Tuesday, August 27, 2019

सुबह की भूली तो भटकी कांग्रेस

हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने चंद रोज पहले बयान दिया कि कांग्रेस अपने रास्ते से भटक गई है. हुड्डा की गिनती ऐसे नेताओं में कतई नहीं होती जो कांग्रेसी विचार में रचे-पगे हों या उसके मूल्यों का बड़ा सम्मान करते हों. वे तो कांग्रेस का निकट भविष्य अनिश्चित देखकर अपने वास्ते नया रास्ता तलाशने का आधार बनांने के लिए यह बात कह गए. किंतु यह बात विचारणीय तो है ही कि कांग्रेस का रास्ता क्या था? अगर वह भटकी है तो क्या वह सायास है? और अंतत: किस रास्ते वह भारतीय राजनीति में पुनर्स्थापित हो सकती है?

कांग्रेस ने अपने इतिहास में कुछ रास्ते बदले हैं. बहुत पीछे न जाएं तो भी कोई नहीं मानेगा कि गांधी और नेहरू की कांग्रेस वही थी जिस कांग्रेस का नेतृत्त्व लम्बे समय तक इंदिरा गांधी ने किया. राजनीति में अचानक आ पड़े राजीव गांधी ने भी इंदिरा की कांग्रेस का रास्ता जाने-अनजाने बदल दिया था. राजीव के बाद हाशिए पर जा पड़ी कांग्रेस को सोनिया गांधी ने पुनर्जीवित तो किया लेकिन उन्होंने जिन समझौतों का रास्ता अपनाया उसने आज कांग्रेस को वहां ला पटका है जहां फिलहाल उसे रास्ता ही नहीं सूझ रहा. राहुल ने जो रास्ता पकड़ा उसमें वह खुद ही भटक गए और फिलहाल मैदान छोड़ बैठे हैं.

तब भी एक कांग्रेस है क्योंकि इस देश की अनेक विविधताएं उस विचार की जड़ों को सींचने का काम करती रहेंगी और विविधताएं इस देश का प्राण हैं. भारतीय जनता पार्टी कितनी ही ताकतवर क्यों न हो जाए और कांग्रेस जैसा आचरण भी करने लगे तब भी अपने मूल चरित्र के कारण वह इस देश की कांग्रेसी विरासत का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकती.

अगर आज कई पुराने कांग्रेसी नेता और बड़ी संख्या में कांग्रेसी मतदाता भाजपाई हो गए हैं तो उसका कारण कांग्रेसी विचार का क्षय नहीं है. कारण है इतने सारे लोगों को उस विचार का अप्रासंगिक लगना. इसके लिए जिम्मेदार भाजपा का उत्तरोत्तर उभार नहीं, बल्कि पार्टी के रूप में कांग्रेस की अपनी भटकन है. सच तो यह है कि अपने मूल्यों से कांग्रेस की दिशाहीनता और जनता से क्रमश: बढ़ते अलगाव के कारण ही भाजपा बहुत तेजी से उभरती चली गई.

हिंदू राष्ट्र और कट्टर हिदुत्व का विचार इस देश में आज़ादी मिलने के बहुत पहले से था. 1925 में स्थापित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात और भी सक्रिय होता गया. 1980 में जनसंघ के भाजपा बन जाने के बाद संघ का मूल विचार विस्तार पाने लगा. लेकिन इस पूरे दौर में वह कांग्रेसी विचार और उसके संगठन पर हावी नहीं हो सका था. बात सिर्फ इतनी नहीं थी कि कांग्रेस तब तक आज़ादी दिलाने वाली पार्टी के रूप में सम्मानित थी, बल्कि उसके पास अपने विचार को पालने-पोषते रहने वाला संगठन था.

किसी भी प्रांत के किसी भी शहर-कस्बे-गांव चले जाइए, कांग्रेसी कार्यकर्ता ही नहीं कांग्रेसी विचार में आस्था रखने वाले लोग खूब मिल जाते थे. 1980 के दशक से यह दृश्य बदलना शुरू हुआ. उत्तर प्रदेश, बिहार जैसे बड़े राज्यों सहित लगभग हर राज्य में कांग्रेस का संगठन सिकुड़ना शुरू हुआ और संघ फैलने लगा. आज कांग्रेसी कार्यकर्ता या कांग्रेस समर्थक बहुत ढूंढने पर ही मिलेंगे जबकि संघ के स्वयं सेवक चप्पे-चप्पे पर. यह निर्विवाद है कि आज की भाजपा का देशव्यापी आभामण्डल संघ के परिश्रम की देन है. दूसरी तरफ कांग्रेस सेवा दल का नाम भी नई पीढ़ी नहीं जानती होगी. कांग्रेसी नेतृत्व ने देखते-बूझते यह हो जाने दिया तो खोट कांग्रेसी विचार का नहीं है. कमी पार्टी के भीतर है उस तरफ वह कब देखेगी?

एक उदाहरण से समझें. एक दौर में बहुचर्चित हुए श्याम बेनेगल के टीवी धारावाहिक भारत एक खोजके पहले एपीसोड में एक गांव के दौरे में भारत माता की जयके नारे लगा रहे ग्रामीणों से नेहरू पूछते हैं- ये भारत माता कौन है जिसकी जय आप सब बोल रहे हैं? किसकी जय चाहते हैं आप?’ कोई कहता है यह धरती, कोई कहता है नदी, पर्वत, जंगल सब भारत माता है. नेहरू समझाते हैं- सो तो है ही. लेकिन इससे भी अहम जो चीज है वह है इस सरजमीं पर रहने वाले अवाम. भारत के लोग. हम-आप सब भारत माता हैं.

यह नारा आज और भी जोरों से लगने लगा है लेकिन क्या उसके वही मायने रह गए हैं? अगर वही मायने नहीं रह गए हैं तो पूछना कांग्रेस से ही होगा न, या संघ को दोष देने से मुक्त हो जाएंगे? ‘भारत माता की जयकी नेहरू की व्याख्या आज क्यों बदल गई? इतने वर्षों में नारों के मायने बदले जा रहे थे तब कांग्रेस क्या कर रही थी? गिलहरी ने खेत जोता, बोया, गोड़ा-निराया और फसल पकने पर काट कर घर ले आई. कौआ डाल पर बैठा कांव-कांव करता रह गया!

अब ताज़ा उदाहरण लीजिए. अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करने के मोदी सरकार के फैसले पर कांग्रेस के कई नए-पुराने नेता उसके आधिकारिक रुख से सहमत नहीं हैं. कई ने सरकार के फैसले का स्वागत कर दिया. कांग्रेस का क्या रुख होना चाहिए और क्यों, क्या इस पर पार्टी कार्यसमिति या शीर्ष नेताओं ने मंथन किया? पार्टी के भीतर से असहमतियां आने के बाद ही सही, कोई विमर्श हुआ या अब भी हो रहा है?

कांग्रेस के कई नेताओं ने कहा कि वे जनमत के साथ हैं और जनमत सरकार के फैसले के पक्ष में है. यह विचित्र बात है. कांग्रेस जैसी पार्टी जनमत के साथ बहती जाएगी या जनमत बनाने का काम करेगी? अनुच्छेद 370 पर आज जो जनमत है वह आरएसएस-भाजपा ने वर्षों की मेहनत से बनाया है. उस जनमत का साथ देकर तो उनके ही रास्ते पर चलना हुआ. आपका रास्ता क्या था? आपने पार्टी के भीतर ही एक राय कायम नहीं की. जनमत बनाना तो बड़ी बात हो गई. उसके लिए कार्यकर्ताओं की समर्पित फौज़ और मज़बूत संगठन चाहिए. यह पुरानी पूंजी कांग्रेस खोती चली गई और नए सिरे से जमीन पर पैर जमाने के प्रयास हुए नहीं.

जैसा ऊपर कहा, इस देश की विविधता में ही कांग्रेस के पुनर्जीवन के बीज छुपे हैं. भाजपा के उग्र हिंदुत्व की काट के लिए उदार हिंदू चोला धारण करना उन उपजाऊ बीजों की अनदेखी करना है. नकल से असल को कैसे हराएंगे?

पार्टी के रूप में कांग्रेस का ह्रास 2014 में नहीं, उससे बहुत पहले शुरू हो गया था. कांग्रेस को वापसी की शुरुआत अपने पुन: आविष्कार से करनी होगी- अपने मार्ग, मूल विचार और एक ऐसे नेता का लोकतांत्रिक चयन जिसके पीछे वैचारिक आधार पर संगठन खड़ा हो सके.

(प्रभात खबर, 28 अगस्त, 2019)




  
     
        

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