Friday, December 14, 2018

लक्षणों का इलाज करने से रोग कैसे दूर होगा



बलिया का सूरज लखनऊ में सड़क किनारे अमरूद का ठेला लगाता है. गोण्डा का मातादीन चौराहे के नुक्कड़ पर झव्वे में मूँगफली बेचता है. दीनदयाल फूलों का ठेला लगाता है. दूर-दराज के इलाकों से राजधानी आकर ऐसे हजारों लोग सड़क किनारे या किसी कोने में या फुटपाथ पर या जहां भी ठौर मिले रोजी-रोटी के लिए ठेला खोंचा या गुमटी लगाते हैं. पुलिस ने ऐसे लोगों की पकड़-धकड़ शुरू कर दी है. कहा जा रहा है कि ये लोग अतिक्रमण करके जाम लगा रहे हैं. कुछ लोगों को जेल भी भेज दिया गया है.

जब भी नगर निगम या पुलिस अतिक्रमण हटाओ अभियान चलाती है, उनकी मार ऐसे ही सीधे-सादे गरीब लोगों पर पड़ती है. तकनीकी तौर पर ये लोग अतिक्रमणकारी माने जा सकते हैं लेकिन क्या वास्तव में इन्हीं की वजह से सड़कों पर जाम लगता है? ये ही बड़े और असली अतिक्रमणकारी हैं? इस जुर्म में इन गरीबों को जेल भेजा जाना चाहिए?

सारे बाजार अवैध निर्माण और अतिक्रमण से भरे हैं. बड़ी-बड़ी दुकानें आधी सड़क घेरे हुए हैं. सभी आवासीय क्षेत्र अवैध बहुमंजिली इमारतों से भर गये हैं जिनमें शो-रूम, होटल, रेस्त्रां, जिम, वर्कशॉप वगैरह खुले हुए हैं. किसी ने पार्किंग नहीं बनायी है. ग्राहकों के वाहन सड़क पर खड़े होते हैं. व्यस्त इलाकों में तो सड़क के दोनों तरफ गाड़ियां खड़ी होती है. रेस्त्रां वाले सड़क पर खड़ी कारों में खाने का सामान तक करते हैं. ट्रैफिक के लिए पतली-सी पट्टी बच पाती है. इनसे जाम नहीं लगता? ये अतिक्रमणकारी नहीं है? इन्हें जेल नहीं भेजना चाहिए?

वीआईपी गाड़ियां खतरनाक तरीके से फर्राटा ही नहीं भरतीं, सड़कों को अपनी मिल्कियत समझती हैं. वे कहीं भी गाड़ी खड़ी करने के लिए आजाद हैं. उलटी दिशा में चलना उनकी शान में शुमार है. उनका चालान करने की हिम्मत कोई पुलिस वाला करे भी तो सजा पा जाता है. इनसे जाम नहीं लगता होगा!

कार्रवाई हो रही है ई-रिक्शा वालों पर. आखिर ये ई-रिक्शे चले ही क्यों? क्यों बेशुमार टेम्पो-ऑटो चल रहे हैं? आपने बेहतर और सस्ती परिवहन सुविधा दी होती तो इनसे सड़कें भरी न रहतीं. गरीब जनता के लिए ये सबसे आसान और सस्ती सवारी हैं. होना तो यह चाहिए था कि खून-पसीना बहा कर रिक्शा खींचने वाले गरीबों को ई-रिक्शा उपल्बध कराये जाते ताकि वे आसानी से रोजी चला सकें.  

हमारी सरकारों ने और प्रशासन ने वह सब किया नहीं जिससे शहरों में जीवन सुविधाजनक बनता. आवासीय कॉलोनियों को बेतरतीब बाजार बनने से रोका जाता. हर किसी के लिए यातायात नियमों का पालन आवश्यक होता. बाजार व्यवस्थित होते, पार्किंग की सुविधाएं होतीं. हुआ बिल्कुल उलटा. शहर बेतरतीब और अराजक ढंग  फैले. प्रभावशाली लोगों ने खूब नियम तोड़े. उन्हें वह सब करने की छूट है जो शहरों को नारकीय बनाता है.

जिन खोंचे-ठेला वालों को आप हटा रहे हो, कभी उनके बारे में भी जानने की कोशिश करनी चाहिए कि वे कौन हैं और किन हालात में परिवार पालने की कोशिश कर रहे हैं. वे बच्चों को भूखा नहीं मार सकते इसलिए ठेला-रेहड़ी जरूर लगाएंगे, रिक्शा चलाएंगे. ये जो वेण्डिंग जोन आप बना रहे हो, यह कोई नई चीज नहीं है. दसियों बरस से बीच-बीच में ऐसी कोशिशें होती रहीं लेकिन कामयाब नहीं हुईं. पता कीजिए कि वेण्डिंग जोन क्यों नहीं चल पाते. 

ठेला-रेहड़ी वालों को हटा कर आप सिर्फ मामूली लक्षण का इलाज करना चाह रहे हैं. रोग बना रहेगा तो लक्षण बार-बार उभरेंगे. पुराना रोग है. पहचानते सब हैं. उसका उपचार करने के लिए बड़ी इच्छा शक्ति चाहिए. वह है कहीं

(सिटी तमाशा, नभाटा, 15 दिसम्बर, 2018)


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