शिक्षा क्षेत्र की गरीबी भी पूरी तरह सामने आई है।
स्कूल-कॉलेज बंद रहे और ऑनलाइन पढ़ाई का गुब्बारा इस सत्य के उदघाटन के साथ फुस्स
हो गया कि सरकारी ही नहीं, निजी विद्यालयों में भी इण्टरनेट सुविधा
बहुत कम है। यह तथ्य सभी जानते हैं कि ऑनलाइन पढ़ाई के लिए आवश्यक लैपटॉप या
स्मार्ट फोन और इण्टरनेट कनेक्शन भी बहुत कम विद्यार्थियों को उपलब्ध हैं। स्मार्ट
फोन के लिए फुटपाथ पर आम बेच रही जमशेदपुर की बच्ची तुलसी की तरह सभी गरीब बच्चे
भाग्यशाली नहीं हो सकते।
कोविड के कारण स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में जो सबसे
अधिक पिटी वह निम्न मध्य और निम्न वर्ग की आबादी है। उसे न अस्पताल मिले, न
ऑक्सीजन और न दिवंगतों का अंतिम संस्कार कर पाने की सुविधा। इसी वर्ग के बच्चे
शिक्षा से सर्वाधिक वंचित रहे। कोविड के पहले दौर के कुछ शांत होने पर जब कुछ समय
के लिए स्कूल खुले थे तो इसी वर्ग के बच्चे पढ़ाई में पिछड़े पाए गए थे। महामारी के
दूसरे दौर के बाद स्कूल फिर बंद चल रहे हैं। इस साल सभी बच्चे अगले दर्जे में भेज
दिए जाएंगे लेकिन इससे उस पढ़ाई की, जैसी भी वह होती है,
भरपाई नहीं हो सकती।
महामारी के दूसरे दौर में मचे हाहाकार को देखते हुए केन्द्र
और राज्य सरकारें तीसरे दौर से निपटने के लिए आर्थिक पैकेज से लेकर अस्पतालों में
बेड, ऑक्सीजन, दवाओं, आदि की
उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए कई घोषणाएं कर रही हैं। इन कदमों का उद्देश्य
आपातकालीन आवश्यकताओं को पूरा करना है। यह व्यवस्था भी ठीक-ठाक हो जाए तो
त्राहि-त्राहि कम मचेगी लेकिन मूल आवश्यकता स्वास्थ्य ढांचे को स्थाई तौर पर सुदृढ़
करना है। उस पर उतना ध्यान नहीं है।
नए मेडिकल कॉलेज खोलने से लेकर वर्तमान अस्पतालों में
सुविधाएं बढ़ाने के ऐलान हो रहे हैं। इनमें निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ती जा रही
है। जो निजी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल खुल रहे हैं, वे समाज की स्वास्थ्य
आवश्यकताओं को पूरा करने की बजाय बड़े लाभकारी उद्योग के रूप में सामने आते हैं।
निजी मेडिकल कॉलेज और कॉरपोरेट अस्पताल, जहां बड़े होटलों की
तरह सुविधाएं हैं, बहुत महंगे हैं। वे उच्च मध्य वर्ग से ऊपर
के धनी लोगों के लिए हैं। उनसे देश की आम जनता की स्वास्थ्य जरूरतें पूरी नहीं
होतीं।
आवश्यकता सरकारी अस्पतालों, सामुदायिक स्वास्थ्य
केंद्रों और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को बढ़ाने, उन्हें
सुविधा सम्पन्न और सर्व सुलभ बनाने की है। वर्तमान सरकारी अस्पतालों की भीड़ बताती
है कि बहुत बड़ी आबादी उन्हीं पर निर्भर है। इस वर्ग के लिए बड़ी संख्या में नए
अस्पताल और सुदृढ़ स्वास्थ्य केंद्र खोलने की जरूरत है। इसके साथ ही यह भरोसा पैदा
करने की आवश्यकता है कि वहां गरीब से गरीब व्यक्ति को भी इलाज मिलेगा। गरीब-गुरबों
की यह धारणा कि सरकारी अस्पतालों में भी उनकी पूछ नहीं होती, झोला छाप डॉक्टरों के तंत्र को बनाए रखती है।
इस भयावह दौर के बाद भी सार्वजनिक स्वास्थ्य ढांचा नहीं सुधरा तो आने वाली महामारियां और भी भयानक मंजर पेश करेंगी।
(सिटी तमाशा, नभाटा, 10 जुलाई, 2021)
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