Friday, November 22, 2019

चिड़ियाघर हटा तो उसकी हरियाली का क्या होगा?


सरकार और प्रशासन चलाने वालों का भी ज़वाब नहीं. ये सभी अपनी चतुराई का ही खाते-भोगते हैं. जब यह समाचार पढ़ा कि चिड़ियाघर के पशु-पक्षियों को प्रदूषण से बचाने के लिए शहर से बाहर कहीं बसाया जाएगा तो उनकी दाद देनी पड़ी. इनसानों की चिंता में हलकान प्रशासन पशु-पक्षियों की भी कितनी चिंता करता है! शहर की हवा का गुणवत्ता सूचकांक बेचारे वन्य-प्राणियों के फेफड़े खराब कर रहा है. प्रशासन ने वन विभाग और उद्यान-प्रशासन से पता करने को कहा है कि बढ़ते शोर और वायु-प्रदूषण का उन पर कितना और कैसा असर पड़ रहा है. उन्हें शहर से बाहर भेजे जाने का प्रस्ताव बनाया गया है.

सवाल उठता है कि चिड़ियाघर दूर भेज दिया गया तो उसकी करीब 72  एकड़ जमीन में मौज़ूद हरियाली का क्या होगा? तभी एक कौंध की तरह सरकारों और प्रशासन के वे कई प्रयास याद आ गए जो लखनऊ प्राणि उद्यान की जगह मंत्री-आवास या अन्य सरकारी भवन बनाने के लिए किए जा चुके हैं. पहले के ऐसे सभी प्रयास कुछ सचेत प्रशासनिक अधिकारियों और  सामाजिक कार्यकर्ताओं के विरोध से सफल नहीं हो पाए. इस बार पशु-पक्षियों को प्रदूषण से खतरे का बहाना शायद काम आ जाए. क्या खूब तरकीब निकाली गई है!

चिड़ियाघर के भीतर हवा की गुणवत्ता कैसी रहती है, इसका अध्ययन तो अभी तक सामने नहीं आया है लेकिन जहां करीब दस हजार पेड़, हरे-भरे उद्यान और तालाब हों, वहां की हवा शेष शहर से निश्वय ही काफ़ीअच्छी होगी. यह सही है कि चिड़ियाघर अत्यधिक प्रदूषित हज़रतगंज के निकट है लेकिन जंगल और पानी में इतनी क्षमता होते है कि वे अपने आसपास की हवा को यथासम्भव साफ कर सकें. सच तो यह है कि प्राणि उद्यान शहर का ऑक्सीजन प्लाण्ट है. उसकी हरियाली इलाके का प्रदूषण दूर करती है.

अंधाधुंध शहरीकरण और सरकारी निर्माणों ने शहर की हरियाली कई बहानों से धीरे-धीरे खत्म की है. 1990 के शुरुआती वर्षों तक माल एवन्यू में खूब हरी-भरी सरकारी नर्सरी थी. बड़े-बड़े पेड़ हवा में झूमते हुए शहर की हवा साफ करते रहते थे. एक दिन सरकार ने फैसला किया कि वहां वीवीआईपी गेस्ट हाउस बनाया जाएगा. पत्रकारों की हमारी पीढ़ी और कई सचेत नागरिकों ने इस फैसले का विरोध किया. तर्क दिया कि वीवीआईपी के लिए गेस्ट हाउस शहर से बाहर भी बनाया जा सकता है. उन्हें आने-जाने में कौन सी परेशानी होनी है. तत्कालीन सरकार ने वीवीआईपी की सुरक्षा का बहाना बनाकर वह प्राणदायिनी हरियाली मिटा दी. आज वहां खड़ा विशाल वीवीआईपी अतिथि गृह शहर को प्रदूषण और यातायात समस्या देने के अलावा और क्या कर रहा है?

उसी के बाद से चिड़ियाघर की ज़मीन पर भी नज़रें पड़ने लगी थीं. जब-जब विधायकों-मंत्रियों के लिए नए आवास या कोई नया भवन बनाने की बात हुई, चिड़ियाघर को शहर से बाहर स्थानांतरित करने के प्रस्ताव बनाए गए. मायावती की सरकार के समय भी एक बार प्राणि उद्यान को कहीं दूर ले जाने की बात चली थी. खैर, अब तक यह बचा रहा है. शंका होती है कि अब पशु-पक्षियों को प्रदूषण से बचाने के नाम पर चिड़ियाघर को हटाने की बात की जा रही है. पशु-पक्षियों के कारण वहां अच्छी हरियाली बची है. वे शहर से बाहर हुए तो शहर के इस फेफड़े में भी कंक्रीट भरने में देर नहीं लगेगी.

जानवरों की इतनी ही चिंता है तो चिड़ियाघर बनाए ही क्यों जाते हैं? पशु-पक्षी जंगल में कहीं अधिक उन्मुक्त जीवन और स्वच्छ हवा पाएंगे. प्राणि उद्यान के बहाने शहर के पास थोड़ी हरियाली बची है. जनता आसानी से वहां पहुंचकर थोड़ा अच्छा समय गुज़ार लेती है. यह सुकून और ऑक्सीजन का एक स्रोत मत छीनिए. कृपया, उसे बना रहने दें.
   
(सिटी तमाशा, नभाटा, 23 नवम्बर, 2019)

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