Monday, June 03, 2019

अकेले कवि का किस्सा- रसूल हमज़ातोव

यह किस्सा मुझे अबू तालिब ने सुनाया. किसी ख़ान की रियासत में बहुत-से कवि रहते थे. वे गाँव-गाँव घूमते और अपने गीत गाते. उनमें से कोई वायलिन बजाता, कोई चोंगुर, कोई ज़ुरना. ख़ान को जब अपने काम-काज और बीवियों से फ़ुरसत मिलती, तो वह शौक से उनके गीत सुनता,

एक दिन उसने एक ऐसा गीत सुना, जिसमें ख़ान की क्रूरता, अन्याय और लालच का बयान किया गया था. ख़ान आग-बबूला हो उठा. उसने हुक्म दिया कि ऐसा विद्रोह भरा गीत रचने वाले कवि को पकड़ कर लाया जाए.

गीतकार का पता नहीं लग सका. तब वज़ीरों और नौकरों-चाकरों को सभी कवियों को पकड़ लाने का आदेश दिया गया. ख़ान के टुकड़खोर शिकारी कुत्तों की तरह सभी गाँवों, रास्तों, पहाड़ी पगडण्डियों और सुनसान दर्रों में जा पहुँचे. उन्होंने सभी गीत रचने और गाने वालोंंम को पकड़ लिया और महल की काल-कोठरियों में लाकर बंद कर दिया. सुबह को ख़ान सभी बंदी कवियों के पास जाकर बोला-

'अब तुममें से हरेक मुझे एक गीत गाकर सुनाए.'

सभी कवि बारी-बारी से ख़ान की समझदारी, उसके उदार दिल, उसकी सुन्दर बीवियों, उसकी ताकत, उसकी बड़ाई और ख्याति के गीत गाने लगे. उन्होंने यह गाया कि इस पृथ्वी पर ऐसा महान और न्यायपूर्ण ख़ान कभी पैदा ही नहीं हुआ था.

ख़ान एक के बाद एक कवि को छोड़ने का आदेश देता गया. आख़िर तीन कवि रह गये, जिन्होंने कुछ भी नहीं गाया. उन तीनों को फिर से कोठरियों में बंद कर दिया गया और सभी ने यह सोचा कि ख़ान उनके बारे में भूल गया है.

मगर तीन महीने बाद ख़ान फिर से उन बंदी कवियों की पास आया- 'तो अब तुममें से हरेक मुझे कोई गीत सुनाए.'

उन तीन कवियों में एक फ़ौरन ख़ान, उसकी समझदारी, उदार दिल, सुंदर बीवियों, उसकी बड़ाई और ख्याति के बारे मेंं गाने लगा. उसने यह भी गाया कि पृथ्वी पर ऐसा महान ख़ान नहीं हुआ.

इस कवि को भी छोड़ दिया गया. उन दो को जो कुछ भी गाने को तैयार नहीं थे, मैदान में पहले से तैयार किए गए अलाव के पास ले जाया गया.

'अभी तुम्हें आग की नज़र कर दिया जाएगा.' ख़ान ने कहा. 'आख़िरी बार तुमसे कहता हूँ कि अपना कोई गीत सुनाओ.'

उन दो में से एक की हिम्मत टूट गई और उसने ख़ान, उसकी अक्लमंदी, उदार दिल, सुंदर बीवियों, उसकी ताकत, बड़ाई और ख्याति के बारे में गीत गाना शुरू कर दिया. उसने गाया कि दुनिया में ऐसा महान और न्यायपूर्ण ख़ान कभी नहीं हुआ.

इस कवि को भी छोड़ दिया गया. बस, एक वही ज़िद्दी बाकी रह गया, जो कुछ भी गाना नहीं चाहता था.

'उसे खम्भे से बाँध कर आग जला दो.' ख़ान ने हुक्म दिया.

खम्भे के साथ बँधा हुआ कवि अचानक ख़ान की क्रूरता, अन्याय और लालच के बारे में वही गीत गाने लगा जिससे यह सारा किस्सा शुरू हुआ था.

'जल्दी से इसे खोलकर नीचे उतारो.' ख़ान चिल्ला उठा- :मैंं अपने मुल्क के अकेले असली शायर से हाथ धोना नहीं चाहता.'

'ऐसे समझदार और नेकदिल ख़ान तो शायद ही कहीं होंगे.' अबूतालिब ने यह किस्सा ख़त्म करते हुए कहा, 'मगर ऐसे कवि भी बहुत नहीं होंगे.' 

- रसूल हमज़ातोव (मेरा दागिस्तान) 

1 comment:

सुधीर चन्द्र जोशी 'पथिक' said...

अब ऐसे कवि और ऐसे शासक की कल्पना करना भी बेमानी लगती है।