Saturday, December 14, 2019

शर्म उन्हें है जो अब भी ईमानदार और समर्पित हैं



दो ढाई वर्ष पहले जब बिहार राज्य कर्मचारी चयन आयोग के अध्यक्ष, आईएस अधिकारी सुधीर कुमार  प्रश्न पत्र लीक करने के मामले में गिरफ्तार किए गए थे तो बड़ा धक्का नहीं लगा था. कुछ आईएएस अधिकारियों की धन-लिप्सा और भ्रष्टाचार के और भी बड़े-बड़े किस्से सामने आते रहे हैं. बीते मई मास में उत्तर प्रदेश पब्लिक सर्विस कमीशन की परीक्षा-नियंत्रक अंजुलता कटियार को पर्चा लीक कराने में भागीदार होने के आरोप में जेल भेजा गया था. बड़े से लेकर छोटे अधिकारियों, कर्मचारियों, स्कूल-कॉलेजों के कतिपय अध्यापकों के भी इस मामले में पकड़े जाने के मामले सामने आते रहे हैं. किसी बड़ी परीक्षा का पर्चा लीक हुए बिना सम्पन्न हो जाना अब कम ही होता है.

पर्चा लीक कराने में लखनऊ विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर और एक असोसिएट प्रोफेसर का निलम्बन बहुत चौंकाता है. जिस तरह यह मामला खुला और कार्यवाहक कुलपति ने तात्कालिक जांच के बाद उन्हें निलम्बित किया, उससे यह अत्यंत कष्टकारी सच्चाई सामने आती है कि विश्वविद्यालय स्तर पर भी कितनी गिरावट आ गई है. जिस महिला परीक्षार्थी को ये प्रोफेसर फोन पर परीक्षा में पूछे गए सवाल बताते सुने गए, वह शहर के एक चिकित्सा संस्थान की प्रमुख बताई गई हैं. यह और भी दुखदाई है.

लखनऊ विश्वविद्यालय अपनी स्थापना का सौवां वर्ष मना रहा है. मुख्य धारा के मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक में विश्वविद्यालय के गौरवशाली इतिहास की चर्चाएं हैं. ऐसे समय में दो प्रोफेसरों को पर्चा लीक करने में निलम्बित होना और उनके विरुद्ध पुलिस में  रिपोर्ट दर्ज किया जाना उस उजले इतिहास पर कालिख पोतने जैसा है. विश्वविद्यालय के शिक्षकों से सम्बद्ध कतिपय विवाद होते रहे हैं. कभी किसी के विरुद्ध यौन दुर्व्यवहार की शिकायत दर्ज़ होती है तो कोई अपने शोध-पत्र या पुस्तक में किसी किताब के अंश चोरी करने के मामले में फंसता है.

इस तरह फोन पर परीक्षा के प्रश्न किसी अभ्यर्थी-विशेष को बताए जाने का यह मामला अनूठा ही है. छह दौर की वह बातचीत जो कि बकौल कार्यवाहक कुलपति प्रथम दृष्टया सही पाई गई है, तो दोनों पक्षों के लिए बेहद शर्मनाक है. जो लोग ऐसा करते हैं, उनके लिए शर्म शब्द अर्थहीन है. इस पर शर्म तो समर्पित शिक्षकों को आ रही होगी.

प्रोफेसरों की इस हरकत पर धक्का लगने का कारण यह है कि हर क्षेत्र में नैतिक पतन और भ्रष्टाचार का बोलबाला होने के इस दौर में भी हम शिक्षा जगत को पवित्र और आदर्श मानते हैं. प्राथमिक शिक्षक की छोटी-छोटी बेईमानियां, बल्कि प्राइवेट ट्यूशन करने को भी हम अपराध की तरह देखते हैं. हमारा दिल कहता है कि और लोग चाहे जो करें, शिक्षक को तो परम ईमानदार, समर्पित और निष्ठावान होना चाहिए. आखिर वह नई पीढ़ी को गढ़ने का काम करते हैं. आज के शिक्षकों के बारे में ऐसा सोचना उनके साथ अन्याय करना नहीं होगा?

किसी दौर में पत्रकारों के बारे में भी यही छवि समाज में थी कि वह हर हालत में सच को उजागर करने का काम करता है. अब मीडिया की बेईमानियों और पतन के बहुतेरे किस्से चौंकाते नहीं. बल्कि, हो यह गया है कि पत्रकार को संदेह की नज़रों से देखा जाने लगा है. नैतिकता और निष्ठा के लगभग सभी क्षेत्र काजल की कोठरी बन गए हैं. राजनीति में नैतिकता और जन-समर्पण आज़ादी के बाद से ही तिरोहित होने लगे थे. आज कोई नहीं मानता कि राजनीति में अच्छे लोग भी होंगे. बल्कि वह पंककही जाती है.

विश्वविद्यालयों में अब भी समर्पित शिक्षक की अच्छी संख्या है, उनके लिए यह प्रकरण कितना यातनादायक होगा.

(सिटी तमाशा, नभाटा, 14 दिसम्बर, 2019)  
 

    

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