Friday, July 16, 2021

आस्था, धार्मिक आयोजन, विज्ञान और महामारी

क्या आस्था, भक्ति, यज्ञ-हवन, तीर्थ यात्राएं, वगैरह बीमारी और वह भी महामारी को रोक सकते हैं? कोविड महामारी के कारण हुए लॉकडाउन में छोटे-बड़े सभी धर्मस्थल क्यों बंद रहे? साधु-संत-पुजारी, आदि भी कोविड से ग्रस्त क्यों हुए? भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा लगातार दूसरे साल बंद रही। लखनऊ के लोग ज्येष्ठ के मंगलवारों को हनुमान जी को भोग नहीं लगा सके। प्रशासन ने ही इसकी अनुमति नहीं दी थी। कोविड के डर से और भी कई महत्त्वपूर्ण धार्मिक आयोजन नहीं हुए या मात्र प्रतीकात्मक हुए। इससे क्या निष्कर्ष निकलते हैं

खतरे सामने हैं और उनके उदाहरण भी। लाख चेतावनियों के बावजूद पिछले साल उत्तराखण्ड सरकार ने हरिद्वार में कुम्भ की अनुमति दे दी थी। परिणाम यह हुआ कि उत्तराखण्ड से लेकर देश भर के सुदूर इलाकों तक कोविड की दूसरी लहर ने कहर बरपाया। कुम्भ की पवित्र डुबकी विभिन्न अखाड़ों के साधु- संतों को भी कोविड से नहीं बचा सकी। अब धीरे-धीरे इस तथ्य पर से पर्दा उठ रहा है कि कुम्भ में कोविड जांच के झूठे आंकड़े दर्ज किए गए ताकि यह साबित किया जा सके कि कुम्भ से कोविड नहीं फैला। कम दर्ज़ किए जाने के बावजूद मौतों के जो भयावह आंकड़े सामने आए उसने कोई भ्रम नहीं छोड़ा।       

इसीलिए उत्तराखण्ड  राज्य ने इस बार कांवड़ यात्रा पर रोक लगा दी है। इण्डियन मेडिकल एसोसिएशन लगातार चेता रहा है कि महामारी की तीसरी लहर को भड़काने में ऐसी जुटानों का बड़ा हाथ हो सकता है। उत्तर प्रदेश सरकार ने न केवल कांवड़ यात्रा को अनुमति दी है बल्कि उसकी तैयारी भी शुरू करा दी है। सर्वोच्च न्यायालय इस समाचार पर स्वयं संज्ञान लेकर चिंता व्यक्त कर चुका है।

विश्व के प्रसिद्ध नास्तिक विचारकों में शुमार रहे क्रिस्टोफर हिचेंस ने अपनी चर्चित किताब गॉड इज नॉट ग्रेटमें इतिहास से बहुत सारे उदाहरण देकर साबित किया है कि पिछले पांच हजार साल में मानव जाति पर आई बड़ी विपत्तियों में ईश्वर के किसी भी रूप ने कोई सहायता नहीं की। जो कुछ भी मदद सम्भव हुई वह मनुष्य-अर्जित ज्ञान-विज्ञान के कारण हुई जिसमें दुनिया भर के विद्वानों-विज्ञानियों का योगदान रहा। खैर, पूरी दुनिया हिचेंस की तरह नास्तिक नहीं हो सकती। आस्थावान जनता हर संकट में अपने इष्ट को याद करती है लेकिन सिर्फ उसी के सहारे नहीं बैठी रहती। ईश्वर के सामने गिड़गिड़ाने के साथ ही वह इलाज के लिए चिकित्सकों के पास दौड़ती है और टीके लगवाती है।

मानव जाति की तमाम तरक्कियां विज्ञान से ही सम्भव हुई हैं। इसलिए जीवन में वैज्ञानिक दृष्टिकोण अत्यावश्यक है। कोविड से बचने की पूरी गारण्टी नहीं होने के बाद भी अगर टीकाकरण पर बहुत जोर दिया जा रहा है तो वह वैज्ञानिक दृष्टिकोण ही है। कोविड महामारी से निपटने के लिए इतनी शीघ्र जो टीके बने हैं वे किसी धार्मिक आयोजन का परिणाम नहीं हैं। भौतिक दूरी, मास्क और बार-बार हाथ धोने के निर्देशों के पीछे विज्ञान ही है। परम आस्थावान सरकारें भी यह नहीं कह रहीं कि धर्मस्थलों की शरण आओ और कोरोना वायरस से मत डरो। सरकारें ही हैं जो जोर-शोर से टीकाकरण अभियान चला रही हैं।

उत्तराखण्ड के नए मुख्यमंत्री ने यह बात बहुत अच्छी कही है कि अगर कांवड़ यात्रा की जुटान से महामारी भड़की और जानें गईं तो ईश्वर कतई प्रसन्न नहीं होगा। बात जिस तरह भी कही जाए, उद्देश्य यही होना चाहिए कि इस घातक वायरस को हवा देने वाले आयोजनों से बचा जाए। प्रधानमंत्री मोदी ने भी चंद रोज पहले यही बात कही थी। 

(सिटी तमाशा, नभाटा, 17 जुलाई, 2021)         

 

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