Monday, January 17, 2022

भारतीय अमीरों की अमीरी और गरीबों की गरीबी तो देखिए


यदि भारत के दस सबसे धनी लोगों में से प्रत्येक प्रतिदिन 7, 44,01,400/- यानी सात करोड चौवालीस लाख एक हजार चार सौ रुपए खर्च करे, तब भी उन्हें आज की अपनी पूरी सम्पत्ति खर्च करने में 84 वर्ष लग जाएंगे।

क्या इससे आप भारतीय अमीरों की कमाई का कोई अनुमान लगा पाते हैं? उन्हें अरबपति-खरबपति कहना तो गणित की संंख्याओं के साथ भद्दा मजाक होगा। अगर किसी को गिनती का भारतीय सिलसिला याद हो तो शायद उन्हें नीलपति-शंखपति कहा जा सकता है।

और, यह जानना कैसा लगेगा कि जब महामारी के दौर में देश में नौकरियां जा रही थीं, तनख्वाहें काटी जा रही थीं, बच्चों की पढ़ाई छूट रही थी, मजदूर वर्ग भूखे मर रहा था, तब भी भारतीय अमीरों की सम्पत्ति बढ़ती रही। यह वृद्धि छोटी-मोटी नहीं थी। देश के सभी धनपतियों की सम्मिलित आमदनी महामारी के दौरान दोगुनी से अधिक हो गई। साल 2021 में सबसे अधिक धनवान एक सौ भारतीयों की सम्मिलित सम्पत्ति 57.3 लाख करोड़ रु ( पांच नील सत्तर खरब रु)  पई गई। धनपतियों की संंख्या में भी इस बीच 39 फीसदी वृद्धि हुई।

इस बीच गरीबों का क्या हाल रहा? सन 2020 में चार करोड़ साठ लाख भारतीय गरीबी से भयानक गरीबी में पहुंच गए। इस साल  पूरी दुनिया में जितने गरीब थे उनमें से आधे भारतीय हैं।

ऑक्सफैम, इण्डिया नाम की स्वतंत्र वैश्विक संस्था ने कल जो आंकड़े जारी किए, उनसे यही तस्वीर सामने आती है। इस रिपोर्ट के अनुसार मार्च 2020 से नवम्बर 2021 तक यानी महामारी के दौरान भारत के धनपतियों की सम्पत्ति 23.1 लाख करोड़ से बढ़कर 53.2 लाख करोड़ हो गई। इसके विपरीत 84 प्रतिशत भारतीयों की आमदनी बहुत कम हो गई। यह दौर कोरोना के कारण बड़ी संख्या में लोगों की मौतों और रोजगार छिन जाने का रहा।

'हमारे' अमीरों के बारे में आंकड़े इस तरह भी देखे जा सकते हैं- 142 धनपतियों के पास जितनी सम्पत्ति है (डॉलर में 719 अरब) वह 55 करोड़ 50 लाख भारतीयों की कुल सम्पत्ति से भी अधिक है। ये लोग रोज साढ़े सात करोड़ रु खर्च करने लगें तब भी इन्हें यह धन खर्च करने में 84 साल लग जाएंगे। सबसे गरीब 55 करोड़ 50 लाख भारतीयों के पास मिलाकर जितनी 'सम्पत्ति' है, उतनी तो सिर्फ 98 अमीरों के पास है। 

ऑक्सफैम की इस रिपोर्ट के अनुसार महामारी के दौरान महिलाओं की नौकरियां भी खूब गईं। 2019 की तुलना में 2020 में एक करोड़ तीन लाख महिलाएं रोजगार में कम पाई गईं। महिलाओं के रोजगार छिनने से उनकी 59.1  लाख करोड़ रु की आमदनी चली गई। रोजगार और कमाई में पुरुषों की बराबरी हासिल करने में महामारी से पहले महिलाओं को 99 वर्ष लगने थे तो अब इसमें 135 वर्ष लग जाएंगे। 

 ऑक्सफैम की रिपोर्ट का जितना हिस्सा अखबारों में मेरे देखने में आया उनमें अमीरों की सम्पत्ति इस कदर बढ़ने के कारणों का उल्लेख नहीं मिला। तो भी यह जानना मुश्किल नहीं है कि यह प्र्वृत्ति आर्थिक उदारीकरण (1991) के बाद तेज हुई। आर्थिक नीतियां पहले भी गरीबों के पक्ष में नहीं थीं लेकिन उसके बाद ऐसा नवपूंजीवाद आया जिसने अमीरों को बहुत तेजी से अमीर और गरीबों को गरीब बनाए रखना तेज किया। हर क्षेत्र में निजी क्षेत्र यानी अमीरों की घुसपैठ बढ़ी। 'कल्याणकारी राज्य' का विचार, जिसमें गरीबों का ध्यान रखा जाता था, कमजोर होता गया। सरकारी यानी सार्वजनिक सम्पत्तियों की नीलामी होती गई।  

देश को बदलने, गरीबों का कल्याण करने और भारतीयता एवं स्वदेशी का राग अलापने वाली  भाजपा सरकार ने भी पूरी तरह नव पूंजीवाद के सामने समर्पण कर रखा है। उसने अमीरों को और अमीर बनाने वाली नीतियों पर और भी जोर-शोर से अमल किया। यह सरकार तो एलआईसी से लेकर रेलवे जैसी सार्वजनिक सम्पत्तियों को निजी हाथों में देती जा रही है। अमीरों को बहुत तेजी से और भी अमीर होना ही है। 

मध्य वर्ग के हिस्से नवपूंजीवाद की थोड़ी जूठन आती है लेकिन हाशिए पर पड़े गरीब किसान, मजदूर, आदि गरीबी की खाई में ही पड़े रहते हैं। महामारी और बेरोजगारी की मार भी इसीलिए इसी वर्ग पर सबसे अधिक पड़ती है।

महत्त्वपूर्ण बात यह कि गरीबों को नकद मदद देने से, जैसा अब सभी सरकारें करती हैं और भाजपा सरकार ने जिसका खूब ढोल पीट रखा है, गरीबी नहीं जाती। गरीबी जाती है उन्हें रोजगार देने से, उत्पादन के संसाधनों पर अधिकार देने से। यही नहीं हो रहा। गरीब कल्याण, किसान कल्याण, आदि के नाम पर उनके खातों में नकद राशि देने से वोट तो मिल सकते हैं लेकिन वे गरीब-और गरीब बनते जाते हैं। 

-न जो, 18 जनवरी, 2022     

1 comment:

ढाईआखर said...

बढ़िया और ज़रूरी टिप्पणी