Sunday, August 25, 2019

सरकारी तंत्र में ज़िम्मेवारी रही न ज़वाबदेही



कोई 38 साल की नौकरी में अधिकांश समय सड़क-निर्माण का काम कराने-देखने वाले एक  बुजुर्ग अभियंता निजी काम से घर आए. कभी उन्होंने हमें पत्र लिखकर समझाया था कि रोड डिवाइडर बहुत कच्चे और सिर्फ सांकेतिक बनाए जाने चाहिए ताकि दुर्घटना होने पर डिवाइडर टूटे, इनसानों के सिर नहीं.  इसी तरह स्पीड-ब्रेकर बनाने के नियम भी तय हैं कि कितने चौड़े और कितने ऊंचे बनने चाहिए ताकि गाड़ी की गति कम हो, गाड़ी और सवार की कमर न टूटे. आज सम्बद्ध विभाग और जिम्मेवार अधिकारी इस सोच और नियम को शायद जानते ही नहीं. इसीलिए स्पीड-ब्रेकर और रोड डिवाइडर जनता की जान लेने का काम ज़्यादा करते हैं.
खैर, जब हम उन्हें विदा करने चौराहे तक गए तो एक फर्लांग की दूरी में तीन जगह सड़क के बीच पानी की तलैया बनी थीं. हमने किनारे की नालियों की मुंडेर पर चढ़कर मकानों की चारदीवार के सहारे सड़क पार की. इस दौरान बुज़ुर्ग अभियंता बहुत अफसोस जताते रहे.

“आप देख रहे हैं, नालियां सूखी हैं और सड़क पर पानी भरा है! नालियां चोक हों तो सड़क पर पानी भरना समझ में आता है. यहां तो नालियां सूखी हैं और सड़कें नालियां बनी हुई हैं. क्यों हुआ ऐसा, जानते हैं? सब आज की हमारी इंजीनियर कौम की लापरवाही और कामचोरी है.”

वे बोलते रहे- “उन्हें पढ़ाया-सिखाया तो अवश्य गया होगा कि सड़कें बीच में ऊंची बननी चाहिए ताकि दोनों तरफ की हलकी ढलान से पानी बहकर नालियों में चला जाए. नालियों में भी पर्याप्त बहाव है, यह भी देखना चाहिए. लेकिन हो क्या रहा है? देखिए, जगह-जगह सड़कें बीच में नीची और किनारों से ऊंची हैं. मिट्टी और गिट्टी भरते समय कोई देखता ही नहीं कि बीच में ऊंचा हो रहा है या नहीं. या, भराव ही ठीक से और पक्का नहीं किया जाता. इसलिए वह बाद में बीच-बीच में धंस जाता है. सबको ठेका पूरा करने और कमीशन लेने की ज़ल्दी रहती है.

“हमारे समय में पहले ओवरसियर, तब जूनियर इंजीनियर को यही कहते थे, साइट पर मुस्तैदी से डटा रहता था. पूरी जांच पड़ताल के बाद ही फाइनल कोटिंग की इजाजत देता था. कभी किसी ने लापरवाही की तो ए ई की जांच में पकड़ा जाता था. अब शायद ही कोई एई-ईई साइट पर जाकर मिट्टी-गिट्टी भराव की जांच करता हो. सबने अपने पद नाम में इंजीनियर जोड़ लिया लेकिन उत्तरदायित्त्व का निर्वाह करना छोड़ दिया.”

बुजुर्ग इंजीनियर भुनभुनाते हुए टेम्पो में बैठकर चले गए. हम सोचते रहे कि बिल्कुल सही जगह उंगली रखी है उन्होंने. जगह-जगह जल भराव के लिए बारिश नहीं, सड़कें-नालियां बनाने वाले जिम्मेदार हैं. परसों रात बारिश हुई थी लेकिन कई सड़कों पर जगह-जगह तीन दिन बाद भी  पानी भरा हुआ है. नालियों की तरफ सड़क की ढाल ही नहीं है. जब तक हवा-धूप से यह सूखेगा नहीं, सड़ता रहेगा. इसी में मच्छर पैदा हो रहे हैं. बदबू आ रही है. पानी तारकोल का दुश्मन है. कल को गड्ढे हो जाएंगे.

सब नगर निगम को कोस रहे हैं कि पानी निकाल नहीं रहे लेकिन कोई यह नहीं देख रहा कि असली गलती किसने की और क्यों? कई स्थानों पर नाले और नालियां उलटी दिशा में बहती हैं क्योंकि उनकी ढाल सही दिशा में बनाई ही नहीं गई. जल-भराव का यह भी एक बड़ा कारण है.

सरकारी काम-काज में न ज़िम्मेदारी रही, न ही जवाबदेही. गलत निर्माण करने-कराने वालों पर कोई नज़र नहीं रखता. कोई जवाब तलब भी नहीं करता. यह सभी सार्वजनिक सेवाओं पर लागू है. हमारे जीवन को नारकीय बनाए रखने में इस मूल्यहीनता और भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा योगदान है.  

(सिटी तमाशा, नभाटा, 26 अगस्त, 2019) 
  
       

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