Thursday, December 26, 2019

एनपीआर : नीयत पर शक विरोध का बड़ा कारण है


नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और एनआरसी (नागरिकता रजिस्टर) पर विरोध की आक्रामता कम हुई है, उसकी व्यापकता नहीं. प्रधानमंत्री मोदी के बाद अमित शाह ने भी कह दिया कि एनसीआर के बारे में सरकार ने अभी कोई विचार नहीं किया है. कुछ और मंत्रियों ने भी जनता के बड़े वर्ग की आशंका को कम करने के लिए बयान दिए हैं लेकिन न आशंकाएं कम हो रही हैं, न विरोध.
कारण बहुत साफ है. जनता के बड़े वर्ग में मोदी सरकार के प्रति विश्वास की कमी है. मूलत: संविधान-प्रदत्त मूल्यों और भारत की बहुलतावादी परम्परा में विश्वास रखने वाले इस वर्ग के लिए भाजपा सरकार की कथनी और करनी में बड़े भेद हैं.
प्रधानमंत्री ने रामलीला मैदान में बहुत जोर देकर कहा कि एनआरसी शुरू करने की बात सरासर झूठ है. उसके 24 घंटे के भीतर ही केंद्रीय मंत्रिमण्डल ने जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) तैयार करने के फैसले को न केवल मंजूरी दे दी बल्कि उसके लिए 85 खरब रु का भारी भरकम बजट भी तय कर दिया. एनपीआर ने नई आशंकाओं को जन्म दे दिया. कहा जा रहा है कि एनपीआर के माध्यम से एनआरसी लागू करने की तैयारी की जा रही है.
सामान्यत: एनपीआर के फैसले पर कोई विरोध नहीं होना चाहिए था. इस देश के सभी निवासियों (तकनीकी रूप से नागरिकों का ही नहीं) का एक रजिस्टर तैयार करने का यह विचार पहली बार यूपीए सरकार लाई थी. 2009 में इसे तैयार करने का अभियान चला था. बाद में यूपीए ने इस योजना को आगे नहीं बढ़ाया. इसी की जगह फिर आधार नम्बर योजना लागू की गई. सभी सरकारी योजनाओं की पात्रता के लिए आधार आज अनिवार्य कर दिया गया है. यह अलग बात है कि आधार में दर्ज़ सूचनाओं के लीक होने से जनता की निजता के भंग होने की विवाद कायम है.   
मोदी सरकार बार-बार यही दोहरा रही है कि एनपीआर यूपीए ने शुरू किया था और इसका एनआरसी लागू करने से कोई सम्बंध नहीं है. यह भी कि यह प्रक्रिया जनगणना का हिस्सा है. लेकिन मोदी सरकार की इस सफाई पर सहसा विश्वास नहीं किया जा रहा. सीएए-एनआरसी विरोधी जनता के बड़े वर्ग को लगता है कि सरकार एनपीआर की आड़ में एनआरसी ही लागू करने की तैयारी में है. कारण वही अविश्वास, जो गहरा है और इसके पर्याप्त कारण हैं.
पहली बात तो यह कि मोदी सरकार ने सन्‍ 2020 सेजो एनपीआर तैयार करने का जो फैसला लिया है, वह यूपीए सरकार के एनपीआर से फर्क है. मोदी सरकार एनपीआर में देश के निवासियों के माता-पिता की जन्म तिथि और जन्म-स्थान, पुराने निवास का स्थान, आधार नम्बर, ड्राइविंग लाइसेंस नम्बर, मतदाता पहचान संख्या और मोबाइल नम्बर समेत 14 प्रकार की व्यक्तिगत सूचनाएं दर्ज़ करवा रही है. सीएए-एनसीआर से आशंकित जनता में इस फैसले से नया डर पैदा हुआ है. स्वाभाविक सवाल है कि इन जनसंख्या रजिस्टर के लिए इतनी निजी सूचनाओं की क्या आवश्यकता है? इसका उद्देश्य क्या है? सरकारी योजनाओं और पहचान की सामान्य जानकारी के लिए जब आधार अनिवार्य है तो उसी के नाम पर एनपीआर को क्यों जरूरी बताया जा रहा है? संदेह पुन: इस बहाने एनआरसी लागू करने के इरादे की तरफ जाता है.
यही नहीं, मोदी सरकार के दस्तावेज़ों में भी ऐसे तथ्य दर्ज़ हैं जो उसके एनपीआर को एनआरसी से सम्बद्ध बता रहे हैं. देश के महानिबंधक और जनगणना आयुक्त के प्रपत्र में साफ लिखा गया है कि नागरिकता सम्बंधी कानूनों के प्रावधानों के वास्ते एनआरसी लागू करने की दिशा में एनपीआर पहला कदम है. उधर मोदी सरकार के कई मंत्री और स्वयं गृह मंत्री कह रहे हैं कि दोनों में कोई सम्बंध नहीं है. अमित शाह कई बार सार्वजनिक रूप से भी कह चुके हैं कि उनकी सरकार देश भर में एनआरसी लागू करेगी और घुसपैठियों को बाहर करके रहेगी. कुछ समय पहले उन्होंने ट्वीट करके भी इसका ऐलान किया था. पिछले दिनों यह ट्वीट हटा दिया गया लेकिन शाह की घोषणाओं के वीडियो क्लिप सोशल साइट पर वाइरल हैं.
मोदी सरकार ने एनपीआर के बारे में आशंकाओं का निराकरण करने के मकसद से कहा है कि गणना करने वाले कर्मचारी एनपीआरके लिए किसी दस्तावेज़ की मांग नहीं करेंगे, बल्कि जो जानकारी जनता उन्हें बताएगी उसे दर्ज़ कर लेंगे. सवाल है कि यदि बहुत सारे लोग, मसलन अपने माता-पिता की जन्म-तिथि और जन्म स्थान सही नहीं बता सके तो? बाद में यह तथ्य पकड़ा गया तो उन्हें कानूनों के प्रावधान के पचड़े में फंसना पड़ जाएगा. किसी की नागरिकता का मुद्दा फंसा तो दस्तावेज़ देने ही पड़ेंगे. गलत या अप्राप्त सूचनाओं के कारण उसकी नागरिकता संदेह के घेरे में आ जाएगी.
देश में बन रहे डिटेंशन सेंटरों (बंदी गृहों) के बारे में सरकार के बयान भी विरोधाभासी हैं. मोदी और शाह कह रहे हैं कि उन्हें नहीं पता कि डिटेंशन सेण्टर कहां बन रहे हैं जबकि संसद से लेकर कोर्ट तक में सरकार की ओर से ऐसे बंदी गृह बनाने की बात मानी गई है. केंद्रीय गृह सचिव ने भी राज्यों को पत्र लिखा था कि वे डिटेंशन सेण्टर बनाने की तैयारी करें.
कुल मिलाकर बात सरकार की नीयत पर संदेह की है. नागरिकता कानून बनाकर सरकार ने जता दिया है कि वह तीन देशों के उत्पीड़ित गैर-मुस्लिमों को नागरिकता देना तय करके उत्पीड़ित मुसलमानों को अलग श्रेणी में रख रही है. कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाना भी मुस्लिम-विरोधी एजेण्डे के रूप में देखा गया है. इसलिए एक बड़े वर्ग को लगता है कि मोदी सरकार भारी संसदीय बहुमत का दुरुपयोग करके आरएसएस के हिंदू-राष्ट्र के एजेण्डा की तरफ बढ़ रही है.
सराकर की नीयत पर शक के यही कारण हैं. नागरिकता कानून में संशोधन और एनपीआर-एनआरसी पर संदेह और विरोध के स्वर इसीलिए शांत नहीं हो रहे.    

https://www.yoyocial.news/yoyo-in-depth/taja-tareen/doubt-or-intension-is-also-a-major-reason-for-protest

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