Saturday, May 28, 2022

पर्यटन और तीर्थयात्रा की जिम्मेदारी भी समझिए

इन गर्मियों में पहाड़ों पर जाने का किसका मन नहीं करता। जो सामर्थ्यवान है वह मौका मिलते ही चल देता है। गाड़ी वालों के लिए अब पहाड़ों पर पहुंचना बहुत आसान हो गया है। बिना गाड़ी वाले भी जाते ही हैं। उत्तराखण्ड में चारधाम यात्रा सत्र चल रहा है। पर्यटकों के अलावा तीर्थयात्रियों का भी रेला लगा हुआ है। केदारनाथ जैसी दुर्गम जगह भी अब सुगम हो गई है। हेलीकॉप्टर से सीधे बाबा केदार के द्वार पर उतर सकते हैं। सोशल मीडिया पर धन्य-धन्य तीर्थयात्रियों और गदगद पर्यटकों की तस्वीरों की भरमार है। कोरोना से राहत के बाद जैसे रेला टूट पड़ा है।

इन तस्वीरों के बीच कुछ सचेत-चिंतित यात्रियों ने ऐसी भी तस्वीरें डाली हैं जो दुख, क्रोध और वितृष्णा से भर देती हैं। ऐन केदारनाथ में ही नहीं, पूरे यात्रा मार्ग, खासकर पड़ावों के आस-पास कचरे के ऐसे ढेर लगे हैं, जैसे सफाई कर्मियों की हड़ताल के दौरान शहरों में लगते हैं। बेशुमार प्लास्टिक, बिस्कुट-नमकीन-चिप्स-आदि के पैकेट, गुटके-वगैरह के पाउच, बोतलें, कपड़े, नहाकर फेंके कपड़े, जूठन, और भी जाने क्या-क्या। तस्वीरों से बदबू नहीं आ सकती लेकिन जो वहां होकर आए हैं, वे बता रहे हैं कि बदबू से सांस लेना मुश्किल हो रहा। अपने तीर्थों और संवेदनशील हिमालय के साथ हमारा यह कैसा व्यवहार है?

राजधानी लखनऊ में हम जगह-जगह लिखा देखते हैं कि कृपया दीवार पर न थूकें’, ‘यहां कचरा न फेंकें’, ‘देखो गधा ... रहा है’, आदि-आदि और उन्हीं जगहों पर वह सब होता पाते हैं जिसकी मनाही की गई है। तो, कैसे उम्मीद रखें कि जब यही जन पर्यटक या तीर्थयात्री बनकर पहाड़ों पर जाते होंगे तो बदल जाते होंगे? थोड़ा पैसा आ जाने से जो मध्य वर्ग उच्छृंखलता की सीमा लांघता फिरता है, वह प्रकृति का क्या सम्मान करेगा? बाबा केदारनाथ के दरबार में मत्था टेककर अपने समस्त पापों से जो मुक्ति पा लेता है, वह हिमालय और प्रकृति की पूजा करना क्या समझेगा? और, हम कैसे उम्मीद करें कि वह उन खतरों पर तनिक भी ध्यान देगा जो हिमालय में कचरा फैलाने से सिर पर मंडरा रहे हैं। वह न धर्म समझता है, न प्रकृति। फिर वह हिमालयविदों और विज्ञानियों की चेतावनियों क्या समझेगा?

एक रिपोर्ट बता रही है चारधाम यात्रा शुरू होने के पंद्रह दिन के भीतर आठ लाख यात्री वहां पहुंच चुके हैं और दस लाख अगले पंद्रह दिन में आने वाले हैं। अकेले केदारनाथ में रोज दस हजार किलो कचरा जमा हो रहा है। सरकारी अव्यवस्थाएं भी खूब हैं लेकिन हिमालय पर सबसे बड़ा अत्याचार अराजक यात्री कर रहे हैं। भू-विज्ञानियों और पर्यावरणविदों ने यह सब देखकर चेतावनी दी है कि यही हाल रहा तो 2013 जैसी भीषण त्रासदी बार-बार दोहराई जाएगी।      

नेपाल, भूटान, सिक्किम के हिमालयी क्षेत्र से लौटे यात्री बताते हैं कि वहां आप एक टुकड़ा पॉलीथीन नहीं फेंक सकते। आम शेरपा और गाइड तक इतने प्रशिक्षित और सतर्क हैं कि पर्यटकों को सावधान करते रहते हैं। यदि कहीं रास्ते में जरा सा कचरा मिला तो बटोर कर वापस लाते हैं। इन छोटे मुल्कों/राज्यों ने पर्यटन को अपनी आर्थिकी बनाया है तो उसके खतरे भी समझे हैं। इससे भी अधिक उन्हें हिमालय और उसकी पारिस्थितिकी और उसकी संवेदनशीलता की समझ है।

हिमालय बहुत संवेदनशील क्षेत्र है। यह दुनिया का सबसे कमउम्र पहाड़ है। यहां तरह-तरह की भू-भौतिक गतिविधियां अंदर-ही अंदर चलती रहती हैं। विस्फोट करके सड़कें और बांध बनाना ही नहीं, यात्रियों की भारी भीड़ और उसकी अराजकता भी इसके लिए बड़ा खतरा है। यह समझ विकसित होनी चाहिए। प्रकृति का आनन्द उसे रौंदने में नहीं, उसकी शांति को सुनने-अनुभव करने और उसे तनिक भी न छेड़ने में है। आपकी यात्रा की तस्वीरों की पृष्ठभूमि में हिमालय, पेड़, पक्षी और फूल होने चाहिए, कचरे के ढेर नहीं।

(सिटी तमाशा, नभाटा, 28 मई, 2022)           

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