Thursday, January 13, 2022

योगी आदित्यनाथ की एक बेबाक जीवनी

इन दिनों जब नेताओं की जीवनियां लिखने-छापने की होड़ सी मची हुई है और अधिकसंख्य जीवनियां उनके प्रशस्ति गायन से आगे नहीं जा रहीं, तब दो वरिष्ठ पत्रकारों, शरत प्रधान और अतुल चंद्रा की सद्य: प्रकाशित पुस्तक "YOGI ADITYANATH- Religion, Politics and Power- The Untold Story' (Penguin Books) लेखकीय ईमानदारी, पत्रकारीय वस्तुनिष्ठता, गहन शोध और इस दौर में आवश्यक साहसिक लेखन का बेहतरीन उदाहरण है।

गोरखपुर के प्रसिद्ध गोरक्ष पीठ से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे और करीब पांच साल के शासन के बाद अब चुनाव का सामना करने जा रहे 'महाराज' योगी की यह जीवनी उनके व्यक्तिगत एवं सार्वजनिक जीवन से लेकर शासन-प्रशासन के साथ-साथ खुले-छिपे एजेण्डे एवं कार्य शैली की बारीक पड़ताल करती है। गढ़वाल के एक सुदूर गांव के बालक अजय सिंह बिष्ट के गोरक्ष पीठ पहुंचने, आदित्यनाथ योगी के रूप में महंत अवेद्यनाथ के उत्तराधिकारी बनने, गोरक्षा एवं 'खतरे में पड़ते' सनातन धर्म की रक्षा की राजनीति के जरिए कट्टर हिंदू नेता बनने और पांच बार गोरखपुर से सांसद चुने जाने, 'हिंदू युवा वाहिनी' नाम से आक्रामक हिंदू सेना खड़ी करने और भाजपा नेताओं से सीधा टकराव लेकर अपना दम दिखाने और अंतत: आरएसएस की पसंद से उत्तर प्रदेश का मुख्यमंंत्री बनने की कहानी यह किताब प्रामाणिक संदर्भों के साथ कहती है। 

इस किताब में बहुत कुछ है जो योगी के बारे में अनजाना या बहुत काम जाना गया है। जो गोरखपंथ हिंदू-मुस्लिम, दलित-सवर्ण में तनिक भी भेद नहीं करता रहा और राजनीति से परहेज करता था, वह महंत दिग्विजयनाथ के समय से कैसे हिंदू-राजनीति करने लगा एवं महंत अवेद्यनाथ से होते हुए योगी आदित्यनाथ  के समय में कैसे अयोध्या में बाबरी मस्जिद की जगह राम मंदिर बनवाने की आक्रामक राजनीति का अगुआ बना, यह सब सिलसिलेवार बताती है यह किताब। गोरखपंथ के समर्पित अनुयायी अनेक मुस्लिम जोगी, जो घूम-घूम कर सारंगी बजाते हुए गुरु मत्स्येंद्रनाथ और गुरु गोरखनाथ के साथ ही कबीर के भजन गाते गांव-गांव फिरते थे, वे क्यों एवं कैसे लोप हो गए और आज उनके वंशज किस हाल में हैं, बताती है यह किताब। जिस गोरखनाथ धाम के भीतर आज भी मुसलमानों के साथ भेदभाव नहीं होता, बल्कि आज भी जहां कुछ जिम्मेदार पदों पर मुसलमान बैठे हैं, जहां जनता दरबार से लेकर जन सेवा के अनेक कार्यक्रमों में मुसलमानों को बराबर मौका मिलता है, वहीं मठ के बाहर की राजनीति क्यों नफरत भरी और भेदभावपूर्ण है, इस आश्चर्य को स्पष्ट करती है यह पुस्तक। 

मुख्यमंंत्री बनने से पहले और बाद के योगी के राजनीतिक भाषणों, उनके खिलाफ दर्ज मुकदमों और उनके हश्र, मुख्यमंत्री बनने के बाद उनमें आए बदलावों, उनकी प्रारम्भिक प्रशासनिक अनुभवहीनता और क्रमश: बढ़ती पकड़, उनकी सख्त मिजाजी, सरकार के फैसलों,  उनकी खूबियों, कमियों, मंत्रियों-अफसरों से टकरावों, वगैरह-वगैरह पर शरत और अतुल की यह किताब विस्तार से बात करती है। कोविड महामारी से सफलतापूर्वक निपटने, भ्रष्टाचार समाप्त कर देने और अपराधियों को दुबकने पर मजबूर कर देने के योगी सरकार के दावों की निर्मम पड़ताल भी इसमें है। सोलह अध्यायों में और भी बहुत कुछ है।  

किताब बताती है कि जो आदित्यनाथ भाजपा और संघ से सीधे टकराते रहे, यहां तक कि कभी भाजपा उम्मीदवारों को हराने तक में लगे रहे थे, सबको चौंकाते हुए उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाया गया तो इसके पीछे मोदी और शाह से कहीं अधिक  आरआरएस की जबर्दस्त पैरवी थी क्योंकि हिंदू राष्ट्र बनाने की आक्रामक राजनीति में योगी ने सभी भाजपाई दावेदारों को पीछे छोड़ रखा था। और, क्या उनकी यही राजनीति और आक्रामक तेवर 2024 के बाद मोदी के उत्तराधिकारी यानी भावी प्रधानमंत्री की दावेदारी के करीब ले जा रहे हैं, इस सवाल का उत्तर भी तलाश करते हैं पत्रकार-द्वय। योगी जी की राजनीति की सतथ्य आलोचना करते हुए लेखक-द्वय उनके पूर्ववर्ती मुख्यमंत्रियों, विशेष रूप से अखिलेश यादव और मायावती को भी नहीं बखश्ते।

पुस्तक लिखने में किया गया व्यापक शोध एवं श्रम तथा तथ्यों के आधार पर की गई साहसिक टिप्पणियां इस पुस्तक की विशेषता हैं। ये टिप्पणियां और तथ्य अनेक बार योगी जी को कटघरे में खड़ा करते हैं तो लेखक कुछ बातों के लिए उनकी प्रशंशा करने में भी संकोच नहीं करते। लेखकों को योगी जी की सबसे बड़ी अच्छाई उनकी व्यक्तिगत ईमानदारी, चारित्रिक दृढ़ता, पारदर्शिता और स्पष्टता लगती है। यह जानना रोचक हो सकता है कि सरकार के शुरुआती दिनों में भ्रष्टाचार रोकने के लिए पारदर्शिता पर योगी जी की दृढ़ता ने कई मंत्रियों, विधायकों और अधिकारियों के सामने ऐसा संकट खड़ा कर दिया था कि उनकी शिकायत दिल्ली तक की गई और अमित शाह को दो दिन लखनऊ में रहकर सुनवाई करनी पड़ी थी। 

वर्तमान राजनीतिक हालात एवं हिंदू आक्रामकता से उपस्थित हुई चुनौतियों को समझने के लिए यह किताब पढ़ी जानी चाहिए। सीखने को उत्सुक पत्रकारों को यह किताब समाचारों एवं लेखों में वस्तुनिष्ठता और ईमानदारी लाने के लिए शोध एवं तथ्यों की अनिवार्यता समझाएगी। शरत प्रधान और अतुल चंद्रा को बहुत-बहुत बधाई।  

 - नवीन जोशी, 13 जनवरी, 2022    

  

    

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