Friday, June 07, 2019

देखिए तो, ट्रैफिक नियम तोड़ने वाले हैं कौन?



अगर प्रदेश सरकार यह सोचती है कि यातायात नियमों के उल्लंघन पर जुर्माने की राशि कई गुणा बढ़ा देने से शहरों की यातायात समस्या सुधर जाएगी तो वह गलफहमी में है या वह समस्या  की जड़ में झांकना नहीं चाहती. हमारे शहरों में यातायात नियमों का घोर उल्लंघन होता है, अनेक बार यह जानलेवा साबित होता है, यह सच है. सड़कों पर जाम और भारी अव्यवस्था का यह बड़ा कारण है.

बीते मंगलवार को योगी सरकार ने ट्रैफिक नियम तोड़ने वालों पर ज़ुर्माने की रकम आठ गुणा तक बढ़ा दी. सरकार का मानना है कि जुर्माने की राशि में भारी वृद्धि से बार-बार ट्रैफिक नियम तोड़ने की जनता की प्रवृत्ति पर रोक लगेगी. अगर ऐसा हो तो बहुत अच्छी बात है लेकिन पहले के उदाहरण बताते हैं कि ऐसा होने के कोई आसार नहीं हैं. कुछ वर्ष पहले भी जुर्माना बढ़ाया गया था. बीच-बीच में परिवहन विभाग भी आदेश जारी करता रहा है लेकिन क्या उसका कोई असर हुआ या नियमोल्लंघन बढ़ता गया?

अधिसंख्य जनता नियम-कानूनों का पालन करती है या ऐसा करना चाहती है क्योंकि उसे कानून का भय होता है. कुछ ही लोग होते हैं जिन्हें कानून का कोई डर नहीं होता. ये कौन लोग हैं जो कानून से डरते नहीं हैं? चौराहों पर ट्रैफिक सिग्नल को नहीं मानने वाले कौन लोग हैं? ट्रैफिक सिपाही को आंखें दिखाते हुए लाल बत्ती पार कर जाने वाले कौन  हैं? चालान काटने और जुर्माना वसूलने वाले सिपाही या इंस्पेक्टर को धक्का देने और कॉलर पकड़ कर औकातबता देने की धमकी देने वाले कौन हैं?

करोड़ों रुपए खर्च कर लगी ट्रैफिक लाइटों का होना न होना बराबर है. चौराहे पर ट्रैफिक सिपाहियों का होना लगभग व्यर्थ है. वे जानते हैं कि उनका मुख्य काम वीआईपी गाड़ियों को बिना रोक-टोक निकल जाने देना है. इसके अलावा ट्रैफिक नियम वही तोड़ते हैं जो राजनैतिक-आपराधिक प्रभाव वाले हैं. सिपाही जानते हैं कि ऐसे जबरिया वीआईपीको टोकने पर वह आंखें दिखाता है या देख लेने की धमकी देता है. उस पर कोई सख्ती की भी जाए तो ऊपर से फोन घनघनाने लगते हैं, डॉट पड़ती है और इस गुस्ताखीपर कभी निलम्बन की सजा भी भोगनी पड़ती है.

इसलिए ट्रैफिक नियम तोड़ने वाले ज़्यादातर लोगों की जान-बूझ कर अनदेखी की जाती है. रोक-टोक कर क्यों आ बैल मुझे मारकहें! यह हीला-हवाली देख कर आम जनता भी नियम तोड़ने को प्रेरित होती है. उनमें कुछ बच निकलते हैं, रिक्शा-सायकल वाले थप्पड़ खाते हैं, कुछ दो पहिया-चौपहिया वाले जुर्माना भरते हैं. बाकी निरीह जनता ट्रैफिक नियम मानती ही मानती है.

यह वीआईपी कल्चरखत्म किये बिना यातायात सुधार नहीं हो सकते. मोदी सरकार के कुछ अच्छे फैसलों में वीआईपी कल्चर खत्म करने की घोषणा भी थी. लाल-नीली बत्ती पर रोक लगाई गयी. किंतु वीआईपी कल्चर खत्म हुआ क्या? गाड़ियों से लाल-नीली बत्तियाँ गायब हो गईं लेकिन पुलिस की  एस्कॉर्ट गाड़ियाँ हूटर बजाती उनके आगे-पीछे चलती हैं. नाक ऐसे नहीं पकड़ी घुमा कर पकड़ ली!

जिस दिन तथाकथित वीआईपी अपने ड्राइवर को नियमानुसार गाड़ी चलाने की हिदायत देंगे, जिस दिन मंत्रियों, विधायकों, अफसरों की गाड़ियाँ नो-पार्किंगमें खड़ी होना बंद हो जाएंगी, जिस दिन रुतबा-धारी लोग ट्रैफिक लाइट या सिपाही के इशारे पर रुकने लगेंगे और गलती होने पर चुपचाप जुर्माना भरने लगेंगे, उसी दिन से यातायात व्यवस्था का कायाकल्प हो जाएगा.

तब जुर्माने की रकम बढ़ाने की ज़रूरत नहीं रहेगी. अन्यथा जुर्माना सौ गुणा भी बढ़ा दें तो देगा कौन और वसूलेगा कौन?  


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