Sunday, May 15, 2022

मुहब्बतें तो सरहदें तोड़कर रहेंगी, जनाब!


जैसे 'रेत समाधि' (बुकर पुरस्कार के लिए सूचीबद्ध गीतांजलिश्री का हिंदी उपन्यास) की 'माँ', नायिका चंद्रप्रभा देवी का उम्र के चौथे पड़ाव में बजिद पाकिस्तान जाना और अपनी किशोरावस्था के दिनों को, मुहल्ले व मकानों को और पड़ोसियों व संगी-साथियों को भेटने की काल्पनिक कहानी सच हो रही हो। 

पुणे निवासी 90 वर्षीय रीना वर्मा शीघ्र ही रावलपिण्डी जाकर 'प्रेम गली' के 'अपने घर' को देखने, अपनी किशोरावस्था के संगी साथियों, पड़ोसियों (यदि बच रहे हों) से मिलने और उन दिनों की यादों को जीने का अपना सपना सच करने वाली हैं। आज के The Times Of India में उनकी यह रोमांंचक, त्रासद और सुखद कथा छपी है। इसे पढ़ना सरहदों को बेमानी साबित करके मुहब्बत ज़िंदाबाद कहना है, जैसे 'रेत समाधि' की मां कहती और अंतत: साबित करती है। चंद्रप्रभा देवी एक उपन्यास की काल्पनिक चरित्र है। रीना वर्मा इस देश की और 'उस देश' की यानी इस पार की और उस पार की जीती जागती, बाहोशोहवास शख्सियत हैं। उक्त अखबार में अम्बिका पण्डित  का लिखा रीना वर्मा का किस्सा पढ़ने के बाद आपसे साझा किए बिना रहा न गया।


1947 में रीना वर्मा 15 साल की थीं जब देश विभाजन की मारकाट ने एक मुल्क के बीच खूनी सरहद खींच दी थी। उस सरहद के आर-पार राजनैतिक मकसद से भड़काई गई नफरत का सैलाब था। मार-काट मची थी। ज्ञात मानव इतिहास की सबसे बड़ी आबादी दर-ब-दर हो रही थी। रावलपिण्डी की 'प्रेम गली' वहां रहने वाले भाई प्रेमचंद छिब्बर के नाम से जानी जाती थी। प्रेमचंद रीना के पिता थे। विभाजन की मारकाट में उस इलाके की लड़कियों को सेना के शिविर में शरण लेनी पड़ी। इस छिब्बर परिवार को सोलन और बाद में दिल्ली विस्थापित होना पड़ा। 'प्रेम गली' में फिर इस परिवार का लौटना नहीं हुआ। सारी मुहब्बतें उसी गली में छूट गईं। ज़िंदगी ने नई करवट ली।  शादी हुई, बच्चे हुए, मां-बाप नहीं रहे, उम्र सीढ़ियां फलांगती रही लेकिन रावलपिंडी में छूट गई प्रेम गली और उसका छिब्बर-घर यादों से कतई न मिटा।। 

रीना की जो जड़ें उखड़ते वक्त वहीं दबी रह गई थीं, उनकी टीस ही थी जो दो साल पहले कोविड-दौर के अकेलेपन में उन्होंने फेसबुक पर रावलपिण्डी की प्रेम गली और 'अपने घर' की उन दिनों की कुछ यादें साझा कीं। वहां पड़ोसियों के बीच वह तोशी के नाम से दुलारी जाती थी। उन्होंने यह भी लिखा कि काश, वे एक बार रावलपिण्डी जाकर अपने उस घर को देख पातीं, उस मिट्टी को स्पर्श कर सकतीं! फेसबुक पर की गई तोशी की यह तमन्ना रावलपिण्डी के सज्जाद भाई के दिल को छू गई। उन्होंने प्रेम गली का वह घर खोज निकाला और उसके फोटो और वीडियो अपलोड कर दिए। फिर तो तोशी उर्फ रीना की यादें जोर मारने लगीं। उन्होंने अपनी ख्वाहिश अपनी बेटी सोनाली के सामने जाहिर की। सोनाली ने मां की इच्छा पूरा करनी चाही। पाकिस्तान की यात्रा के लिए आवश्यक वीजा हेतु आवेदन किया गया लेकिन आवेदन नामंजूर हो गया।

रीना ने हार नहीं मानी। पुरानी यादें अब और भी जोर मारने लगी थीं। फेसबुक पर यादों और तस्वीरों का आदान-प्रदान जारी रहा। एक पाकिस्तानी पत्रकार की सलाह पर रीना ने अपनी इच्छा के बारे में एक वीडियो और कुछ तस्वीरें साझा कीं। पाकिस्तान की विदेश राज्य मंत्री हिना रब्बानी खार की नज़र इस पर पड़ी और हाल ही में रीना को 90 दिन के लिए पाकिस्तान का वीजा जारी हो गया। सरहदें टूट गईं!

रीना वर्मा रावलपिण्डी की प्रेम गली में 'अपने घर' को देखने के लिए अब अत्यंत उत्सुक और अधीर हैं। उनका इरादा जुलाई में वहां जाने का है। 'टाइम्स' की अम्बिका पण्डित को उन्होंने बताया कि मैं नहीं जानती कि हमारे उस घर में अब कौन रहता है लेकिन मुझे भरोसा है कि वे मुझे घर में जाने और उसे देखने देंगे। वे उस गली के लोगों और उन सबसे मिलने को लालायित हैं जिन्होंने उनके सपने को सच करने में सरहदें तोड़ दीं।

रीना उर्फ तोशी को अपने कुछ पड़ोसियों की याद है। अपने पारिवारिक दर्जी शफी की भी याद है जिन्होंने उस मार-काट में उनकी मां को अपनी दुकान में छह घण्टे तक छुपाए रखा था। वह नफरतों का दौर था लेकिन दूसरे की मदद करने और जान बचाने वाले लोग कम न थे। रीना नफरत और हिंसा के उस क्रूर दौर की याद नहीं करना चाहतीं। किसी के प्रति कोई दुर्भावना भी नहीं। जो याद है और खूब याद है वह मुहब्बतें हैं जो आज भी जोर मारती हैं। इस दौर में हमारे समाज में बढ़ती नफरत पर भी उन्हें हैरत होती है।

विभाजन ने विशाल आबादी को जड़ से उखाड़ दिया था। रीना के परिवार को भी सब कुछ छोड़कर आना पड़ा। रावलपिण्डी वाला बड़ा-सा घर उनकी मां कभी नहीं भूली थीं। एक बटलोई और एक मर्तबान जो वे रावलपिण्डी से ला पाए थे, आज भी रीना के पुणे वाले फ्लैट में सम्भालकर रखा है जहां वे अकेली रहती हैं। उस बटलोई और मर्तबान में अब फूल सजे रहते हैं और मुहब्बत की खुशबू बिखेरते हैं। 

क्या उन्हें इस उम्र में और इस दौर में अकेले पाकिस्तान जाने में दर नहीं लग रहा? नहीं, वे कहती हैं- मेरे दिल में आज भी उस समय की रावलपिण्डी धड़क रही है।  वहां जाने में कतई कोई डर नहीं।

चंद वर्ष पूर्व google का एक विज्ञापन जारी हुआ था जिसमें विभाजन के समय बिछड़ गए दो दोस्तों को उनके बेटे-बेटी ने Google की सहायता से न केवल फोन पर मिलवाया था, बल्कि भेंट भी करा दी थी। रंगमंच एवं फिल्मों के मंझे कलाकार विश्वमोहन बडोला ने उसमें यादगार अभिनय किया था। पाकिस्तान से आकर जब उनका दोस्त अचानक फ्लैट की घण्टी बजाता है तो दरवाजा खोलकर 'यूसुफ, ओए!' चीखते हुए बचपन के बिछड़े दोस्त  को पहचानकर उसे गले लगाते बडोला जी का भाव-विह्वल चेहरा  भूलता नहीं।

मैं अपनी कल्पना में 90 वर्षीय रीना वर्मा को आने वाली जुलाई की किसी सुबह रावलपिण्डी की प्रेम गली में किसी  पुराने चेहरे को उसी तरह गले लगाकर 'जव्वाद, ओए' कहकर बिलखते देख रहा हूं। 

-नवीन जोशी, 15 मई 2022  

(चित्र और मूल सामग्री साभार The Times of India तथा ambika.pandit@timesgroup.com)



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