कोई पांच-छह वर्ष पहले एक दिन हमारे घर के सामने वाले पार्क में भू गर्भ जल विभाग की टीम आ धमकी। देखते-देखते जेसीबी मशीन से पार्क के भीतर चारों तरफ खुदाई हो गई। बताया गया कि शहर के पार्कों में ‘रेन वाटर हार्वेस्टिंग’ का इंतज़ाम किया जा रहा है। दो-तीन दिन में गहरी नालियां बनाकर उन्हें ‘रि-चार्ज पिट’ से जोड़ दिया गया। नालियों के ऊपर सीमेंट के पत्थर ढाल दिए गए। फटाफट काम पूरा करके टीम लौट गई। इस बीच नगर निगम ने उन्हीं नालियों से चिपका कर टाइल्स बिछा दिए। पानी नीचे जाने के बचे-खुचे छिद्रों को घास और मिट्टी ने ढक दिया। ‘रेन वाटर हार्वेस्टिंग वाले तब से आज तक झांकने नहीं आए कि वर्षा जल उन नालियों से धरती में जा रहा है या नहीं और उनकी व्यवस्था काम कर रही है या नहीं। वैसे, पार्क या खेत या मिट्टी वाली खुली जगहों से वर्षा का पानी स्वयं ही धरती में चला जाता है। पार्क में रिचार्जिंग सिस्टम बनाने की आवश्यकता ही नहीं थी।
यह याद इसलिए आया कि पिछले दिनों
विभाग ने ससमारोह ‘भू गर्भ जल दिवस’ मनाया। ‘वन महोत्सव’ की तरह यह भी एक सालाना उत्सव हो गया है। ‘महोत्सव’, ‘सप्ताह’ और ‘दिवस’ हर साल मनाए जा रहे हैं। धरती के भीतर पानी का स्तर हर साल कम होता जा रहा
है। दस साल बाद भीषण जल संकट की चेतावनी विशेषज्ञ दे रहे हैं।
नीतियां और योजनाएं बहुत अच्छी हैं। सरकारी भवनों, बहुमंजिली
आवास योजनाओं और दो सौ मीटर से बड़े निजी भूखण्डों पर बने मकानों के लिए ‘रूफ टॉप रेन हारवेस्टिंग’ आवश्यक कर दी गई है। निजी मकानों
का छोड़ दीजिए, बड़ी-बड़ी सरकारी इमारतों में व्यवस्था तो की गई
है लेकिन वह ध्वस्त पड़ी है। शायद ही किसी सरकारी इमारत में छत का पानी धरती में पहुंचाने
वाली व्यवस्था काम करती मिले। बहुमंजिली आवासीय योजनाओं की लखनऊ में अब बड़ी संख्या
हो गई है। वे धरती से बेहिसाब पानी खींच रहे हैं लेकिन नियमानुसार वर्ष जल धरती में
पहुंचाने की व्यवस्था उन्होंने की है या नहीं, भूगर्भ जल विभाग
या किसी को भी यह देखने की फुर्सत नहीं है।
गोमती नगर हो या आशियाना या कोई भी बड़ी कॉलोनी, लगभग हर
घर में गहरी बोरिंग करके जमीन से बेहिसाब पानी खींचा जा रहा है। आदेश जारी करके घरों
में बिना इजाजत बोरिंग करने पर रोक लगा दी गई है लेकिन देखने-सुनने वाला कोई नहीं।
हाल के वर्षों में गहरी बोरिंग करके ‘आर ओ वाटर’ का धंधा करने वालों की बाढ़ आ गई है। पानी की सप्लाई करने वाली गाड़ियां शहर
की सड़कों पर दिन भर दौड़ती है। नियम-कानून हैं लेकिन सिर्फ कागजों पर।
एक स्वतंत्र संगठन ‘द एनर्जी एण्ड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (‘टेरी’) द्वारा हाल ही में किए गए एक अध्ययन में पाया
गया कि लखनऊ शहर के 72 फीसदी घरों में भू-जल का इस्तेमाल होता है। 90 प्रतिशत बहुमंजिली
इमारतों और 70 प्रतिशत वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों (होटल, दफ्तर,
स्कूल, मॉल, आदि) में भू
गर्भ जल इस्तेमाल होता है। इनमें अधिकतर बोरिंग 200 फुट तक गहरी हैं। ‘टेरी’ का अध्ययन बताता है कि लखनऊ की धरती में जितना
वर्षा जल समाता है, उससे 17 फीसदी अधिक पानी का दोहन हो रहा है।
दस साल बाद शहर के मुख्य इलाकों में भू जल का स्तर 25 मीटर तक और नीचे चला जाएगा।
‘टेरी’ का अध्ययन यह भी बताता है कि सरकारी
विभाग हों, वाणिज्यिक प्रतिष्ठान या नागरिक, किसी में भी पानी बचाने की चेतना नहीं है। वे धड़ल्ले से पानी खींचते और बर्बाद
भी बहुत करते हैं। पानी दुर्लभ होता जा रहा है, आने वाले समय
में त्राहि-त्राहि मचेगी, इसलिए हमें पानी बचाने के हर जतन करने
चाहिए, यह चेतना लखनऊ जैसे शहर में भी नहीं है।
भू गर्भ जल विभाग वालों की भी वही मानसिकता है तो किम आश्चर्यम!
(सिटी तमाशा, नभाटा, 31 जुलाई, 2021)
1 comment:
लेखक महोदय, इस तरह के लेख पढ़ के रोष तो अवश्य होता है, मगर इस संदर्भ में व्यक्तिगत स्तर पर अनुशासन मानने के, और थोड़ी बहुत (शेयर कर) जागरुकता फैलाने के अतिरिक्त नागरिक अधिक कुछ नहीं कर सकते। वस्तुत:, यह सरकार, शासन ही हैं जो भविष्य की इस आपदा पर प्रभावी रोक लगा सकते हैं। मगर मुझे पूरा विश्वास है कि, शासन के सर्वोच्च स्तर को छोड़कर, सभी सरकारी कर्मचारियों को इस आपदा में भी जमकर कमाई का अवसर नज़र आ चुका है। कारण कि, जैसा की आपने भी उल्लेख किया है, जल की बर्बादी को रोकने के के सम्बन्ध में मात्र आदेश ही पारित हुआ है, उसकी निगरानी के लिए कोई भी ज़िम्मेदार नहीं रखा गया है। इसलिए, आने वाले 10, 15 वर्षों में ही, अनियंत्रित जनसंख्या (जिसे नियंत्रित करने के बिल को सरकार ने फिलहाल तो रोक डाला है) और भीषण जलसंकट से प्रतिदिन दो चार हाथ करने के लिए जनता को भी तैयार हो जाना चाहिए।
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