती। बीज ही खराब हो तो फसल कहां से अच्छी पैदा हो!

(सिटी तमाशा, 30 अप्रैल, 2022)

 

                

No comments: