Monday, June 03, 2019

सच और झूठ में किसकी अधिक ज़रूरत है- रसूल हमज़ातोव


युग-युगोंं से सच और झूठ एक-दूसरे के साथ-साथ चल रहे हैं. युग-युगों से उनके बीच यह बहस चल रही है कि उनमें से किसकी अधिक ज़रूरत है. कौन अधिक उपयोगी और शक्तिशाली है. झूठ कहता है कि मैं और सच कहता है कि मैं. इस बहस का कभी अंत नहीं होता.

एक दिन उन्होंने दुनिया में जाकर लोगों से पूछने का फैसला किया. झूठ तंंगऔर टेढ़ी-मेढ़ी पगडण्डियों पर आगे-आगे भाग चला. वह हर सेंध में झाँकता, हर सूराख में सूँघा-साँघी करता और हर गली में मुड़ता. मगर सच गर्व से गर्दन ऊँची उठाए सिर्फ सीधे, चौड़े रास्ते पर ही जाता. झूठ लगातार हँसता था, पर सच सोच में डूबा हुआ और उदास रहता था.

उन दोनों ने बहुत से रास्ते, नगर और गाँव तय किये. वे बादशाहों, कवियों, ख़ानों, न्यायाधीशों, व्यापारियों, ज्योतिषियों और साधारण लोगों के पास भी गए. जहाँ झूठ पहुँचता, वहाँ लोग इतमीनान और आज़ादी महसूस करते. वे हँसते हुए एक-दूसरे की आँखों में देखते, यद्यपि इसी वक्त एक-दूसरे को धोखा देते होते और उन्हें यह भी मालूम होता कि वे ऐसा कर रहे हैं. मगर फिर भी वे बेफिक्र और मस्त थे तथा उन्हें एक-दूसरे को धोखा देते और झूठ बोलते हुए ज़रा भी शर्म नहीं आती थी.

जब सच सामने आया तो लोग उदास हो गए, उन्हें एक-दूसरे से नज़रें मिलाते हुए झेंप होने लगी, उनकी नज़रें झुक गईं. लोगों ने (सच के नाम पर) खंजर निकाल लिए, पीडित पीड़कों के विरुद्ध उठ खड़े हुए, गाहक व्यापारियों पर, साधारण लोग ख़ानों पर और ख़ान शाहों पर झपट पड़े. पति ने पत्नी और उसके प्रेमी की हत्या कर डाली. ख़ून बहने लगा. इसलिए अधिकतर लोगों ने झूठ से कहा-

'तुम हमें छोड़कर न जाओ. तुम हमारे सबसे अच्छे दोस्त हो. तुम्हारे साथ जीना बड़ा सीधा-सादा और आसान मामला है. और सच, तुम तो हमारे लिए सिर्फ परेशानी लाते हो. तुम्हारे आने पर हमें सोचना पड़ता है, हर चीज़ को दिल से महसूस, घुलना और संघर्ष करना होता है.तुम्हारी वज़ह से क्या कम योद्धा, कवि और सूरमा मर चुके हैं?'

'अब बोलो', झूठ ने सच से कहा, 'देख लिया न कि मेरी अधिक आवश्यकता है और मैं ही अधिक उपयोगी हूँ. कितने घरों का हमने चक्कर ल्गाया है और सभी जगह तुम्हारा नहीं, मेरा स्वागत हुआ है.'

'हाँ, हम बहुत सी आबाद जगहों पर तो हो आए. आओ, अब चोटियों पर चलें. चल कर निर्मल जल के ठण्डे चश्मों, ऊँची चरागाहों में खिलने वाले फूलों, सदा चमकने वाली सफेद बर्फों से पूछें.'

'शिखरों पर हज़ारों वर्षों का जीवन है. वहाँ नायकों वीरों, कवियों बुद्धिमानों, संत-साधुओं के अमर और न्यायपूर्ण कृत्य, उनके विचार, गीत और अनुदेश जीवित रहते हैं. चोटियों पर वह रहता है जो अमर है और पृथ्वी की तुच्छ चिंताओं से मुक्त है.'

'नहीं, मैं वहाँ नहीं जाऊंगा,' झूठ ने जवाब दिया.

'तो क्या तुम ऊँचाई से डरते हो?... हाँ, मुझे मालूम है तुम डरते हो. तुम तो हो ही बुज़दिल...'

 'नहीं, मैं तुम्हारी ऊँचाइयों से नहीं डरता. मगर मैं वहाँ करूँगा ही क्या, क्योंकि वहाँ लोग नहीं हैं. मेरा तो वहीं बोलबाला है जहाँ लोग रहते हैं. वे सब मेरी प्रजा हैं. केवल कुछ साहसी मेरा विरोध करने की हिम्मत करते हैं और तुम्हारे पथ पर चलते हैं, मगर ऐसे लोग तो इने-गिने हैं.'

'हाँ, इने-गिने हैं. मगर इसीलिए इन लोगों को युगनायक माना जाता है और कवि अपने सर्वश्रेष्ठ गीतों में उनका स्ततुति-गान करते हैं.'

- 'दागिस्तान' में रसूल हमज़ातोव

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