Friday, January 29, 2021

कचरे की गाड़ी, गाना और स्वच्छता सर्वेक्षण

पिछले सप्ताह समाचार पत्रों में प्रमुखता से यह छपा था कि स्वच्छता सर्वेक्षण-2021 में नागरिक फीडबैक के मामले में लखनऊ नम्बर एक बन गया है। उसने इंदौर को पछाड़ कर पहला स्थान पाया है।मध्य प्रदेश का इंदौर शहर पिछले कुछ सालों से लगातार इस सर्वेक्षण में देश में सबसे साफ-सुथरा शहर घोषित होता आ रहा है। लखनऊ का उसे पछाड़ना बड़ी बात थी लेकिन समाचार वास्तव में सर्वेक्षण के परिणाम के बारे में नहीं था। सूचना मात्र इतनी थी कि पिछले सप्ताह तक इंदौर के नागरिकों से अधिक संख्या में लखनऊ के नागरिक इस सर्वेक्षण में भाग ले चुके थे।

हास्यास्पद ही सही यह नम्बर एक होना, लेकिन पंद्रह जनवरी तक लखनऊ के पौने दो लाख से अधिक नागरिक अपने शहर के बारे में राय दे चुके थे। उन्होंने क्या और कैसी राय दी, यह तो बाद में पता चलेगा। पिछले सर्वेक्षणों में लखनऊ वालों की भागीदारी भी बहुत कम रही थी। शहरों की साफ-सफाई की श्रेणी तय करने के लिए केंद्र सरकार पिछले कुछ वर्षों से यह सर्वेक्षण कराती है। स्वच्छता ऐप डाउनलोड करके पूछे गए सवालों का जवाब देना होता है। शामिल होने वाले नागरिकों की कुल संख्या  पर भी नम्बर मिलते हैं।

लखनऊ नगर निगम को यह श्रेय देना होगा कि इधर के वर्षों में शहर की सफाई पर काफी ध्यान दिया जा रहा है। कुछ खास इलाकों में तो सफाई कर्मी रोजाना आते हैं। उनके काम का निरीक्षण भी होता है। बहुत सारे क्षेत्र इससे बिल्कुल वंचित भी हैं या वहां कभी-कभार ही सफाई होती है। गाड़ी वाला आया कचरा निकालगीत बजाते हुए गाड़ियां कई इलाकों में घूमती देखी जा सकती हैं। सूखा, गीला और जैविक कचरा अलग-अलग रखने की व्यवस्था इन गाड़ियों में है। ये गाड़ियां कितनी मुस्तैदी ने कचरा ले जाती हैं और नागरिक कचरा देने में कितना सहयोग करते हैं, यह देखना कष्ट देता है। दोनों तरफ के पूर्ण समर्पण के बिना शहर की सफाई सम्भव नहीं।

इंदौर के साथी बताते हैं कि वहां नगर निगम का सिद्धांत और उसका अधिकतम पालन यह है कि कचरा जमीन पर गिरने ही नहीं दिया जाता। प्रत्येक घर से कचरा सीधे नगर निगम की गाड़ियों में डाला जाता है। बाजारों में कूड़ेदान नियमित रूप से साफ किए जाते हैं। नागरिकों का सहयोग सर्वोपरि है। वे अपने शहर की स्वच्छता पर गर्व करते हैं। अपने यहां मामला दोनों तरफ से उपेक्षा भरा है। एक ही कॉलोनी के अलग-अलग घरों में कूड़ा फेंकने की अलग-अलग काम चलाऊ व्यवस्थाएं हैं। नगर निगम की गाड़ियां कचरा लेने रोजाना आएंगी, ऐसा भरोसा ही नहीं बन पाया है। कोशिश भी नहीं हो रही। अधिकतर घरों से निजी ठेला गाड़ियां कचरा ले जाती हैं। खुले में कूड़ा फेंकने वाले भी कम नहीं हैं।

बांग्लादेशीकहलाने वाले श्रमिकों की बड़ी आबादी पचास-साठ से एक सौ रु तक महीना लेकर घर-घर से कूड़ा उठाते हैं। यही उनकी रोजी-रोटी है। नगर निगम ने इन्हें कभी अपने सफाई अभियान में शामिल नहीं किया हालांकि उनके ठेले में नगर निगम लिखवा दिया गया। नगर निगम की गाड़ियां जितना जोर-शोर से गाना बजाती हैं, उसका आधा ध्यान भी घर-घर से कूड़ा उठाने में नहीं लगातीं। यह जानने-समझने का कष्ट कोई नहीं करता कि नगर निगम की गाड़ियों को सभी घरों से कचरा क्यों नहीं दिया जाता।

इस बार अधिक संख्या में लखनऊ वालों ने स्वच्छता सर्वेक्षण में भाग लिया, अच्छी बात है लेकिन वे वास्तविक स्वच्छता बनाए रखने में कब भागीदार बनेंगे? नगर निगम कब यह भरोसा जीत सकेगा कि वह घर-घर से कचरा उठाने में वास्तव में गम्भीर है?          

(सिटी तमाशा, नभाटा, 30 जनवरी, 2021)  

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