Tuesday, December 11, 2018

मायावती अब भी यूपी में कांग्रेस को गठबन्धन में शामिल नहीं करेंगी


मध्य प्रदेश और राजस्थान में बीएसपी के अकेले चुनाव लड़ने से अंतत: बीजेपी को ही फायदा हुआ. बीजेपी विरोधी वोटों का बंटवारा हो गया. वह कांग्रेस से समझौता करती तो गठंधन के पक्ष में नतीजे बहुत अच्छे होते. छत्तीसगढ़ अवश्य इसका अपवाद रहा, जहां मायावती और अजित जोगी का तीसरा पक्ष भी बीजेपी की बड़ी पराजय टाल नहीं सका.

इस तथ्य के बाद और कांग्रेस के पुनरुत्थान के संकेतों से क्या मायावती का कांग्रेस के प्रति रुख कुछ नर्म होगा? क्या वे उत्तर प्रदेश में एसपी के साथ अपने गठबन्धन में कांग्रेस को भी शामिल करने पर अब राजी होंगी? एसपी अध्यक्ष अखिलेश यादव कांग्रेस को साथ लेने के हिमायती हैं. उन्होंने फिलहाल कांग्रेस से दूरी इसलिए बना रखी है कि मायावती से उनकी दोस्ती न टूटे. इसी कारण से वे दिल्ली में सोमवार को हुई विपक्षी नेताओं की बैठक में नहीं गये थे.

“एक और एक ग्यारहट्वीट के मायने

मंगलवार की सुबह चुनाव नतीजों का रुझान आते ही अखिलेश यादव ने ट्वीट किया था- “जब एक और एक मिलकर बनते हैं ग्यारह, तब बड़े-बड़ों की सत्ता हो जाती है नौ दो ग्यारह.

अखिलेश ने यह ट्वीट वस्तुत: किसको इंगित करके किया? राहुल गांधी को या मायावती को? क्या वे सिर्फ बीजेपी की आसन्न पराजय पर आनंदित हो रहे थे या विपक्षी एकता की आवश्यकता पर बल दे रहे हैं?

क्या उत्तर भारत के इन तीन विधान सभा चुनावों के नतीजे एसपी, बीएसपी और कांग्रेस के रिश्तों को पुन: परिभाषित करेंगे? लोक सभा सीटों के हिसाब से सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में बीजेपी और विपक्षी दलों के लिए यह महत्त्वपूर्ण होगा.

हमारा अनुमान है कि यूपी में मायावती का कांग्रेस-विरोध जारी रहेगा. जरूरत पड़ने पर वे राजस्थान और मध्य प्रदेश में भले ही कांग्रेस को समर्थन देने को राजी हो जाएं, मगर यूपी में कांग्रेस को अपने गठबंधन का हिस्सा बनाने को वे तैयार नहीं होंगी. इसके पर्याप्त कारण हैं.

मायावती का कड़ा कांग्रेस-विरोध बीएसपी की पुरानी नीति के कारण है. वे बीजेपी को सांपनाथ तो कांग्रेस को नागनाथ कहती रही हैं. इसके बावजूद राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में वे कांग्रेस से तालमेल की इच्छुक तो थीं लेकिन उसकी बहुत बड़ी कीमत यानी कि ज्यादा सीटें चाहती थीं. इसी कारण समझौता नहीं हो पाया था.

मायावती की भिन्न-भिन्न रणनीतियां

गौर किया जाए कि यूपी और अन्य राज्यों में  मायावती की चुनावी रणनीति अलग-अलग रहती है. यूपी बीएसपी का गढ़ है. यहां वे सत्ता की प्रमुख दावेदार होती हैं. इसलिए किसी भी पार्टी को गठबंधन में बड़ा हिस्सेदार नहीं बनने देंगी. एसपी से उनका दोस्ताना अब तक इसलिए बना हुआ है क्योंकि अखिलेश यादव ने कह रखा है कि कुछ सीटों का त्याग करना पड़े तो भी वे राजी हैं. यानी गठबंधन में बीसपी ही बड़ी पार्टी रहेगी.

मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ में बीएसपी इस स्थिति में नहीं है. इसलिए मायावती कांग्रेस के साथ गठबंधन में शामिल होने को तैयार हो जातीं बशर्ते कि उन्हें  उनकी मांगों के अनुरूप ज्यादा से ज्यादा सीटें दी जातीं. यहां उनका मुख्य उद्देश्य भाजपा को हराना नहीं, बल्कि पार्टी का जनाधार यानी वोट प्रतिशत बढ़ाना था. सभी सीटों पर चुनाव लड़ने का उनका फैसला इसी कारण था, हालांकि वहां वे यूपी की तरह सत्ता की प्रमुख दावेदार नहीं थीं.

उत्तर प्रदेश में बीजेपी को हराना मायावती के मुख्य उद्देश्यों में इसलिए शामिल है क्योंकि यह उनकी पार्टी के अस्तित्व का प्रश्न है. 2014 के लोक सभा चुनाव में उन्हें एक भी सीट नहीं मिली थी और 2017 के विधान सभा चुनाव में 19 सीटों पर सिमट गईं. बीजेपी के उभार ने ही उन्हें यह दिन दिखाया.

इसलिए बीजेपी को रोकने के लिए उन्होंने अपनी कट्टर शत्रु पार्टी एसपी से हाथ मिला लिया. इसके नतीजे भी बहुत उत्साह बढ़ाने वाले रहे. मुख्य्मंत्री आदित्य नाथ योगी की गोरखपुर और उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद वर्मा की फूलपुर लोक सभा सीट के अलावा इस गठबन्धन ने कैराना लोक सभा एवं नूपुर विधान सभा उप चुनाव भी जीत लिए. इसी के बाद तय हुआ कि  2019 के आम चुनाव तक यह गठबंधन चलेगा.  

यूपी में कांग्रेस के हालात बदलने वाले नहीं

किंतु एसपी-बीएसपी गठबंधन में कांग्रेस को भी शामिल करने पर उन्हें घोर आपत्ति है. कांग्रेस यूपी में बहुत कमजोर हालत में है. तीन राज्यों में उसके बेहतर प्रदर्शन के बावजूद यहां कांग्रेस की जमीनी हालत वैसी ही रहने वाली है, उसके कार्यकर्ताओं का मनोबल भले बढ़ा हो.

दूसरी बात यह कि मायावती को लगता है कि यूपी में बीजेपी को हराने के लिए एसपी-बीएसपी गठबंधन ही काफी है. उप-चुनावों के नतीजे इसके गवाह हैं. उस समय कांग्रेस और अजित सिंह की रालोद भी भाजपा की इस पराजय में किसी न किसी रूप में भागीदार थे, लेकिन स्पष्ट है कि इसमें कांग्रेस योगदान नगण्य ही था.
अखिलेश यादव चाहेंगे कि कांग्रेस भी गठबंधन में हिस्सेदार हो लेकिन वे इसके लिए मायावती को राजी करने की स्थिति में नहीं हैं. गठबन्धन मायावती की शर्तों पर ही चलेगा.

यदि किसी हालत में मायावती कांग्रेस को साथ लेने पर राजी हो भी जाएं तो उसे इतनी कम सीटों की पेशकश होगी कि कांग्रेस उसे स्वीकार नहीं कर पाएगी.    

 https://hindi.firstpost.com/politics/will-mayawati-agree-for-congress-in-coalition-rt-173268.html

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