Friday, May 06, 2022

शहरों से सहजन भी नदारद हो रहा?

इस साल अभी तक सहजन चखने को नहीं मिला। उसके अत्यंत गुणकारी फूल ही नहीं, कोमल-स्वादिष्ट फलियां भी कबके खत्म हो चुकी होंगी। बढ़ता बहुत तेजी से है, इसलिए। अब मिलेंगी तो उसकी मोटी हो चुकी फलियां ही मिलेंगी। इसकी भी रसदार सब्जी बहुत स्वादिष्ट होती है और दाल में या सांभर में उसके पके टुकड़े बड़ा स्वाद देते हैं। पिछले साल यह मौसम कोरोना के हाहाकार में निकल रहा था। उससे पहले साल सहजन की सब्जी भी खाई थी और दाल में डालने को मोटी फलियां भी मिल गई थीं। इस बार कहने के बावजूद सब्जी वाला भी नहीं ला पाया है। मण्डी में तो आ रहा होगा।

इसी शहर में सहजन हम तब से खा रहे है जब उसके गुणों के खान की चर्चा नहीं हुआ करती थी। कैनाल कॉलोनी में, जहां हम रहते थे, घरों के बाहर सहजन के पेड़ खूब थे जो फरवरी-मार्च से फूलना शुरू करते तो फूल की सब्जी लगभग हर घर में बनती। फिर मुलायम फलियों का नम्बर आता और बाद में मोटी-सख्त फलियां खाई-चूसी जातीं। हर फसल पर पेड़ की डालें काटीं जाती थीं ताकि अगले साल और मीठी सहजन फले। डाल न काटो तो अगली फसल कड़वी होना तय था। एक तरफ के कटे हिस्से पर गोबर और मिटी का लेप लगाकर कटी डालें पास ही में मिट्टी में रोप दी जातीं। बरसात आते-आते उनमें कल्ले फूट आते। सहजन की बहार रहती।

गोमती नगर आने पर बाबूजी ने घर के बाहर सहजन की एक डाल रोपी। वह भी खूब फला। आस-पास घरों में बांटा जाता। कुछ परिवार अनुरोध करके उसके फूल ले जाते। फिर कॉलोनी में विकास आया। नगर निगम ने सड़क के किनारे-किनारे इण्टरलॉकिंग टाइल्सबिछा दिए। हमारा सहजन सूख गया। नई डालें रोपने की जगह भी न बची। फिर नवाब पुरवा मोहल्ले के मित्रों से मिलने लगा। वहां घरों-सड़कों के आगे सहजन के कई पेड़ थे। कुछ वर्ष बाद वहां भी विकास आया। साइकल पथने सहजन के पेड़ों की बलि ले ली। अब सब्जी मण्डी का सहारा रह गया। कभी-कभी फलियां कड़वी निकलतीं लेकिन मौसम में कुछ दिन खा ही लिया जाता था।

सन 2020 में कोरोना का हमला हुआ तो सरकारी बयानों-निर्देशों में अधिक से अधिक सहजन खाने की सलाह दी गई। उसके गुण गिनाए गए। बताया गया कि सहजन के पत्ते, टहनियां, फूल, फलियां सब अत्यंत गुणकारी होते हैं। सहजन खाइए-इम्युनिटी बढ़ाइए के नारे सरकारी विज्ञापनों में दिखाई देने लगे। प्रदेश सरकार की पिछले दो साल की घोषणाओं में गांव-गांव सहजन के पौधे लगाने के वादे और दावे छाए हुए हैं। 2020 के वृक्षारोपण पखवड़े में 25 करोड़ पौधे लगाने का जो ऐलान हुआ था, उसमें दो करोड़ पौधे सहजन के लगाए जाने थे। वन विभाग और पंचायती राज विभाग को मिलकर यह काम करना था। सन 2021 के लिए भी काफी बड़ा लक्ष्य था। यह भी कहा गया था कि गांव-गांव सहजन के पौधे लगाकर लोग कोरोना से बचाव के अलावा अतिरिक्त कमाई भी कर सकेंगे।

हमारे पास यह जांचने का फिलहाल कोई तरीका नहीं है कि दो करोड़ सहजन के पौधे लगे या नहीं। सरकार का दावा है, बल्कि गिनीज बुक में पौधारोपण का विश्व कीर्तिमान दर्ज हुआ है, तो पौधे लगे होंगे। उनमें दो करोड़ पौधे सहजन के भी होंगे ही। हम तो इतना जानते हैं कि सन 2022 में हमने अब तक सहजन नहीं खाया। कमी हमारी होगी। आप में बहुत से लोगों ने इस बार भी खाया होगा और अब भी खा रहे होंगे। इम्युनिटी बढ़ाने के लिए सहजन अवश्य खाना चाहिए। सहजन नहीं समझे? अरे, ‘मोरिंगा’!

(सिटी तमाशा, नभाटा, 07 मई, 2022)            

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