Saturday, December 29, 2018

उत्तर प्रदेश की बेचारी गरीब पुलिस



कुछ महीने पहले एक बैंक में ऑनलाइन धोखाधड़ी हुई. एक पार्टी का ईमेल हैक करके जालसाजों ने बड़ी रकम किसी फर्जी खाते में ट्रांसफर करवा दी. मामला खुलने पर बैंक ने सबद्ध कर्मचारियों को निलम्बित कर दिया. उनका दोष सिर्फ इतना था कि वे हैक की गयी ईमेल पहचान नहीं पाये. मामला पुलिस के पास पहुँचा. जालसाजों के तार मुम्बई में मिले. स्थानीय पुलिस को तहकीकात के लिए मुम्बई जाना था. निलम्बित कर्मचारी  चाहते थे कि पुलिस जल्द से जल्द जालसाजों को पकड़े ताकि उनकी निर्लिप्तता साबित हो. उन्होंने जांच टीम से सम्पर्क किया तो कहा गया कि मुम्बई आने-जाने-ठहरने का खर्चा वहन करें तो टीम तुरंत चली जाएगी. उन कर्मचारियों ने मजबूरी में पुलिस टीम का सारा खर्च खुद उठाया. तब यह जानकर हैरत होने के साथ गुस्सा भी आया था.

पुलिस सप्ताह के दौरान गुरुवार को जब एक वरिष्ठ अधिकारी ने प्रदेश पुलिस थानों की गरीबी के आंकड़े सामने रखे तो पता चला कि हमारी भ्रष्ट पुलिस बेहद गरीब भी है. बल्कि, उसके भ्रष्टाचार का एक बड़ा कारण गरीबी भी है. हमारी सरकारों ने पुलिस थानों को इतना दयनीय बना रखा है कि उनके पास सामान्य जांच-पड़ताल के लिए भी धन नहीं होता. थानों में एफ आई आर लिखने के लिए भी पीड़ित से कागज मंवाया जाता हो तो क्या आश्चर्य.

अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (तकनीकी) सेवा आशुतोष पाण्डे ने पुलिस महकमे के मुखिया के सामने जो तथ्य रखे वे चौंकाने वाले ही नहीं अत्यंत दुखद और चिंताजनक हैं. जिन थानों को सामान्य काम-काज और विवेचना के लिए हर महीने कम से कम पचास हजार रु की आवश्यकता होती है उनमें किसी को साल भर में चालीस हजार और किसी को सिर्फ बीस हजार रुपये मिलते हैं. यानी हर मास साढ़े तीन हजार से सत्रह सौ रुपये तक! इस नामालूम रकम में  थानेदार की जीप का एक हफ्ते का डीजल भी नहीं आएगा. समझा जा सकता है कि थाने अपने तमाम खर्च चलाने के लिए कैसी-कैसी वसूली नहीं करते होंगे.

आशुतोष पाण्डे ने यह भी बताया कि तेलंगाना जैसे नवसृजित राज्य में शहरी एवं ग्रामीण थानों को हर महीने क्रमश: पचास हजार और पचीस हजार रु मिलते हैं. हैदराबाद में जहाँ पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू है, वहाँ हर थाने को 75 हजार रु प्रतिमास मिलते हैं. उनकी तुलना में हमारी पुलिस कितनी असहाय है. पीड़ितों से वसूली करके विवेचना न करे तो क्या करे! हालांकि इस लाचारी से उसके भ्रष्ट तौर-तरीकों का बचाव नहीं किया जाना चाहिए.

उत्तर प्रदेश में अपराधियों का बड़ा तंत्र है. संगठित गिरोहों के अलावा छुटभैये अपराधी आये दिन बड़ी वारदात किया करते हैं. साइबर अपराध बढ़ते जा रहे हैं. पुलिस की विवेचना का काम बहुत चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है. उससे त्वरित कार्रवाई की अपेक्षा की जाती है. पर्याप्त संसाधनों के अभाव में वह कैसे अपराधियों का सामना करे? अपराधी स्मार्ट और पुलिस लाचार. यह हाल पुलिस महकमे के लिए ही नहीं सरकार के लिए भी शर्मनाक हैं.

यह हाल पिछले कई दशक से चल रहे होंगे. अपराध नियंत्रण के लिए सभी सरकारों के मुखिया पुलिस को चेतावनी देते रहे हैं लेकिन आश्चर्य है कि किसी ने भी उसकी इस संसाधन विहीनता पर ध्यान नहीं दिया. पुलिस के बड़े अधिकारी इस समस्या से अवगत न हों ऐसा नहीं हो सकता. थानों की अवैध कमाई हर महीने लाखों में होती है जिसका हिस्सा कहते हैं कि ऊपर तक पहुँचता रहता है. क्या इसी आधार पर मान लिया गया कि पुलिस थानों को पर्याप्त सरकारी बजट की जरूरत नहीं है?        


(सिटी तमाशा, नभाटा, 29 दिसम्बर, 2018) 

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