Friday, December 20, 2019

कई संचित आक्रोश हैं इन विरोध-प्रदर्शनों के पीछे


उन्नीस दिसम्बर को देश भर में हुए उग्र विरोध-प्रदर्शनों से कुछ बातें स्पष्ट होती हैं- एक बड़ी आबादी नागरिकता कानून और एनआरसी को देश के मूल चरित्र और संविधान के विरुद्ध मानती है. हिंदू-राष्ट्र के एजेण्डे की तरफ बढ़ते मोदी सरकार के कदमों से मुस्लिम आबादी की आशंकाएं बढ़ी हैं लेकिन देश का काफी बड़ा धर्मनिरपेक्ष  हिस्सा उनके साथ खड़ा है. ये विरोध-प्रदर्शन नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी के विरोध तक सीमित नहीं हैं. कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने जैसे फैसलों के विरुद्ध संचित आक्रोश के अलावा आर्थिक क्षेत्र की विफलताओं से उपजा गुस्सा भी इनमें देखा जा सकता है.

सबसे पहले तो यह कि हम किसी भी तरह की हिंसा का पुरजोर विरोध करते हैं. फिर, उतनी ही जोर से यह कहेंगे कि लोकतांत्रिक सभ्य समाज में असहमति और विरोध दर्ज़ करने का आदर होना चाहिए, उसका दमन नहीं. मोदी सरकार ने संसद में नागरिकता विधेयक तो पास करा लिया लेकिन उसके व्यापक विरोध को देखते हुए उसके सहयोगी कुछ दलों का मन बदलने लगा है. असम गण परिषद और बीजू जनता दल जैसे उसके सहयोगी, जिन्होंने संसद में विधेयक को कानून बनाने में सरकार का साथ दिया, अब विरोध में खड़े हो गए हैं. जनता दल-यू में भी ऐसी सुगबुगाहट है. यह अकारण नहीं है.

लोकतांत्रिक विरोध का दमन

जामिया मिलिया विश्वविद्यालय में प्रदर्शनकारी विद्यार्थियों के बर्बर दमन ने जनाक्रोश की आग में घी डालने का काम किया है. पहले भी यह साबित हो चुका है कि वर्तमान सरकार असहमति का आदर करने की बजाय उसके दमन में विश्वास करती है. जामिया में दमन का नतीजा यह हुआ कि आक्रोश विश्वविद्यालयों के बाहर नागरिक समाज तक फैल गया. उन्नीस दिसम्बर को कई जगह शांतिपूर्वक प्रदर्शन करते लोगों से पुलिस ने बदसलूकी की. बंगलूर में प्रसिद्ध इतिहासकार रामचन्द्र गुहा को जिस तरह घसीट कर पकड़ा गया उससे गुस्सा और बढ़ा है. गौर करने वाली बात यह है कि भाजपा शासित राज्यों में ही हिंसा हुई. यह हिंसा दमन के लिए हुई हो सकती है और प्रदर्शनकारियों को दंगाई साबित करने के लिए भी. मुम्बई में हजारों की भीड़ ने शांतिपूर्ण प्रदर्शन किया क्योंकि वहां की सरकार ने उन्हें इसकी अनुमति दी.

जहां-जहां से भी विरोध-प्रदर्शन की खबरें आ रही हैं, यह साफ हो रहा है कि प्रदर्शनकारी सिर्फ मुसलमान नहीं हैं, जैसी कि सरकार धारणा बनाने की कोशिश कर रही है. जामिया से लेकर मुम्बई तक हर जगह प्रदर्शन में सभी धर्मों के वे नागरिक बड़ी संख्या में शामिल हैं  जो इस देश के संविधान और इसकी बहुलतावादी संस्कृति में भरोसा रखते हैं और उस पर हमले से चिंतित हैं.

भारत धर्म के आधार पर नहीं बना

संसद में नागरिकता विधेयक पर हुई चर्चा में गृह मंत्री अमित शाह ने बार-बार यह कहा कि इस देश का विभाजन धर्म केआधार पर हुआ. ऐसा नहीं हुआ होता तो यह कानून बनाने की ज़रूरत नहीं पड़ती. यह गलत बयानी है. पाकिस्तान की मांग धर्म के आधार हुई, जिसको महात्मा गांधी ने तो खैर अंतिम समय तक रोकने की कोशिश की ही, कांग्रेसी नेताओं ने भी उसका पूरा विरोध किया था. अंतत: पाकिस्तान बना लेकिन जो भारत बचा रहा वह कहीं से भी धर्म के आधार पर नहीं है. मुसलमानों की बड़ी आबादी ने फिर भी इसे अपना देश माना और पाकिस्तान जाने से इनकार किया. गांधी, नेहरू, आम्बेडकर, राजेंद्र प्रसाद और अन्य नेताओं ने भारत को धर्मनिरपेक्ष और सभी नागरिकों को हर स्तर पर समानता देने वाला संविधान दिया. पाकिस्तान में यदि धर्म के आधार पर उत्पीड़न होता है तो भारत में वैसा ही क्यों होना चाहिए? मुसलमानों से भेदभाव वाला कानून बनाना उनके साथ उत्पीड़न नहीं है?

अमित शाह समेत सभी भाजपा नेता और उनके समर्थक यह तर्क देते हैं कि एनआरसी किसी भी भारतीय नागरिक के विरुद्ध नहीं है. उससे किसी को भी डरना नहीं चाहिए. पूछा जाना चाहिए कि तब आप इसे देश भर में लागू करने की बात कह ही क्यों रहे हैं.  एनआरसी से जो सबसे ज़्यादा प्रभावित होते हैं वह है भारत की बहुलता और संविधान की मूल भावना. भाजपा और संघ के नेता डंके की चोट पर कह रहे हैं कि एनआरसी  पूरे देश में लागू होगा. इसकी तैयारियां भी होने लगी हैं. देश की बड़ी मुसलमान आबादी भय और संशय में अकारण नहीं जी रही है.

एनआरसी से डर  के कारण

इण्डियन एक्सप्रेसमें हाल ही में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार कई राज्यों में मुसलमान अपनी भारतीय विरासत के प्रमाण जुटाने में लगे हैं. कई संगठन इसमें उनकी सहायता कर रहे कि दस्तावेज पुख्ता हों, जन्म-तिथि, नाम और वल्दियत सही दर्ज़ हो, हिज़्ज़ों की भी गलतियां न हों. महाराष्ट्र, कोलकाता, बंगाल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना सहित कई राज्यों में शिविर लगाकर मुसलमानों को आवश्यक दस्तावेजों के बारे में बताया जा रहा है, उन्हें जांचा जा रहा है ताकि एनआरसी  के वक्त किसी कमी या विसंगति के कारण उन्हें घुसपैठिया घोषित न कर दिया जाए. औरंगावाद के डॉ भीमराव आम्बेडकर विश्वविद्यालय के शोध-छात्र अता-उर-रहमान नूरी ने इस बारे में एक किताब ही लिख डाली है. एनआरसी-अंदेशे, मसले और हलनाम की इस पुस्तक के अब तक दो संस्करण बिक चुके हैं. तीसरा संस्करण छप रहा है. इससे साबित होता है कि मुसलमानों में कितनी चिंता है और वे किस कदर परेशान हैं. उन्हें दस्तावेजों के साथ साबित करना होगा कि वे पीढ़ियों से भारत के नागरिक हैं. अन्यथा उन्हें घुसपैठिया घोषित किया जा सकता है.

अपने को भारतीय नागरिक साबित करने का दायित्व सिर्फ मुसलमानों का नहीं होगा. गौर कीजिए कि असम में 19 लाख से अधिक जो लोग एनआरसी से बाहर हो गए थे, उनमें करीब 14 लाख लोग गैर-मुस्लिम हैं, जिनमें हिंदुओं की बहुत बड़ी संख्या है. हिंदू अपनी नागरिकता साबित नहीं कर सके तो घुसपैठिया घोषित नहीं होंगे, बल्कि वे नागरिकता के लिए आवेदन कर सकेंगे. मुसलमानों को इस अधिकार से वंचित किया जा रहा है. इसलिए एनआरसी से डर के पर्याप्त कारण हैं, जिसकी चर्चा भाजपा नेता नहीं करते.

हिंदू राष्ट्र का एजेण्डा

जिस तरह कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाकर देश के एकमात्र मुस्लिम-बहुल राज्य की पहचान खत्म करना भाजपा का चुनावी एजेण्डा था, उसी तरह भारत को हिंदू राष्ट्र बनाना आरएसएस का महान उद्देश्य है. भारी बहुमत पाने के बाद मोदी सरकार संघ के एजेण्डे पर ही काम कर रही है. नागरिकता कानून में संशोधन हो या एनआरसी, उसी एजेण्डे की तरफ बढ़ने वाले कदम हैं जो भारत के संविधान की मूल मंशा के ठीक विपरीत हैं लेकिन उसी की शपथ लेकर किए जा रहे हैं.

संघ और भाजपा ने बड़ी चतुराई से ये कदम बढ़ाए हैं. पहले उसने आक्रामक हिंदुत्व और उग्र राष्ट्रवाद के जरिए आम हिंदू मानस को यह समझाया कि अस्सी प्रतिशत होकर भी इस देश में हिंदू दबे हुए हैं, हिंदुत्व  खतरे में हैं, मुस्लिम आबादी तेज़ी से बढ़ रही है जो यहां रहकर भी पाकिस्तान के साथ है, बाकी सभी पार्टियां मुस्लिम तुष्टीकरण में लगी हैं, आदि-आदि. इस हिंदू लहर पर सवार  होकर सत्ता में पहुंचने के बाद उसने नए एजेण्डों पर काम शुरू किया है. आश्चर्य नहीं कि बड़ी हिंदू आबादी उसके साथ खड़ी दिखती है.

इस एजेण्डे के चक्कर में सरकार आर्थिक और दूसरे मोर्चों पर पिछड़ती गई. आज देश बड़े आर्थिक संकट में है. कल-कारखाने बंद हो रहे हैं. पहले से जारी बेरोजगारी अनियंत्रित हो गई है. महंगाई शिखर पर है. आखिर इन आवश्यक मुद्दों को भावनात्मक एजेण्डा कब तक दबा सकता है. एनआरसी के उग्र विरोध में यह आक्रोश भी देखा जाना चाहिए.  दमन से वह और बढ़ेगा.   
  

https://www.yoyocial.news/yoyo-in-depth/taja-tareen/so-many-aspects-of-caa-protests

No comments: