Saturday, November 09, 2019

वातावरण से ज़्यादा दिमागों में है प्रदूषण



अपनी बेटी का जन्म दिन मनाकर सपरिवार घर लौट रहे एक डॉक्टर को कुछ लड़कों ने पीट दिया. परिवार के साथ दुर्व्यवहार किया. डॉक्टर का दोष सिर्फ इतना बताया जा रहा है कि उसने पीछे से आती लड़कों की गाड़ी को पास देने में देर कर दी. इससे गुस्साए लड़कों ने पहले डॉक्टर की गाड़ी में ठोकर मारी, फिर उनकी पिटाई कर दी. ये आज के नवयुवक हैं जो नशा करके सड़कों पर मस्ती कर रहे थे.

यह मस्तीनहीं है, दिमागी प्रदूषण है, जो सिर चढ़कर बोल रहा है. अपवाद स्वरूप एक-दो किस्से नहीं हैं. आए दिन ऐसी घटनाएं सुनने को मिलती हैं. बहुत सारे लोग इसके भुक्तभोगी हैं. मनचाही आइसक्रीम नहीं मिली तो वे दुकानदार को पीट देते हैं. बर्गर के ऑर्डर में देरी होने या किसी और को पहले दे देने पर वे वेटर की ठुकाई कर देते हैं. एक डिलीवरी बॉय को इसलिए लहूलुहान कर दिया गया कि उसने पैकेट देने से पहले बिल पकड़ा दिया. सामान ले लिया मगर भुगतान नहीं किया. रात दस बाद बंद बीयर बार का शटर नहीं खोलने पर सरे बाजार गोली चला दी गई.

प्रदूषण सिर्फ हवा-पानी यानी हमारे वातावरण में नहीं होता. वह हमारे दिमागों में होता है. वास्तव में, दिमागों में ही ज़्यादा होता है. दिमागों से ही चारों तरफ फैलता है. हवा-पानी का प्रदूषण कम-ज़्यादा हो सकता है. वह दूर हो सकता है. दिमागों का प्रदूषण कैसे दूर होगा?

नव-उदारवाद ने एक ऐसा वर्ग पैदा किया है जिसके पांव और दिमाग ज़मीन पर नहीं हैं. न उसे मानव-इतिहास से मतलब है, न वर्तमान की समस्याओं से और न उसके भविष्य की तनिक भी चिंता है. यह धरती और इसके संसाधन सिर्फ उनके लिए हैं और उनके जीवन तक सीमित हैं. सड़क भी उनके लिए है और बाज़ार भी. दूसरे उनकी राह का कांटा हैं. यह सिर्फ उस नशे का प्रभाव नहीं है जो वे शौकिया करते हैं. यह नशा उनके लालन-पालन के साथ उनके दिमाग पर चढ़ा है. चढ़ता ही जा रहा है.

यही वर्ग है जो खतरनाक वायु-प्रदूषण के बीच भयानक आवाज़ और धुंआ वाले पटाखे फोड़ता है. फिर गर्व से गर्दन टेढ़ी कर इतराता है. महंगी गाड़ियां खरीदता है और सड़कों पर इस तरह फर्रटा भरता है कि फुटपाथ पर सोए गरीब-गुरबे चीटीं की तरह कुचले जाते हैं. यह बयान उनके लिए अत्यंत स्वाभाविक है कि फुटपाथ पर सोएंगे तो और क्या होगा, वह कोई सोने की जगह है!  किसी को भी ठोकर मार देना, कुचल देना और गाली-गलौज करना या राह चलती लड़की को उठा लेना उनके लिए फ़नहै.

लेट्स हैव सम फ़नवाले इस वर्ग को पूंजी और प्रभाव के कारण सत्ता-प्रतिष्ठान का संरक्षण प्राप्त होता है. धन-दौलत और बाहुबल की ओर सत्ता स्वयं खिंची चली जाती है. नए दौर में यही वर्ग राजनीति को भी नियंत्रित कर रहा है. उत्पीड़न के तमाम मामले गवाह हैं कि प्रशासन इसी वर्ग की तरफ झुकता है. वह न्याय-प्रक्रिया को भी प्रभावित करने की क्षमता रखता है. उत्पीड़ित गरीब-गुरबों या निम्न मध्य वर्ग की सुनवाई नहीं हो पाती या प्रक्रिया इतनी विलम्बित कर दी जाती है कि वह टूट जाता है.

नव-उदारवाद ने हमारी शासन-व्यवस्था का जन-कल्याणकारी स्वरूप समाप्त कर दिया है. नया स्वरूप प्रभु वर्ग के लिए कहीं अधिक कल्याणकारी है. परिवर्तन के लिए आवाज़ बुलंद करने की बजाय नई पीढ़ी का बड़ा हिस्सा इसी प्रभु वर्ग में शामिल होने के लिए कुछ भी कर गुजरने को तत्पर है. इस पीढ़ी का दिमाग ज़मीन पर ला सकने वाले नेता आज नहीं हैं. साहित्यिक-सांस्कृतिक नेतृत्व का भी सन्नाटा है. यह सचमुच कठिन समय है.     
(सिटी तमाशा, नभाटा, 09 नवम्बर, 2019)  
       


1 comment:

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' said...

बहुत सतटीक विश्लेषण, ये धनवानों व मध्यवर्गीय बिगडैल व असंस्कारी होती पीढ़ी है । इसमें और इजाफा होते जाना है क्योंकि प्रशासनिक प्रदूषण ईसे और बढ़ावा दे रहा है ।