Tuesday, December 04, 2018

ताकि महागठबंधन न बन सके



पिछले सप्ताह निजामाबाद (तेलंगाना) की चुनावी रैली में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चौंकाने वाला एक वक्तव्य दिया. उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में अखिलेश या मायावती से कोई दिक्कत नहीं है. पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी या वाम दलों से कोई समस्या नहीं है. कांग्रेस ही एक ऐसी पार्टी है जिसको इस देश से सदा के लिए मिटा देना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा कि बाकी सब स्वीकार्य हैं. कांग्रेस को छोड़कर अन्य दलों के साथ मिल कर हम काम कर सकते हैं.

कांग्रेस पर उनके तीखे हमले नये नहीं हैं. 2013 से ही वे कांग्रेस-मुक्त भारत बनाने की घोषणाएं बार-बार करते रहे हैं किंतु भाजपा-विरोधी दलों के प्रति यह प्यार नया है. उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी तथा पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस वर्तमान राजनैतिक स्थितियों में उनके सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी हैं. इन राज्यों में कांग्रेस आज भाजपा की मुख्य विरोधी नहीं है. 2019 में अगर उत्तर प्रदेश में उन्हें अपनी सीटें बचानी हैं और पश्चिम बंगाल में भाजपा को बढ़त दिलानी है तो सपा-बसपा और तृणमूल कांग्रेस को शत्रु नंबर एक मानना होगा. तब मोदी ने उन्हें स्वीकार्य क्यों कह दिया?

नरेंद्र मोदी चतुर-सुजान राजनैतिक नेता हैं. वे कोई भी बात, तथ्यात्मक हो या निराधार,  बिना सोचे-विचारे नहीं कहते. चुनावी सभाओं में तो वे साध-साध कर निशाना लगाते हैं. विरोधी को परास्त करने के लिए बातों-जुमलों के नये-नये तीर छोड़ते हैं. इसलिए निजामाबाद की चुनावी रैली में उन्होंने जो कहा उसका विशेष मंतव्य होगा.
क्या मोदी यह कहना चाहते हैं कि 2019 में त्रिशंकु लोक सभा की स्थिति होने पर भाजपा अखिलेश, मायावती और ममता से हाथ मिलाने को तैयार है?  क्या उनके इस वक्तव्य में यह देखा जाए कि आम चुनाव के बाद उन्हें नये सहयोगी दलों की जरूरत पड़ सकती है? यानी उन्हें लगता है कि भाजपा या वर्तमान एनडीए पूर्ण बहुमत नहीं पाने वाला है?

निश्चय ही यह उनका आशय नहीं हो सकता. मोदी जैसे खांटी राजनेता और रणनीतिकार ऐसा संकेत कतई नहीं दे सकते. उन्हें सचमुच बहुमत न मिलने की आहट मिल रही हो तब भी नहीं. यह तो अपनी कमजोरी जाहिर कर देने जैसा होगा. चुनावी राजनीति में मतगणना के रुझान साफ हो जाने तक भी सभी नेता यही कहते रहते हैं कि उन्हें बहुमत मिलने वाला है. इसलिए मोदी ने निजामाबाद में जो कहा वह कोई गहरी बात है.

गौर किया जाए कि तेलंगाना में कांग्रेस, तेलुगु देशम, भाकपा और तेलंगाना जन समिति का गठबंधन प्रजाकुटुमीसत्तारूढ़ तेलंगाना राष्ट्र समिति के विरुद्ध चुनाव लड़ रहा है. भाजपा अकेले मैदान में है. इस गठबंधन को सम्भव बनाने वाले आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री और तेलुगु देशम के नेता चंद्राबाबू नायडू हैं. नायडू लोक सभा चुनावों में भाजपा के खिलाफ राष्ट्रीय सतर पर विपक्षी एकता की पहल जोरों से कर रहे हैं. नायडू साफ कहते हैं कि भाजपा के विरुद्ध विपक्षी एकता की धुरी कांग्रेस ही हो सकती है.

जिस तेलुगु देशम पार्टी का जन्म कांग्रेस-विरोध के बीज से हुआ था, उसी का अब कांग्रेस के साथ आ जाना तेलंगाना और आंध्र में ही नहीं, बाकी देश में भी भाजपा के लिए खतरा बन सकता है. विपक्षी एकता का कोई विशेष खाका अभी तक नहीं बन पाया है लेकिन नायडू की सक्रियता से एक बार फिर इसकी हल-चल बढ़ी है. जल्दी ही भाजपा-विरोधी दलों के नेताओं की बैठक होने वाली है.  

नायडू के अलावा ममता बनर्जी, अखिलेश यादव और मायावती भाजपा विरोध का झण्डा उठाये हुए हैं. इनमें मायावती को छोड़ कर बाकी दो कांग्रेस को साथ लेने के इच्छुक हैं. नायडू उसके साथ आ ही चुके हैं. बिहार में लालू यादव की पार्टी कांग्रेस के साथ है ही. अगर उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल जैसे बड़े राज्यों में भाजपा के मुकाबले तगड़ा गठबंधन बनता है तो उसे काफी नुकसान होने के आसार हैं.

अकेले उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा बहुत मजबूत स्थिति में हैं. ऐसे ताकतवर क्षेत्रीय दलों का कांग्रेस से गठबंधन होना भाजपा-विरोधी मोर्चे को राष्ट्रीय स्वरूप और ताकत देता है. इसके उलट क्षेत्रीय दल अपने-अपने राज्यों में मजबूत होकर उभरे तो भी उनकी कोई संयुक्त राष्ट्रीय ताकत नहीं बनती. आवश्यकता पड़ने पर भाजपा का उन्हें अपने साथ लेने का विकल्प भी बना रहेगा. कांग्रेस इन दलों को जोड़ने वाली डोर बन गयी तो भाजपा के मुकाबिल राष्ट्रीय विकल्प बन सकता है. स्वाभाविक है कि मोदी कभी नहीं चाहेंगे कि  क्षेत्रीय दलों का ऐसा गठबंधन बने और कांग्रेस उसकी धुरी हो.

इसलिए उनकी कोशिश है कि भाजपा-विरोधी ताकतवर क्षेत्रीय दल कांग्रेस से दूर ही रहें. इसलिए उनके प्रति थोड़ी नरमी दिखाना जरूरी है. इसलिए उत्तर प्रदेश में  सपा-बसपा की तीखी आलोचना करते रहे मोदी को अब उन्हें स्वीकार्य कहना पड़ रहा है. ममता बनर्जी को कमजोर किये बिना भाजपा पश्चिम बंगाल में बढ़त नहीं ले सकती. मगर मोदी को कहना पड़ रहा है कि भाजपा ममता के साथ मिलकर काम कर सकती है.

कांग्रेस को देश की समस्त बुराइयों की जड़ बता कर मोदी इन क्षेत्रीय दलों को सचेत करना चाहते हैं कि उसके साथ न खड़े हों. यह भी कि कांग्रेस के साथ होने का मतलब बड़ा नुकसान उठाना होगा क्योंकि वह चुकी हुई ताकत है और अब उसे खत्म खत्म ही कर देना है. क्षेत्रीय दलों को कांग्रेस से सावधान करने वाली बातें मोदी पहले भी कहते रहे हैं. उन्होंने कांग्रेस के साथ गठबंधन में रहे दलों को कई बार याद दिलाया है कि कैसे वह पार्टी क्षेत्रीय नेताओं की उपेक्षा करती रही है.

कांग्रेस को लेकर क्षेत्रीय दलों के असमंजस और अन्तर्विरोधों से भी मोदी खूब परिचित हैं. राजनीति में कांग्रेसी वर्चस्व के दिनों में ये क्षेत्रीय दल राज्यों की उपेक्षा और दादागीरी का आरोप लगाकर उसका विरोध करते रहे हैं. कई क्षेत्रीय दलों का जन्म कांग्रेस-विरोध से हुआ है. कांग्रेस को किसी गठबंधन से दूर रखने के लिए मोदी इन्हीं अंतर्विरोधों को प्रकारांतर से सामने रख रहे हैं.

क्षेत्रीय दल कांग्रेस से दूर रहेंगे तो अपने-अपने राज्यों की राजनीति और अन्तर्विरोधों के कारण. वे गठबंधन करेंगे तो उसके कारण होंगे भाजपा विरोध की तीव्रता, तात्कालिकता और वर्तमान राजनीतिक समीकरण.  क्षेत्रीय दल कभी जो आरोप कांग्रेस पर लागाया करते थे, वैसा ही विरोध अब राष्ट्रीय पार्टी बन चुकी भाजपा को झेलना पड़ रहा है. हमारे संघीय ढांचे में किसी राष्ट्रीय दल की राजनीति  की इस नियति के अपने कारण हैं.

मोदी जी जो कह रहे हैं उससे उनकी व्यग्रता ही प्रकट होती है. उनका सतत कांग्रेस भय बताता है कि उस पार्टी की जो जगह आज भाजपा ने ले ली है, वह वहां फिर काबिज हो सकती है.      
        
(प्रभात खबर, 5 दिसम्बर, 2018)     

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